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शिमला ,15 जनवरी ! हिमाचल प्रदेश में नए वर्ष के आरंभ के साथ ही नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हुए । चुनावों के दौरान हिमाचल की जनता के सामने 10 गारंटी संकल्प पत्र के वायदे किए गए जिस पर जनता की मोहर लगने के बाद मुख्यमंत्री के समक्ष उन 10 गारंटी संकल्प पत्र को पूरी करने की जिम्मेवारी है। किसी भी देश में कोई भी सरकार सत्ता में आते ही चुनाव के दौरान घोषणा किए गए वादों पर सबसे पहले कार्य करना शुरू करती है, मग़र 10 गारंटीयों की प्राथमिकता के बावजूद भी मुख्यमंत्री ने सबसे पहले समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने को सरकार की प्राथमिकता में से एक बताई। यूं तो वंचित वर्ग ऐसे व्यक्तियों के समूह जो सामान्य आबादी की तुलना में गरीबी, सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव और हिंसा के उच्च जोखिमों का अनुभव करते हैं, उन्हें भारतीय समाज में लोगों का वंचित वर्ग कहा जाता है। वंचित वर्गों को शिक्षा, अस्पताल, भोजन, परिवहन आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं और संसाधनों से वंचित किया जाता है। समाज में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अन्य प्रकार की वंचितों की एक लंबी सूची है। मुख्यमंत्री ने सबसे पहले सुखाश्रय योजना की घोषणा की। जिसके तहत प्रदेश के निराश्रितो के लिए प्रदेश में 3 एकीकृत समाज कल्याण परिसर खोले जाने की संभावना है जिसमें बेसहारा बच्चों निराश्रित महिलाओं एवं वृद्ध जनों के लिए आवासीय परिसर एक साथ बनाया जाएगा। इस परिसर में सभी निराश्रित वृद्धजन, बेसहारा महिलाएं और निराश्रित बच्चों के लिए निशुल्क रहने की व्यवस्था होगी और वह लोग एक परिसर के अंदर एक साथ रहकर घर जैसे माहौल में अपनी जिंदगी जी सकेंगे। हिमाचल में प्रदेश सरकार ने 101 करोड़ रुपए की धनराशि से मुख्यमंत्री सुख आश्रय सहायता कोष स्थापित करने का निर्णय लिया है। योजना अनुसार जरूरतमंद बच्चों एवं निराश्रित महिलाओं को उच्च शिक्षा और व्यवसायिक कौशल विकास शिक्षा पर होने वाले व्यय को वहन करेगी। यह कदम निराश्रितों को मुख्यधारा में जोड़ने की असल कवायत लगती है । योजना के अंतर्गत निराश्रित को सभी महत्वपूर्ण त्योहारों को मनाने के लिए 500 रूपये का उत्सव अनुदान देने की घोषणा भी की गई है इस अनुदान से निराश्रित लोग भी त्योहारों के दौरान एक- दूसरे के लिए उपहार खरीद कर भेंट कर सकेंगे और त्यौहार पर घर जैसा माहौल महसूस कर सकेंगे। ऐसा नहीं है कि निराश्रित लोगो के लिए कभी सरकारों ने योजनाएं नहीं बनाई, योजनाएं बनाई गई और इन योजनाओं के माध्यम से निराश्रितो को सर छुपाने लायक आश्रय भी दिया गया और निशुल्क रहने, खाने और शिक्षा की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई। मगर ये योजनाएं अभी तक इन निराश्रितों के लिए नाकाफी ही साबित हुई। अभी भी बाल देखभाल केंद्रों, आश्रमों और सेवा सदनों में इन लोगो की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हिमाचल प्रदेश में अगर वंचितों की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सी ऐसी आबादी है जिनके पास अपने गुजर-बसर लाइक पशु भी है और खेत भी मगर इन परिवारों का जीवन कभी भी सामान्य लोगों की तरह सामान्य नहीं रहा है मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के वक्तव्य से लगता है कि उनकी नजर निराश्रितओं के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने की है जिनको वास्तविकता में सरकार की योजनाओं का लाभ कम ही मिलता है। कांग्रेस की 10 गारंटीयों में ग्रामीण इलाकों के गाय व भैंस पालकों से हर दिन 10 लीटर दूध की खरीद व 2 रुपए किलो गोबर खरीदने की योजना ऐसे