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शिमला , 21 नवंबर [ देवेंद्र धर ] ! हिमाचल सरकार ने फोर लेन विस्थापितों से झूठ बोल कर वोट लेने का क्रम जारी रखा है। जयराम सरकार ने पिछले चुनाव में फोर लेन विस्थापितों से वादा किया था कि फोर लेन विस्थापितों को चार गुणा मुआवज़ा दिया जाएगा। लेकिन उन्होंने टाल मटोल कर के अपना समय निकाल लिया। कभी ये कमेटी तो कभी वह कमेटी बनाते रहे। एक बहादुर सिपाही ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने एक जोरदार आवाज उठा कर अपने पीछे पीड़ित विस्थापितों को लगा कर हल्ला गुल्ला कर डाला। इस बहादुर फौजी से विस्थापित लोगों को काफी उम्मीद थी व प्रदेश के तमाम वह लोग जो प्रभावित थे ब्रिगेडियर खुशहाल की आवाज से आवाज मिला कर ये पीडित भी चिल्लाने लगे। जयराम सरकार ने इस फौजी को पटाकर अपनी झोली में डाल फौजी की चुनौती को खत्म कर डाला। फौज के इस बहादुर अफसर से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह 'टुकडा' खाना पसंद करेगा। ऐसा कहा जाता है कि सरकार की पिछलग्गू कंपनी ने बिना सोचे समझे हेलिकाप्टर पर बैठ कर फोर लेन की डीपीआर बना कर सरकार को सौंप दी। सरकार ने भी न आव देखा न ताव झट से टैंडर देकर अवैज्ञानिक तरीके सड़क खुदवाना आरंभ करवा दिया व कंपनियां जिन के पास पहाड़ों पर सड़क बनाने का अनुभव नहीं था दरकने वाले पहाड सिर पर गिरते देख भागना आरंभ कर दिया।कुछ कंपनीज तो काम बंद कर भागने लगीं। उन्हें लगा टैंडर के अनुसार काम पूरा नहीं होगा। कमाल तो यह है कि परमाणु से शिमला फोर लेन आज तक ठीक नहीं बन पाई है। यही हाल कीर्तपुर-नेरचौक फोर लेन का भी है। यह दावा किया जा रहा है कि परमाणु से सोलन फोरलेन तैयार है। यह सत्य नहीं है। यह सड़क कहीं न कहीं तो सिंगल लेन हो गई है। पहाड़ों की कई सतहें हिल गई हैं, मालवा आ कर सड़क पर गिरता रहता हैं निर्माण कंपनी "परिवर्तित मार्ग " बना कर एक लेन में गाडियां चलवाती रहती हैं। सोलन से कंडाघाट, केथलीघाट फोर लेन का तो भगवान ही मालिक है। सरकर ने वाह-वाह लूटने के लिए विस्थापितों को ही लूट लिया है। सोलन- केथलीघाट फोर लेन पर पहाड दरकने से बनी हुई सड़क पर बार बार मलवा गिरने से वह आधी लेन ही रह जाती है निर्माण कार्य बाधित होता रहता हैं। एक कहावत हैं "आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति निर्माण कंपनी अपनाए हुए है। ये कंपनी भी लगभग उडने को तैयार है तो फोर लेन का क्या होगा। शिमला के केथली घाट -ढ़ली वाले भाग का और भी बुरा हाल है। वैसे हाल सब पहाडों का एक सा ही है। इस भाग का सर्वेक्षण भी हवा में बैठ कर किया गया। अखबारों में इस क्षेत्र की भूमि अधिग्रहण का कारण फोरलेन बनाने के लिए बताया गया व अधिसूचना जारी की गई। इस सर्वे को कई बार बदला भी गया ताकि कुछ खास लोगों के घरों व संपत्ति को बचाया जा सके। सरकार ने बिना सोचे समझे टेंडर देकर अवैज्ञानिक तरीके से अपनी "नामावारी" कमाने के लिए जमीनें व पहाड खोद डाले व जनता के तक घर तोड़ डाले। केथली घाट से ढ़ली वाले भाग में तो कठिन काम लगने के कारण सड़क निर्माण करने वाली कंपनी 'चेतक' के ठेकेदार काम की जटिलता को देख काम छोड़कर भाग लिये। एन एच ए आई ने इस ठेकेदार की काफी मदद की व टूटे मकानों की सामाग्री बेच कर काफी माल बटोरा।