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सोलन , ( बद्दी ) 26 दिसंबर [ पंकज गोल्डी ] ! रवीवार को बददी में तु्रलसी पूजन दिवस और वीर बाल दिवस के मौके पर कार्यक्रमों की हर जगह धूम रही। जहां हर मंदिर के प्रांगण में बडी श्रद्वा और उत्साह के साथ नागरिकों ने तुलसी पूजन किया वहीं जगह जगह गुरूद्वारों में वीर बाल दिवस के शौर्य और बलिदान की गाथाएं बजती रही। प्रमुख कार्यक्रम बददी के हाउसिंग बोर्ड स्थित टोरेन्ट पार्क में श्री हरिओम योगा सोसाईटी एवं आर्य समाज बीबीएन की ओर से आयोजित किया गया। जहां मुख्य वक्ता के तौर पर पंचकुला से आये आर्य अशोक डागर ने कहा कि 23 दिसंबर 1926 को स्वामी श्रद्वादंद को मुस्लिम कटटरपंथी ने गोलीयों से मारकर हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द स्वामी दयाननंद के विचारो से व कार्य सिद्धांतो तथा व्यवहारों से प्रभावित होकर आर्य समाज के विकास के लिए कार्य करने शुरू कर दिया तथा आर्य समाज के आंदोलन के सामाजिक आदर्शो का प्रचार करने लगे। स्वामी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त अंधविशवास और बुराइयों जैसे अंध विश्वास, जाति-प्रथा, छुआछूत तथा मूर्ति पूजा आदि का प्रबल विरोध करते हुए सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार बने। 1902 में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने देश के परम्परागत शिक्षा पद्दति के अनुरूप नए रूप में हरिद्वार में एक आंतरिक विश्वविद्यालय गुरुकुल कागड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने जालन्धर में एक महिला कॉलेज की स्थापना की तथा दिल्ली में एक सामाजिक एकता व समरसता लाने के लिए दलित उद्धार सभा की स्थापना की। मुख्य अतिथि कडुआना गुरूद्वारा के पाठी सरदार हाकिम सिंह ने गुरू गोविंद सिंह के परिवार के बलिदान पर जानकारी देते हुए बताया कि सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी देने वाले चार साहिबजादों की याद में 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह बलिदानी सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी। खालसा पंथ की स्थापना के बाद मुगल शासकों, सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के आक्रमण के बाद 20-21 दिसंबर 1704 को मुगल सेना से युद्ध करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्रीआनंदपुर साहिब का किला छोड़ा। सरसा नदी पर गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार जुदा हो गया। बड़े साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह गुरु जी के साथ रह गए, जबकि छोटे बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह माता गुजरी जी के साथ रह गये। रास्ते में माता गुजरी को गंगू मिला, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू उन्हें बिछड़े परिवार से मिलाने का भरोसा देकर अपने घर ले गया। इसके बाद सोने की मोहरें के लालच में गंगू ने वजीर खां को उनकी खबर दे दी। वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 9 वर्ष के साहिबजादा जोरावर सिंह और 7 वर्ष के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करके ले आए। उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा गया। सुबह दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मुलाजिमों ने सिर झुकाने के लिए कहा तो दोनों ने जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे। यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे, जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं। वजीर खां ने दोनों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राजी करना चाहा, लेकिन दोनों अटल रहे। आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का एलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज आई। दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने प्राण त्याग दिए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की इस महान शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। इस अवसर पर निर्भिक पत्रकारिता के लिए किशोर ठाकुर, सेवा भारती से हनुमान सिंह, कपिल सर्व सहायता संगठन, राष्ट्रीय कवी अंकित परमार, बददी स्कूल की बाहरवीं की टॉप छात्रा इशिका, समाज सेवी नरेश भारद्वाज व ओमप्रकाश को आर्य समाज की ओर से विशेष प्रशस्ति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
