
- विज्ञापन (Article Top Ad) -
शिमला ! कोरोना महामारी के कारण समस्त विश्व में अनिश्चितता एवं भय का माहौल बना है। 22 मार्च को जब जनता कर्फ्यू लगा,तो उस वक्त शायद किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोरोना महामारी का संक्रमण इतना लंबा चलेगा और इसकी वजह से जीवन अनिश्चितता के दौर में प्रवेश करके ठहर जाएगा। इस महामारी से पूरा विश्व त्रस्त है और ऐसे में अभिभावकों का अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है। हम सभी पिछले 6 महीनों से अपने घर के अंदर सिमट कर रह गए हैं। ऐसे में शिक्षा विभाग एवं सरकार अपने स्तर पर बच्चों के शिक्षण-अधिगम एवं पठन-पाठन के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या विभाग और सरकार के द्वारा किए जाने वाले वाले प्रयास इस संकट की घड़ी में पूर्ण एवं पर्याप्त हैं... मेरे विचार से कदापि नहीं। मुश्किल के इस दौर में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों का जुड़ाव नितांत आवश्यक है। अभिभावकों को यह समझना होगा कि ऑनलाइन कक्षा में बच्चे का शिक्षक के साथ एक आंशिक जुड़ाव ही बन पाता है और उसकी हर गतिविधि का निरीक्षण करना अध्यापक के लिए नितांत असंभव है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षक का यह जुड़ाव ही पर्याप्त नहीं है। घर में बच्चे पर पैनी नज़र रखना तथा प्रतिदिन बच्चे द्वारा कक्षा में किये गए क्रिया-कलाप का ब्यौरा लेना भी आवश्यक है ताकि बच्चा अपने कार्य को ईमानदारी एवं गंभीरता के साथ करे। इस प्रकार आत्मदायित्व का बोध भी बच्चे को कराया जा सकेगा । इसके अतिरिक्त बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी इस मुश्किल दौर में बहुत ही आवश्यक है। बच्चों को मानसिक तनाव एवं कुंठा से बाहर निकालने के लिए उनके संवेगों को समझना समय की आवश्यकता है। शिक्षकों के समक्ष इस वक्त समस्या यह है कि बच्चे ऑनलाइन कक्षा के माध्यम से अध्यापक के साथ जुड़ तो रहे हैं,लेकिन हर बच्चे की गतिविधि पर नज़र रखना और बच्चे के कार्य का निरीक्षण एवं मूल्यांकन इतना सहज और सरल नहीं है। ऐसे में यदि अभिभावकों का शिक्षकों के साथ जुड़ाव होगा तो पठन-पाठन की रिक्तता को भरने में मदद मिलेगी और बच्चों में सकारात्मकता का संचार भी होगा।
शिमला ! कोरोना महामारी के कारण समस्त विश्व में अनिश्चितता एवं भय का माहौल बना है। 22 मार्च को जब जनता कर्फ्यू लगा,तो उस वक्त शायद किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोरोना महामारी का संक्रमण इतना लंबा चलेगा और इसकी वजह से जीवन अनिश्चितता के दौर में प्रवेश करके ठहर जाएगा। इस महामारी से पूरा विश्व त्रस्त है और ऐसे में अभिभावकों का अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है। हम सभी पिछले 6 महीनों से अपने घर के अंदर सिमट कर रह गए हैं। ऐसे में शिक्षा विभाग एवं सरकार अपने स्तर पर बच्चों के शिक्षण-अधिगम एवं पठन-पाठन के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या विभाग और सरकार के द्वारा किए जाने वाले वाले प्रयास इस संकट की घड़ी में पूर्ण एवं पर्याप्त हैं... मेरे विचार से कदापि नहीं।
मुश्किल के इस दौर में शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों का जुड़ाव नितांत आवश्यक है। अभिभावकों को यह समझना होगा कि ऑनलाइन कक्षा में बच्चे का शिक्षक के साथ एक आंशिक जुड़ाव ही बन पाता है और उसकी हर गतिविधि का निरीक्षण करना अध्यापक के लिए नितांत असंभव है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षक का यह जुड़ाव ही पर्याप्त नहीं है। घर में बच्चे पर पैनी नज़र रखना तथा प्रतिदिन बच्चे द्वारा कक्षा में किये गए क्रिया-कलाप का ब्यौरा लेना भी आवश्यक है ताकि बच्चा अपने कार्य को ईमानदारी एवं गंभीरता के साथ करे। इस प्रकार आत्मदायित्व का बोध भी बच्चे को कराया जा सकेगा । इसके अतिरिक्त बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी इस मुश्किल दौर में बहुत ही आवश्यक है।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
बच्चों को मानसिक तनाव एवं कुंठा से बाहर निकालने के लिए उनके संवेगों को समझना समय की आवश्यकता है। शिक्षकों के समक्ष इस वक्त समस्या यह है कि बच्चे ऑनलाइन कक्षा के माध्यम से अध्यापक के साथ जुड़ तो रहे हैं,लेकिन हर बच्चे की गतिविधि पर नज़र रखना और बच्चे के कार्य का निरीक्षण एवं मूल्यांकन इतना सहज और सरल नहीं है। ऐसे में यदि अभिभावकों का शिक्षकों के साथ जुड़ाव होगा तो पठन-पाठन की रिक्तता को भरने में मदद मिलेगी और बच्चों में सकारात्मकता का संचार भी होगा।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -