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होम Khabar Himachal Seशिमला ! कब बनेगा अपना "शिमला" स्मार्ट सिटी - देवेंद्र धर !
  • रिपोर्ट,विशेष

शिमला ! कब बनेगा अपना "शिमला" स्मार्ट सिटी - देवेंद्र धर !

द्वारा
देवेंद्र धर -
विशेषज्ञ की कलम से - शिमला ( शिमला ) - December 15, 2022 @ 11:18 am
0

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शिमला, 15 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! शिमला को स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत 26.08.2017 को यह परियोजना लागू करने के लिए चुना गया था। ये परियोजना 2022 में पूरी की जानी थी, लेकिन अभी भी इस परियोजना का एक अंश भी पूर्ण नहीं हो पाया है,न तो धर्मशाला न ही शिमला को स्मार्ट सिटी का दर्जा आज तक मिल सका है। ये व कार्य कछुआ की चाल से चलता नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि शिमला नगर की हालत पहले से भी खराब होती जा रही है। स्मार्ट सिटी के आंकलन के लिए मात्र वर्तमान में नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाएं ही नहीं बल्कि भविष्य में बढ़ती जनसंख्या, चिकित्सा, शिक्षा व आम जनमानस को दी जाने वाली सुविधा सम्मलित की जानी है। शिमला व धर्मशाला ,पर्यटन नगरी होने के कारण आने वाले पर्यटकों कई आमद को ध्यान में रख कर ही स्मार्ट सिटी परियोजना का अनुमान ,आकलन व बजट का प्रावधान करना जरुरी है। क्या हमारे पास इस संदर्भ में भावी योजना हैं ,या नौकरशाही के सहारे ही काम चल रहा है। हम यह लेख विशेषकर शिमला "होने वाली" स्मार्ट सिटी के संदर्भ में प्रस्तुत कर रहे हैं ,हाल धर्मशाला का भी वही है। हम कुछ महत्वपूर्ण मुद्दो का उल्लेख करना चाहेंगे जो स्मार्ट सिटी के लिए जरुरी है। क्या कम से कम इन मानदंडो पर इन दो सुंदर नारियों का आकलन किया जा सकता है। 1. पेयजल !! स्मार्ट सिटी के हर नल से आज भी सप्ताह में दो या तीन दिन ही जल टपकता है। नगर निगम ने पिछले चुनाव में वायदा किया था कि शिमला नगर को 24 घंटे पेयजल उपलब्ध करवाया जाएगा। किस तरह के प्रयास किये गए कई योजनाएं बनीं। सतलुज नदी का पानी शिमला पहुंचाया गया । पानी की पाईप लाइन बदली गई। पंपिंग स्टेशन की क्षमता का विस्तार किया गया। सरकार व नगर निगम के सारे वायदे झूठे निकले। शिमला नगर निगम को पेयजल की भंडारण क्षमता बढ़ाने की उचित व्यवस्था करनी होगी । हमारा मानना है कि जब तक भंडारण क्षमता नहीं बढ़ेगी तब तक पानी का विकराल शिमला को मुक्त नहीं होने देगा। जितना पेयजल पंंप होकर नगर के भंडारों में पंहुचता सारा सप्लाई हो जाता है।अगर प्रतिदिन 48 एम एल डी पानी नगर को जरुरत है तो कम से कम तीन दिन का अतिरिक्त 144 एम एल डी पानी स्टोर कर के रखना होगा। क्या हम दैनिक आधार पर पंपों द्वारा की गई आपूर्ति पर ही निर्भर है। नगर निगम ने पिछले पांच वर्षों में कितने स्टोरेज टैंक बनाये है। शिमला जल प्रबंधन बोर्ड बना कर सरकार ने किस अपेक्षा को पूर्ण किया। पानी का अभाव तो फिर से बरकरार है। 2. यातायात, परिवहन !! आज भी शिमला में सड़क परिवहन के सिवा और कोई विकल्प नहीं है। नगर में कहीं भी जाना हो तो बसों में लटक के जाना पड़ता है। ज्यादातर प्राइवेट बसें होने के कारण सवारियों को बसों में ठूंसा जाता है। पर्यटकों के बढते दबाव के चलते भी नागरिकों को यातनाएं झेलनी पड रही है व अगर किसी ने शिमला से बाहर भी जाना है तो ट्रैफ़िक जाम को झेलना आम बात हो गई है। निजी, सरकारी व पर्यटक वाहनों की भारी उपस्थिति के कारण आम जनमानस का चलना असंभव सा हो गया है विशेषकर पर्यटन सीजन में। सरकार ने स्थानीय यातायात लगभग निजी हाथों में दे रखा है। "गोरों" के युग की बनाई सड़कों को चौड़ा करने की कोई व्यवस्था व योजना नहीं है। सिर्फ इक्का दुक्का प्रयास किए गये हैं व सील्स व रीस्टीक्ड रोड पर तो वी आई पी वाहनों के लिए सुरक्षित है। कुछ ई रिक्शा चल सकते थे। स्मार्ट सिटी के नाम पर बाई पास व ढ़ली टनल बना कर संतोष कर लिया गया है वह भी प्रयाप्त नहीं हैं। नगर में क्या, सरकार ने इस और ध्यान देकर छोटी सी सड़क भी जोडी है। उचित भाडा लेकर नगर में ई- रिक्शा तो चलाए जा सकते थे। कम से कम हर वार्ड में घरों तक वाहनों के चलने योग्य छोटी छोटी एप्रोच रोड बनाना जरुरी है। पैदल चलने वाले नागरिकों को सड़क पार करने के लिए वांछित ,अवांछित"ओवर हैड आइरन ब्रिज बनाये गये हैं। इस पहलों की आवश्यकता,उपयोगिता व उपयोग होने पर विश्लेषण बहुत जरूरी था। किस आधार पर इन को बनाने की स्वीकृति मिली व ये कितने उपयोगी सिद्ध हुए है।