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चम्बा ! जुकारू त्योहार शनिवार को किलाड़ के उयांन मेले के साथ संपन्न हुआ। घाटी में माघ मास से घाटी में जुकारू का मेला मनाया जाता है। जुकारू के बाद घाटी के सभी गांव में मेलों का आयोजन किया जाता है। जुकारू मेले के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पांगी मुख्यालय किलाड़ में जुकारू के अंतिम दिन उयांन का मेला मनाया जाता है। मेले का आकर्षण स्वांग होता है। बुजुर्ग बताते हैं कि देंती नाग जब लाहौल स्पीति से पांगी के हंसु में आकर बस गया। तब से स्वांग का मेला मनाया जाता है। देंती नाग के मुख्य चैल (लागड़ी) को लकड़ी के मुखोटे, याक के बालों और अन्य तरह की सजावट से सजाया जाता है। बताया जाता है कि देंती नाग देवता को टीटू नामक गदी (पुहाल) ने चंद्रभागा में फेंक दिया था। चंद्रभागा में किलाड़ में शुक्रली नामक स्थान पर ग्वालन को मिला उसने उठा करके हंसुन में पहुंचा दिया। तब से उयांन मेला को मनाया जाता है।
चम्बा ! जुकारू त्योहार शनिवार को किलाड़ के उयांन मेले के साथ संपन्न हुआ। घाटी में माघ मास से घाटी में जुकारू का मेला मनाया जाता है। जुकारू के बाद घाटी के सभी गांव में मेलों का आयोजन किया जाता है। जुकारू मेले के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पांगी मुख्यालय किलाड़ में जुकारू के अंतिम दिन उयांन का मेला मनाया जाता है। मेले का आकर्षण स्वांग होता है।
बुजुर्ग बताते हैं कि देंती नाग जब लाहौल स्पीति से पांगी के हंसु में आकर बस गया। तब से स्वांग का मेला मनाया जाता है। देंती नाग के मुख्य चैल (लागड़ी) को लकड़ी के मुखोटे, याक के बालों और अन्य तरह की सजावट से सजाया जाता है। बताया जाता है कि देंती नाग देवता को टीटू नामक गदी (पुहाल) ने चंद्रभागा में फेंक दिया था।
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चंद्रभागा में किलाड़ में शुक्रली नामक स्थान पर ग्वालन को मिला उसने उठा करके हंसुन में पहुंचा दिया। तब से उयांन मेला को मनाया जाता है।
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