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विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। प्रदेश में हर दिन 4 लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। कोरोना वायरस संकट के चलते चिंता, भय, अवसाद और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं युवा स्वयंसेवियों को चिन्हित कर मनोवैज्ञानिक फ़र्स्ट एड के लिए प्रक्षिशित किया जाएगा। देशव्यापी आओ मिल कर बात करें अभियान की शुरूआत की गई। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और राज्य संसाधन केंद्र शिमला के निदेशक डाॅ ओम प्रकाश भुरेटा ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर बात करते हुए कहा कि भारत ज्ञान विज्ञान समिति अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश भर में मानसिक स्वास्थ्य जन जागरूकता अभियान चलाएगी जिसमें जन संगठनों, सरकारी और गैर सरकारी के अलावा सामाजिक संगठनों की मदद ली जाएगी। उन्होंने कहा कि गांव गांव, शहर शहर युवा स्वयंसेवियों को चिन्हित कर मनोवैज्ञानिक फ़र्स्ट एड के लिए प्रक्षिशित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब कोई बहुत ज्यादा बुरी मानसिक स्थिति से गुजरता है तो एकदम अवसाद में चला जाता है इसी अवसाद की वजह से लोग ज्यादातर युवा आत्महत्या कर लेते हैं। जिससे उनके परिवार पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसे लोगों में मानसिक स्वास्थ के प्रति जागरुकता फैलाने और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए मनाया जाता है। आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए इसे 2003 में शुरु किया गया था। इसकी शुरुआत आईएएसपी (इंटरनेशनल एसोसिएशन आफ सुसाइड प्रिवेंशन) द्वारा की गई थी।विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं। जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है। हिमाचल प्रदेश में भी आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग केे आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में हर दिन 4 लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। मजदूर 20 प्रतिशत, गृहणियां 26 प्रतिशत, निजी क्षेत्र के कर्मचारी 10 प्रतिशत, छात्र 10 प्रतिशत ज्यादा संख्या में आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। 44 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले लोग 18-35 साल की आयु वर्ग के हैं। 2020 के पहले 4 महीनों में हर माह 40 से 50 लोगों ने आत्महत्या की परंतु मई केे बाद यह दर एकदम से बढ़ कर दुगनी हो गई। मई में 88, जून में 112, जुलाई में 101 और अगस्त में 104 लोगों ने आत्महत्या की है। डाॅ ओम प्रकाश भुरेटा ने कहा कि कोरोना वायरस संकट ने भारत के लाखों लोगों को जबरन अलगाव और बेरोज़गारी की तरफ धकेल दिया है। इसके चलते चिंता, भय, अवसाद और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं और मानसिक स्वास्थ्य देश का अगला संकट हो सकता है। बच्चों में महामारी के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने का ज्यादा खतरा है। तालाबंदी के दौरान पारिवारिक हिंसा, अकेलेपन और खेलकूद में कमी के कारण उनके पालन पोषण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि महामारी से बाहर निकल कर आई सामाजिक और आर्थिक दरारों का प्रभाव बड़े पैमाने पर रोज़गार, सामाजिक सुरक्षा के घटते दायरे, भुखमरी, लिंग-आधारित हिंसा में बढ़ोतरी, निराश्रय, मद्यपान, कर्ज-अदायगी में चूक तथा लाखों लोगों के गरीब बन जाने के रूप में होगा। यह सब पुराने तनावों, चिंता, अवसाद, शराब पर निर्भरता और अपने को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृति की बढ़ोतरी का आधार बनेगा। जिससे रुग्णता, आत्महत्याओं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित मामलों में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा कि मानसिक तनाव का अंधविश्वास से सीधा सम्बध है। जब इंसान अपनी मन की उलझनों को सुलझा नहीं पाता तो वह किसी दैवीय सहारे की तरफ जाता है, चाहे वह सहारा उसे गांव के डाउ चेले से मिले या फिर बाबाओं से। मानसिक स्वास्थ्य सहायता की पहुँच गावों व शहरों के मोहल्लों में ना हो पाने की वजह से आम जन इन अंधविश्वासों की जकड़न में आ जाता है। बढ़ता सामाजिक तनाव अंधविश्वास को पुख्ता करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। प्रदेश में हर दिन 4 लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। कोरोना वायरस संकट के चलते चिंता, भय, अवसाद और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं युवा स्वयंसेवियों को चिन्हित कर मनोवैज्ञानिक फ़र्स्ट एड के लिए प्रक्षिशित किया जाएगा। देशव्यापी आओ मिल कर बात करें अभियान की शुरूआत की गई।
भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और राज्य संसाधन केंद्र शिमला के निदेशक डाॅ ओम प्रकाश भुरेटा ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर बात करते हुए कहा कि भारत ज्ञान विज्ञान समिति अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश भर में मानसिक स्वास्थ्य जन जागरूकता अभियान चलाएगी जिसमें जन संगठनों, सरकारी और गैर सरकारी के अलावा सामाजिक संगठनों की मदद ली जाएगी। उन्होंने कहा कि गांव गांव, शहर शहर युवा स्वयंसेवियों को चिन्हित कर मनोवैज्ञानिक फ़र्स्ट एड के लिए प्रक्षिशित किया जाएगा।
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उन्होंने कहा कि जब कोई बहुत ज्यादा बुरी मानसिक स्थिति से गुजरता है तो एकदम अवसाद में चला जाता है इसी अवसाद की वजह से लोग ज्यादातर युवा आत्महत्या कर लेते हैं। जिससे उनके परिवार पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसे लोगों में मानसिक स्वास्थ के प्रति जागरुकता फैलाने और आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए मनाया जाता है। आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए इसे 2003 में शुरु किया गया था। इसकी शुरुआत आईएएसपी (इंटरनेशनल एसोसिएशन आफ सुसाइड प्रिवेंशन) द्वारा की गई थी।विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं। जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है।
हिमाचल प्रदेश में भी आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग केे आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में हर दिन 4 लोग आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। मजदूर 20 प्रतिशत, गृहणियां 26 प्रतिशत, निजी क्षेत्र के कर्मचारी 10 प्रतिशत, छात्र 10 प्रतिशत ज्यादा संख्या में आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। 44 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले लोग 18-35 साल की आयु वर्ग के हैं। 2020 के पहले 4 महीनों में हर माह 40 से 50 लोगों ने आत्महत्या की परंतु मई केे बाद यह दर एकदम से बढ़ कर दुगनी हो गई। मई में 88, जून में 112, जुलाई में 101 और अगस्त में 104 लोगों ने आत्महत्या की है।
डाॅ ओम प्रकाश भुरेटा ने कहा कि कोरोना वायरस संकट ने भारत के लाखों लोगों को जबरन अलगाव और बेरोज़गारी की तरफ धकेल दिया है। इसके चलते चिंता, भय, अवसाद और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं और मानसिक स्वास्थ्य देश का अगला संकट हो सकता है। बच्चों में महामारी के परिणामस्वरूप मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने का ज्यादा खतरा है। तालाबंदी के दौरान पारिवारिक हिंसा, अकेलेपन और खेलकूद में कमी के कारण उनके पालन पोषण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने कहा कि महामारी से बाहर निकल कर आई सामाजिक और आर्थिक दरारों का प्रभाव बड़े पैमाने पर रोज़गार, सामाजिक सुरक्षा के घटते दायरे, भुखमरी, लिंग-आधारित हिंसा में बढ़ोतरी, निराश्रय, मद्यपान, कर्ज-अदायगी में चूक तथा लाखों लोगों के गरीब बन जाने के रूप में होगा। यह सब पुराने तनावों, चिंता, अवसाद, शराब पर निर्भरता और अपने को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृति की बढ़ोतरी का आधार बनेगा। जिससे रुग्णता, आत्महत्याओं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित मामलों में बढ़ोतरी होगी।
उन्होंने कहा कि मानसिक तनाव का अंधविश्वास से सीधा सम्बध है। जब इंसान अपनी मन की उलझनों को सुलझा नहीं पाता तो वह किसी दैवीय सहारे की तरफ जाता है, चाहे वह सहारा उसे गांव के डाउ चेले से मिले या फिर बाबाओं से। मानसिक स्वास्थ्य सहायता की पहुँच गावों व शहरों के मोहल्लों में ना हो पाने की वजह से आम जन इन अंधविश्वासों की जकड़न में आ जाता है। बढ़ता सामाजिक तनाव अंधविश्वास को पुख्ता करता है।
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