मकान भूमि अधिग्रहण अनियमितता की हद देखिए भूमि में "शेयर" के नाम एनएचए आई ने बिना जांच करे उन भूमि स्वामियों को भी अधिग्रहण का मुआवजा दे डाला जिनकी भूमि ना तो अधिग्रहण की गई ना ही वह फोरलेन में आयी थी। देश का ऐसा कौन सा कानून है कि भूमि अधिग्रहण के बिना ही मुआवज़ा दिया जाए चाहे भूमि बिना अधिग्रहण के राजस्व रिकार्ड में शेयर में ही दिखाई भी गई हो। कुछ लोगों की आधी भूमि का तो अधिग्रहण कर ली गयी । बची हुई भूमि को बिना अधिग्रहण के छोड़ दिया गया बिना मुआवज़ा दिये। अब भू स्वामि बची हुई जमीन का कुछ नहीं सकते है। भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अधिनियमानुसार न तो उचित मुआवज़ा देने में कोई पारदर्शिता नहीं अपनाई गई फिर पुनर्वास का तो सवाल ही नहीं। मुआवजा देने में अधिग्रहण नियमानुसार उचित मार्गदर्शक मानदंड नहीं अपनाये गए। आमजन की भूमि भूस्से के भाव अधिग्रहीत की गई विशेषकर नगर निगम शिमला की सीमा परिधि में न मार्केट रेट ना सर्कल रेट न औसत देखा गया। सरकार ने बाकायदा वादा किया अधिग्रहीत भूमि का चार गुणा मुआवजा दिया जाएगा। कमेटी पे कमेटी बैठती गई सरकारें समय "सरकाती" गईं। सभी राजनैतिक दलों ने यह मुद्दा "नजरअंदाज" कर दिया, क्योंकि किसी राजनेता की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया था। जिन नेताओं की जमीन व घर फोर की ज़द मे आये भी उन्हें इससे बाहर कर दिया गया।फोर लेन के नाम पर भूमि अधिग्रहण के बाद सब कुछ तोड़कर अब फिर डीपीआर बदल कर नये फोरलेन की खुदाई आरंभ कर दी। जिस प्रयोजन के लिए भट्ठाकुफर-ढली में सरकार ने भूमि अधिग्रहण की थी अब फिलहाल उस का क्या होगा स्पष्ट नहीं है? क्या यह एक तरह की सरकारी "ठगी" नहीं तो और क्या है, कैसा विकास होने जा रहा है । जिस काम के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया वह अब नहीं किया जा रहा। फिर सत्ता में आने से पहले फोरलेन विस्थापितों को चार गुणा मुआवज़ा देने का भुगतान करने का वादा करने वाले अब चुप कब क्यों है। कहां हैं वे राजनीतिक दल जो जनता के हित के नाम पर अपना गला फाड़कर व चिल्ला कर जनहित की दुहाई देते है। वर्ष 2014 में , परवाणु शिमला फोर लेन की प्रभावित जनता का एक प्रतिनिधिमंडल मंडल भूतल परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी से तत्कालीन सांसद विरेन्द्र कश्यप की अध्यक्षता में मिला था। उस बैठक में एनएचए आई के अधिकारियों के साथ वर्तमान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी थे। तब नितीन गडकरी ने प्रतिनिधिमंडल से वादा किया था की वर्तमान डी पी आर को रद्द किया जाएगा और जन भावना को देखते हुए नई डीपीआर बनाई जाएगी। मंत्री महोदय ने तब बहुत वाह वाही लूटी थी। उस के बाद आज तक सिर्फ पहाड ही दरकते रहे कुछ नहीं हुआ। हर शाख पे उल्लू बैठा है।