नौकरशाही के फैसले पर ही स्मार्ट सिटी संभव नहीं होगी। 3. पार्किंग !! पार्किंग शिमला के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है और सही में है भी। नगर की परिसीमा में अगर कहीं गाडी खडी करने की जगह मिल जाए तो यह बहुत बडी उपलब्धि होती है। जिन नागरिकों के पास अपनी पार्किंग हैं वे भाग्यवान कहलाते हैं। जो नागरिक सड़क के किनारे एक बार गाडी खडी कर भी दें फिर.निकालने का जोखिम मोल नहीं लेते।गाडी सड़क के किनारे खडी करने के लिए जगह मिलना ही बहुत बडी सुविधा है। सरकार जहां भी सड़क चौडी करती है जनता पार्किंग के लिए उपयोग में ले लेती है। नगर में पार्किंग का अभाव है। नगर निगम की परिधि में आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां मूलभूत ऐंबुलेंस रोड ही नहीं । रोगी को अस्पताल पंहुचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।नगर निगम ने कई बार सड़क के किनारे यलो लाईन बनाने व इसे पार्किंग के लिए उपयोग करने की योजना बनाई लेकिन योजना समाचार पत्रों में भी काफी उछाली लेकिन सिरे नहीं चढ़ी ,वोटरों का डर सताता रहा। कुछ सौभाग्यशाली लोगों नें तो अपने लैंटरों को मुख्य सड़क से जोड़कर ही "अपनी" पार्किंग बना दी हैं। सरकार के प्रयास गाडियों के अनुपात में नगण्य है।निजी क्षेत्र में कोई प्रयास नहीं किये गये है। जो पार्किंग बनी भी वह राजस्व अर्जित करने के लिए है। एच आर टी सी कई गाडियां भी सड़क के किनारे खडी रहतीं हैं। टैक्सी स्टैंड होने के बावजूद जहां सुविधा हो ये लगीं देखी जा सकती हैं व इनके नियमन व नियंत्रण की भी कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार की अपनी क्षमता ना हो तो सड़क के किनारे वाले भू-स्वामीयों से सहयोग ले कर पार्किंग का निजीकरण किया जा सकता है। 4. चिकित्सा !! चिकित्सा के लिए फिलहाल समस्त हिमाचल आई जी एम सी पर ही निर्भर है , जहां जा कर मरीजों को धक्के खाने पडते हैं। कुछ प्राइवेट अस्पताल हैं जिन में चिकित्सा से जुड़ी मूलभूत सुविधाएं नहीं है। क्या सरकार के पास कोई ऐसा विकल्प नहीं हैं कि छोटी चिकित्सा सुविधा को वार्ड में ही दिया जा सके। 5. आवास व व्यापारिक परिसर !! आवास जैसी सुविधाओं को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता मैन , विमैन होस्टल कितने हैं जो पिछले पांच साल में बने हैं। कुछ व्यवसायिक परिसर पुरानी व्यवसायिक परिसर को जोड़ तोड़कर कसुस्पटी व लोअर बाजार में बनाने का प्रयास कितना सफल रहा है देखना होगा। 6. वरिष्ठ नागरिक व बच्चों के लिए व्यवस्था !! नगर के वरिष्ठ नागरिकों व बच्चों के लिए कहने के लिए कुछ भी नहीं है जिसका उल्लेख किया जा सके।क्या यह कार्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता क्या । सरकार ने हर जिला में एक सीनियर सिटिजन होम बनाने के लिए कहा है।आदर्श स्मार्ट सिटी को बनाने के लिए सरकार सिर्फ समाचार पत्रों के माध्यम से सुझाव लेने तक को लेकर ही सीमित रही। नगर व नगर निगम के अंतर्गत आने वाले उपनगरों मे प्रसाधन व टॉयलेट आदि की व्यवस्था एकदम लचर है। माल रोड व लोअर बाजार पर ही इसे केंद्रित किया गया है।क्या अन्य सार्वजनिक स्थलों व वार्डें में इसकी जरुरत नहीं लगती। आपदा प्रबंधन व प्राकृतिक आपदा ,बर्फबारी आदि से निपटने के लिए गृह रक्षा ,अग्निशमन विभाग को अधूनिकतम मशीनों व यंत्रों से लैस करना जरुरी है।विदेशों में बर्फ से भरी सडकों को कैसे साफ किया जाता है। यह सीखना भी महत्वपूर्ण है। क्या बिना राजनीति के जनहित में प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति नहीं बन सकती जिसमें सभी क्षेत्र के विशेषज्ञ रहें और वह समिति सरकार के स्मार्ट सिटी प्रबंधन को समय-समय पर सुझाव देती रहे।क्योंकि स्मार्ट सिटी नागरिकों के लिए बननी है, ठेकेदारों ,राजनीतिज्ञोंऔर नौकरशाहों के लिए नहीं ।