लोगों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हाल ही में हिमाचल के कर्मचारियों के लिए घोषित 10 गारंटी ओं में से पहली गारंटी पुरानी पेंशन योजना को प्रदेश में लागू कर दिया। इस योजना को भी निराश्रितओं के साथ जोड़ कर देखा जा सकता है। सरकारी कर्मचारी होने का अर्थ यह नहीं है सभी साधन संपन्न है। बड़े पदों पर आसीन लोगों को छोड़ दें तो छोटे पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों की स्थिति एकदम उलट है। प्रदेश में 2003 के बाद सरकारी नौकरी मे लगे कई ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल दैनिक वेतन भोगी के रूप में ही काट दिया और नियमित होने पर मुख्य रूप से दो या चार वर्षी नौकरी कर पाए जिसके चलते नियमानुसार कर्मचारी पेंशन पाने के योग्य भी नहीं रहे। सरकार का पुरानी पेंशन देने के दूरगामी 2 फायदे तो सीधा- सीधा नजर आता है। एक तो 20 से 30 वर्ष छोटे पदों में कार्य करने वाले कर्मचारी और उसके परिवार को बुरा वक्त आने पर सामाजिक सुरक्षा देती है और दूसरी एकल परिवार की ओर अग्रसर भारतीय समाज को हतोत्साहित करने की पहल दिखता है। आज का समाज एकल परिवार की ओर अग्रसर है लेकिन सही मायनों में देखें तो अगर किसी परिवार के बुजुर्गों के पास पेंशन हो तो वह परिवार उन बुजुर्गों से कभी मुंह नहीं मोड़ता और एकल परिवार होने का भी कम ही संभावनाएं रहती है। सरकार के तमाम कोशिशों के बावजूद भी प्रदेश के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में शामिल करना आसान नहीं होगा । समाज में निराश्रितों के साथ लोगों की संवेदनाएं तो होती है। लेकिन ऐसे लोगों का उत्थान करना समाज की प्राथमिकता कभी नहीं रही है। सवाल उठता है कि क्या समाज की प्राथमिकता के बिना निराश्रितों का जीवन सामान्य लोगों की तरह सामान्य बनाया जा सकता है। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
शिमला ,15 जनवरी ! हिमाचल प्रदेश में नए वर्ष के आरंभ के साथ ही नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हुए । चुनावों के दौरान हिमाचल की जनता के सामने 10 गारंटी संकल्प पत्र के वायदे किए गए जिस पर जनता की मोहर लगने के बाद मुख्यमंत्री के समक्ष उन 10 गारंटी संकल्प पत्र को पूरी करने की जिम्मेवारी है। किसी भी देश में कोई भी सरकार सत्ता में आते ही चुनाव के दौरान घोषणा किए गए वादों पर सबसे पहले कार्य करना शुरू करती है,
मग़र 10 गारंटीयों की प्राथमिकता के बावजूद भी मुख्यमंत्री ने सबसे पहले समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने को सरकार की प्राथमिकता में से एक बताई। यूं तो वंचित वर्ग ऐसे व्यक्तियों के समूह जो सामान्य आबादी की तुलना में गरीबी, सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव और हिंसा के उच्च जोखिमों का अनुभव करते हैं, उन्हें भारतीय समाज में लोगों का वंचित वर्ग कहा जाता है। वंचित वर्गों को शिक्षा, अस्पताल, भोजन, परिवहन आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं और संसाधनों से वंचित किया जाता है। समाज में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक और अन्य प्रकार की वंचितों की एक लंबी सूची है।
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मुख्यमंत्री ने सबसे पहले सुखाश्रय योजना की घोषणा की। जिसके तहत प्रदेश के निराश्रितो के लिए प्रदेश में 3 एकीकृत समाज कल्याण परिसर खोले जाने की संभावना है जिसमें बेसहारा बच्चों निराश्रित महिलाओं एवं वृद्ध जनों के लिए आवासीय परिसर एक साथ बनाया जाएगा। इस परिसर में सभी निराश्रित वृद्धजन, बेसहारा महिलाएं और निराश्रित बच्चों के लिए निशुल्क रहने की व्यवस्था होगी और वह लोग एक परिसर के अंदर एक साथ रहकर घर जैसे माहौल में अपनी जिंदगी जी सकेंगे।