सोलन , ( बद्दी ) 26 दिसंबर [ पंकज गोल्डी ] ! रवीवार को बददी में तु्रलसी पूजन दिवस और वीर बाल दिवस के मौके पर कार्यक्रमों की हर जगह धूम रही। जहां हर मंदिर के प्रांगण में बडी श्रद्वा और उत्साह के साथ नागरिकों ने तुलसी पूजन किया वहीं जगह जगह गुरूद्वारों में वीर बाल दिवस के शौर्य और बलिदान की गाथाएं बजती रही। प्रमुख कार्यक्रम बददी के हाउसिंग बोर्ड स्थित टोरेन्ट पार्क में श्री हरिओम योगा सोसाईटी एवं आर्य समाज बीबीएन की ओर से आयोजित किया गया।
जहां मुख्य वक्ता के तौर पर पंचकुला से आये आर्य अशोक डागर ने कहा कि 23 दिसंबर 1926 को स्वामी श्रद्वादंद को मुस्लिम कटटरपंथी ने गोलीयों से मारकर हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द स्वामी दयाननंद के विचारो से व कार्य सिद्धांतो तथा व्यवहारों से प्रभावित होकर आर्य समाज के विकास के लिए कार्य करने शुरू कर दिया तथा आर्य समाज के आंदोलन के सामाजिक आदर्शो का प्रचार करने लगे। स्वामी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त अंधविशवास और बुराइयों जैसे अंध विश्वास, जाति-प्रथा, छुआछूत तथा मूर्ति पूजा आदि का प्रबल विरोध करते हुए सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार बने।
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1902 में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने देश के परम्परागत शिक्षा पद्दति के अनुरूप नए रूप में हरिद्वार में एक आंतरिक विश्वविद्यालय गुरुकुल कागड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना की। उन्होंने जालन्धर में एक महिला कॉलेज की स्थापना की तथा दिल्ली में एक सामाजिक एकता व समरसता लाने के लिए दलित उद्धार सभा की स्थापना की।
मुख्य अतिथि कडुआना गुरूद्वारा के पाठी सरदार हाकिम सिंह ने गुरू गोविंद सिंह के परिवार के बलिदान पर जानकारी देते हुए बताया कि सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कुर्बानी देने वाले चार साहिबजादों की याद में 21 से 27 दिसंबर का सप्ताह बलिदानी सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन धर्म पर आंच नहीं आने दी। खालसा पंथ की स्थापना के बाद मुगल शासकों, सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के आक्रमण के बाद 20-21 दिसंबर 1704 को मुगल सेना से युद्ध करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्रीआनंदपुर साहिब का किला छोड़ा।
सरसा नदी पर गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार जुदा हो गया। बड़े साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह गुरु जी के साथ रह गए, जबकि छोटे बेटे जोरावर सिंह और फतेह सिंह माता गुजरी जी के साथ रह गये। रास्ते में माता गुजरी को गंगू मिला, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू उन्हें बिछड़े परिवार से मिलाने का भरोसा देकर अपने घर ले गया। इसके बाद सोने की मोहरें के लालच में गंगू ने वजीर खां को उनकी खबर दे दी। वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 9 वर्ष के साहिबजादा जोरावर सिंह और 7 वर्ष के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करके ले आए। उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा गया। सुबह दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया।
लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। मुलाजिमों ने सिर झुकाने के लिए कहा तो दोनों ने जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे। यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे, जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं। वजीर खां ने दोनों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राजी करना चाहा, लेकिन दोनों अटल रहे।
आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का एलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज आई। दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने प्राण त्याग दिए। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की इस महान शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है।
इस अवसर पर निर्भिक पत्रकारिता के लिए किशोर ठाकुर, सेवा भारती से हनुमान सिंह, कपिल सर्व सहायता संगठन, राष्ट्रीय कवी अंकित परमार, बददी स्कूल की बाहरवीं की टॉप छात्रा इशिका, समाज सेवी नरेश भारद्वाज व ओमप्रकाश को आर्य समाज की ओर से विशेष प्रशस्ति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
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