शिमला, 15 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! शिमला को स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत 26.08.2017 को यह परियोजना लागू करने के लिए चुना गया था। ये परियोजना 2022 में पूरी की जानी थी, लेकिन अभी भी इस परियोजना का एक अंश भी पूर्ण नहीं हो पाया है,न तो धर्मशाला न ही शिमला को स्मार्ट सिटी का दर्जा आज तक मिल सका है। ये व कार्य कछुआ की चाल से चलता नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि शिमला नगर की हालत पहले से भी खराब होती जा रही है। स्मार्ट सिटी के आंकलन के लिए मात्र वर्तमान में नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाएं ही नहीं बल्कि भविष्य में बढ़ती जनसंख्या, चिकित्सा, शिक्षा व आम जनमानस को दी जाने वाली सुविधा सम्मलित की जानी है। शिमला व धर्मशाला ,पर्यटन नगरी होने के कारण आने वाले पर्यटकों कई आमद को ध्यान में रख कर ही स्मार्ट सिटी परियोजना का अनुमान ,आकलन व बजट का प्रावधान करना जरुरी है। क्या हमारे पास इस संदर्भ में भावी योजना हैं ,या नौकरशाही के सहारे ही काम चल रहा है। हम यह लेख विशेषकर शिमला "होने वाली" स्मार्ट सिटी के संदर्भ में प्रस्तुत कर रहे हैं ,हाल धर्मशाला का भी वही है। हम कुछ महत्वपूर्ण मुद्दो का उल्लेख करना चाहेंगे जो स्मार्ट सिटी के लिए जरुरी है। क्या कम से कम इन मानदंडो पर इन दो सुंदर नारियों का आकलन किया जा सकता है।

1. पेयजल !!

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2. यातायात, परिवहन !!

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3. पार्किंग !!

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5. आवास व व्यापारिक परिसर !!

आवास जैसी सुविधाओं को लेकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता मैन , विमैन होस्टल कितने हैं जो पिछले पांच साल में बने हैं। कुछ व्यवसायिक परिसर पुरानी व्यवसायिक परिसर को जोड़ तोड़कर कसुस्पटी व लोअर बाजार में बनाने का प्रयास कितना सफल रहा है देखना होगा।

6. वरिष्ठ नागरिक व बच्चों के लिए व्यवस्था !!

नगर के वरिष्ठ नागरिकों व बच्चों के लिए कहने के लिए कुछ भी नहीं है जिसका उल्लेख किया जा सके।क्या यह कार्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता क्या । सरकार ने हर जिला में एक सीनियर सिटिजन होम बनाने के लिए कहा है।आदर्श स्मार्ट सिटी को बनाने के लिए सरकार सिर्फ समाचार पत्रों के माध्यम से सुझाव लेने तक को लेकर ही सीमित रही। नगर व नगर निगम के अंतर्गत आने वाले उपनगरों मे प्रसाधन व टॉयलेट आदि की व्यवस्था एकदम लचर है। माल रोड व लोअर बाजार पर ही इसे केंद्रित किया गया है।क्या अन्य सार्वजनिक स्थलों व वार्डें में इसकी जरुरत नहीं लगती। आपदा प्रबंधन व प्राकृतिक आपदा ,बर्फबारी आदि से निपटने के लिए गृह रक्षा ,अग्निशमन विभाग को अधूनिकतम मशीनों व यंत्रों से लैस करना जरुरी है।विदेशों में बर्फ से भरी सडकों को कैसे साफ किया जाता है। यह सीखना भी महत्वपूर्ण है।

क्या बिना राजनीति के जनहित में प्रबुद्ध नागरिकों की एक समिति नहीं बन सकती जिसमें सभी क्षेत्र के विशेषज्ञ रहें और वह समिति सरकार के स्मार्ट सिटी प्रबंधन को समय-समय पर सुझाव देती रहे।क्योंकि स्मार्ट सिटी नागरिकों के लिए बननी है, ठेकेदारों ,राजनीतिज्ञोंऔर नौकरशाहों के लिए नहीं ।

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