शिमला , 21 नवंबर [ देवेंद्र धर ] ! हिमाचल सरकार ने फोर लेन विस्थापितों से झूठ बोल कर वोट लेने का क्रम जारी रखा है। जयराम सरकार ने पिछले चुनाव में फोर लेन विस्थापितों से वादा किया था कि फोर लेन विस्थापितों को चार गुणा मुआवज़ा दिया जाएगा। लेकिन उन्होंने टाल मटोल कर के अपना समय निकाल लिया। कभी ये कमेटी तो कभी वह कमेटी बनाते रहे।
एक बहादुर सिपाही ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने एक जोरदार आवाज उठा कर अपने पीछे पीड़ित विस्थापितों को लगा कर हल्ला गुल्ला कर डाला। इस बहादुर फौजी से विस्थापित लोगों को काफी उम्मीद थी व प्रदेश के तमाम वह लोग जो प्रभावित थे ब्रिगेडियर खुशहाल की आवाज से आवाज मिला कर ये पीडित भी चिल्लाने लगे।
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जयराम सरकार ने इस फौजी को पटाकर अपनी झोली में डाल फौजी की चुनौती को खत्म कर डाला। फौज के इस बहादुर अफसर से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह 'टुकडा' खाना पसंद करेगा। ऐसा कहा जाता है कि सरकार की पिछलग्गू कंपनी ने बिना सोचे समझे हेलिकाप्टर पर बैठ कर फोर लेन की डीपीआर बना कर सरकार को सौंप दी।
सरकार ने भी न आव देखा न ताव झट से टैंडर देकर अवैज्ञानिक तरीके सड़क खुदवाना आरंभ करवा दिया व कंपनियां जिन के पास पहाड़ों पर सड़क बनाने का अनुभव नहीं था दरकने वाले पहाड सिर पर गिरते देख भागना आरंभ कर दिया।कुछ कंपनीज तो काम बंद कर भागने लगीं। उन्हें लगा टैंडर के अनुसार काम पूरा नहीं होगा।
कमाल तो यह है कि परमाणु से शिमला फोर लेन आज तक ठीक नहीं बन पाई है। यही हाल कीर्तपुर-नेरचौक फोर लेन का भी है। यह दावा किया जा रहा है कि परमाणु से सोलन फोरलेन तैयार है। यह सत्य नहीं है। यह सड़क कहीं न कहीं तो सिंगल लेन हो गई है। पहाड़ों की कई सतहें हिल गई हैं, मालवा आ कर सड़क पर गिरता रहता हैं निर्माण कंपनी "परिवर्तित मार्ग " बना कर एक लेन में गाडियां चलवाती रहती हैं।
सोलन से कंडाघाट, केथलीघाट फोर लेन का तो भगवान ही मालिक है। सरकर ने वाह-वाह लूटने के लिए विस्थापितों को ही लूट लिया है। सोलन- केथलीघाट फोर लेन पर पहाड दरकने से बनी हुई सड़क पर बार बार मलवा गिरने से वह आधी लेन ही रह जाती है निर्माण कार्य बाधित होता रहता हैं।
एक कहावत हैं "आगे दौड़ पीछे छोड़ की नीति निर्माण कंपनी अपनाए हुए है। ये कंपनी भी लगभग उडने को तैयार है तो फोर लेन का क्या होगा। शिमला के केथली घाट -ढ़ली वाले भाग का और भी बुरा हाल है। वैसे हाल सब पहाडों का एक सा ही है। इस भाग का सर्वेक्षण भी हवा में बैठ कर किया गया। अखबारों में इस क्षेत्र की भूमि अधिग्रहण का कारण फोरलेन बनाने के लिए बताया गया व अधिसूचना जारी की गई।
इस सर्वे को कई बार बदला भी गया ताकि कुछ खास लोगों के घरों व संपत्ति को बचाया जा सके। सरकार ने बिना सोचे समझे टेंडर देकर अवैज्ञानिक तरीके से अपनी "नामावारी" कमाने के लिए जमीनें व पहाड खोद डाले व जनता के तक घर तोड़ डाले। केथली घाट से ढ़ली वाले भाग में तो कठिन काम लगने के कारण सड़क निर्माण करने वाली कंपनी 'चेतक' के ठेकेदार काम की जटिलता को देख काम छोड़कर भाग लिये।