हिमाचल में प्रदेश सरकार ने 101 करोड़ रुपए की धनराशि से मुख्यमंत्री सुख आश्रय सहायता कोष स्थापित करने का निर्णय लिया है। योजना अनुसार जरूरतमंद बच्चों एवं निराश्रित महिलाओं को उच्च शिक्षा और व्यवसायिक कौशल विकास शिक्षा पर होने वाले व्यय को वहन करेगी। यह कदम निराश्रितों को मुख्यधारा में जोड़ने की असल कवायत लगती है ।
योजना के अंतर्गत निराश्रित को सभी महत्वपूर्ण त्योहारों को मनाने के लिए 500 रूपये का उत्सव अनुदान देने की घोषणा भी की गई है इस अनुदान से निराश्रित लोग भी त्योहारों के दौरान एक- दूसरे के लिए उपहार खरीद कर भेंट कर सकेंगे और त्यौहार पर घर जैसा माहौल महसूस कर सकेंगे।
ऐसा नहीं है कि निराश्रित लोगो के लिए कभी सरकारों ने योजनाएं नहीं बनाई, योजनाएं बनाई गई और इन योजनाओं के माध्यम से निराश्रितो को सर छुपाने लायक आश्रय भी दिया गया और निशुल्क रहने, खाने और शिक्षा की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई। मगर ये योजनाएं अभी तक इन निराश्रितों के लिए नाकाफी ही साबित हुई। अभी भी बाल देखभाल केंद्रों, आश्रमों और सेवा सदनों में इन लोगो की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
हिमाचल प्रदेश में अगर वंचितों की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सी ऐसी आबादी है जिनके पास अपने गुजर-बसर लाइक पशु भी है और खेत भी मगर इन परिवारों का जीवन कभी भी सामान्य लोगों की तरह सामान्य नहीं रहा है मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के वक्तव्य से लगता है कि उनकी नजर निराश्रितओं के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने की है जिनको वास्तविकता में सरकार की योजनाओं का लाभ कम ही मिलता है। कांग्रेस की 10 गारंटीयों में ग्रामीण इलाकों के गाय व भैंस पालकों से हर दिन 10 लीटर दूध की खरीद व 2 रुपए किलो गोबर खरीदने की योजना ऐसे लोगों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हाल ही में हिमाचल के कर्मचारियों के लिए घोषित 10 गारंटी ओं में से पहली गारंटी पुरानी पेंशन योजना को प्रदेश में लागू कर दिया। इस योजना को भी निराश्रितओं के साथ जोड़ कर देखा जा सकता है। सरकारी कर्मचारी होने का अर्थ यह नहीं है सभी साधन संपन्न है। बड़े पदों पर आसीन लोगों को छोड़ दें तो छोटे पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों की स्थिति एकदम उलट है। प्रदेश में 2003 के बाद सरकारी नौकरी मे लगे कई ऐसे कर्मचारी हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल दैनिक वेतन भोगी के रूप में ही काट दिया और नियमित होने पर मुख्य रूप से दो या चार वर्षी नौकरी कर पाए जिसके चलते नियमानुसार कर्मचारी पेंशन पाने के योग्य भी नहीं रहे।
सरकार का पुरानी पेंशन देने के दूरगामी 2 फायदे तो सीधा- सीधा नजर आता है। एक तो 20 से 30 वर्ष छोटे पदों में कार्य करने वाले कर्मचारी और उसके परिवार को बुरा वक्त आने पर सामाजिक सुरक्षा देती है और दूसरी एकल परिवार की ओर अग्रसर भारतीय समाज को हतोत्साहित करने की पहल दिखता है। आज का समाज एकल परिवार की ओर अग्रसर है लेकिन सही मायनों में देखें तो अगर किसी परिवार के बुजुर्गों के पास पेंशन हो तो वह परिवार उन बुजुर्गों से कभी मुंह नहीं मोड़ता और एकल परिवार होने का भी कम ही संभावनाएं रहती है।
सरकार के तमाम कोशिशों के बावजूद भी प्रदेश के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में शामिल करना आसान नहीं होगा । समाज में निराश्रितों के साथ लोगों की संवेदनाएं तो होती है। लेकिन ऐसे लोगों का उत्थान करना समाज की प्राथमिकता कभी नहीं रही है। सवाल उठता है कि क्या समाज की प्राथमिकता के बिना निराश्रितों का जीवन सामान्य लोगों की तरह सामान्य बनाया जा सकता है।
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