एन एच ए आई ने इस ठेकेदार की काफी मदद की व टूटे मकानों की सामाग्री बेच कर काफी माल बटोरा।मकान भूमि अधिग्रहण अनियमितता की हद देखिए भूमि में "शेयर" के नाम एनएचए आई ने बिना जांच करे उन भूमि स्वामियों को भी अधिग्रहण का मुआवजा दे डाला जिनकी भूमि ना तो अधिग्रहण की गई ना ही वह फोरलेन में आयी थी।
देश का ऐसा कौन सा कानून है कि भूमि अधिग्रहण के बिना ही मुआवज़ा दिया जाए चाहे भूमि बिना अधिग्रहण के राजस्व रिकार्ड में शेयर में ही दिखाई भी गई हो। कुछ लोगों की आधी भूमि का तो अधिग्रहण कर ली गयी । बची हुई भूमि को बिना अधिग्रहण के छोड़ दिया गया बिना मुआवज़ा दिये। अब भू स्वामि बची हुई जमीन का कुछ नहीं सकते है।
भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा एवं पारदर्शिता का अधिकार, सुधार तथा पुनर्वास अधिनियम, 2013 के अधिनियमानुसार न तो उचित मुआवज़ा देने में कोई पारदर्शिता नहीं अपनाई गई फिर पुनर्वास का तो सवाल ही नहीं। मुआवजा देने में अधिग्रहण नियमानुसार उचित मार्गदर्शक मानदंड नहीं अपनाये गए। आमजन की भूमि भूस्से के भाव अधिग्रहीत की गई विशेषकर नगर निगम शिमला की सीमा परिधि में न मार्केट रेट ना सर्कल रेट न औसत देखा गया।
सरकार ने बाकायदा वादा किया अधिग्रहीत भूमि का चार गुणा मुआवजा दिया जाएगा। कमेटी पे कमेटी बैठती गई सरकारें समय "सरकाती" गईं। सभी राजनैतिक दलों ने यह मुद्दा "नजरअंदाज" कर दिया, क्योंकि किसी राजनेता की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया गया था। जिन नेताओं की जमीन व घर फोर की ज़द मे आये भी उन्हें इससे बाहर कर दिया गया।फोर लेन के नाम पर भूमि अधिग्रहण के बाद सब कुछ तोड़कर अब फिर डीपीआर बदल कर नये फोरलेन की खुदाई आरंभ कर दी। जिस प्रयोजन के लिए भट्ठाकुफर-ढली में सरकार ने भूमि अधिग्रहण की थी अब फिलहाल उस का क्या होगा स्पष्ट नहीं है? क्या यह एक तरह की सरकारी "ठगी" नहीं तो और क्या है, कैसा विकास होने जा रहा है । जिस काम के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया वह अब नहीं किया जा रहा। फिर सत्ता में आने से पहले फोरलेन विस्थापितों को चार गुणा मुआवज़ा देने का भुगतान करने का वादा करने वाले अब चुप कब क्यों है। कहां हैं वे राजनीतिक दल जो जनता के हित के नाम पर अपना गला फाड़कर व चिल्ला कर जनहित की दुहाई देते है।
वर्ष 2014 में , परवाणु शिमला फोर लेन की प्रभावित जनता का एक प्रतिनिधिमंडल मंडल भूतल परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी से तत्कालीन सांसद विरेन्द्र कश्यप की अध्यक्षता में मिला था। उस बैठक में एनएचए आई के अधिकारियों के साथ वर्तमान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी थे। तब नितीन गडकरी ने प्रतिनिधिमंडल से वादा किया था की वर्तमान डी पी आर को रद्द किया जाएगा और जन भावना को देखते हुए नई डीपीआर बनाई जाएगी। मंत्री महोदय ने तब बहुत वाह वाही लूटी थी। उस के बाद आज तक सिर्फ पहाड ही दरकते रहे कुछ नहीं हुआ। हर शाख पे उल्लू बैठा है।
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