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मंडी ! वैश्विक महामारी क्रोना के चलते देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही गहरा आघात हुआ है जिसकी मार छोटे बड़े उद्योगों व्यापारियों की झेलनी पड़ रही है इसका असर छोटे-छोटे व्यवसाय पड़ा है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के परांपरागत पत्तल विक्रेताओं का लाखों का नुकसान हुआ है। ग्राम पंचायत बग्गी के गांव घरवासडा के दर्जनों परिवार टौर की पत्तल बनाकर उसे बेचने उपरांत अपनी दो वक्त की रोटी का गुजारा करते है। 3 महीने से लगातार पत्तल का कारोबार पूर्ण रूप से बंद पड़ा है। आयोजन न होने से पत्तल की लागत भी शून्य हो गई है। अब दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल हो गया है। स्थानिय लोगों का कहना है कि जनवरी से जून तक का महीना पत्तल के सीजन का होता है। इन दिनों पत्तल की आपूर्ति कड़ी मेहनत कर पूरी करनी पड़ती है। इन पत्तलों को बनाने के लिए उनके घर से सुंदरनगर के सलापड़ के जंगलों से टौर के पत्तों को किराया खर्च कर लाया जाता है। इस गांव के 70 प्रतिशत लोग पत्तल का कारोबार करते है। स्थानीय लोग कहते हैं कि पत्तल के साथ उनके द्वारा बांस के सूप,चंगेर और टोकरू भी बनाए जाते थे। लेकिन कोरोना काल में उनका सामान दुकानों में पड़ा हुआ ही खराब हो गया। उन्होंने कहा कि गांव का प्रत्येक परिवार सीजन के दौरान प्रतिदिन एक हजार पत्तलें बेच कर अपना रोजगार कमाता है, लेकिन इस बार एक भी पत्तल बेच नहीं पाया है। पत्तल निर्माताओं के अनुसार वे पत्तल और अन्य हाथ से बनाए हुए सामान से महीने का 15 हजार रूपए कमा लेते थे। लेकिन अब कोरोना महामारी के कारण क्षेत्र के लगभग 10 लाख रुपए के व्यापार का नुकसान हुआ है। लोग अपनी जमा पूंजी से अपने परिवार और सरकारी डिपो से राशन मुहैया होने से गुजारा कर रहे हैं। घरवासड़ा के दिल्लू राम का कहना है कि वे 35 साल से पत्तल का कारोबार कर रहे है। पत्तल हर समय तैयार की हुई होती है। पतल और डूने की मांग को मुशिकल से पूरा करना पड़ता था। दो अन्य महिलाओं को साथ मे पतल बनाने के लिए रखा गया है। लेकिन आयोजनों पर लगी रोक के कारण पत्तल नही बिक रही है। इससे लाखों रुपये का घाटा सहन करना पड़ रहा है।
मंडी ! वैश्विक महामारी क्रोना के चलते देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही गहरा आघात हुआ है जिसकी मार छोटे बड़े उद्योगों व्यापारियों की झेलनी पड़ रही है इसका असर छोटे-छोटे व्यवसाय पड़ा है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के परांपरागत पत्तल विक्रेताओं का लाखों का नुकसान हुआ है। ग्राम पंचायत बग्गी के गांव घरवासडा के दर्जनों परिवार टौर की पत्तल बनाकर उसे बेचने उपरांत अपनी दो वक्त की रोटी का गुजारा करते है। 3 महीने से लगातार पत्तल का कारोबार पूर्ण रूप से बंद पड़ा है। आयोजन न होने से पत्तल की लागत भी शून्य हो गई है। अब दो वक्त की रोटी कमाना भी मुश्किल हो गया है।
स्थानिय लोगों का कहना है कि जनवरी से जून तक का महीना पत्तल के सीजन का होता है। इन दिनों पत्तल की आपूर्ति कड़ी मेहनत कर पूरी करनी पड़ती है। इन पत्तलों को बनाने के लिए उनके घर से सुंदरनगर के सलापड़ के जंगलों से टौर के पत्तों को किराया खर्च कर लाया जाता है। इस गांव के 70 प्रतिशत लोग पत्तल का कारोबार करते है। स्थानीय लोग कहते हैं कि पत्तल के साथ उनके द्वारा बांस के सूप,चंगेर और टोकरू भी बनाए जाते थे। लेकिन कोरोना काल में उनका सामान दुकानों में पड़ा हुआ ही खराब हो गया। उन्होंने कहा कि गांव का प्रत्येक परिवार सीजन के दौरान प्रतिदिन एक हजार पत्तलें बेच कर अपना रोजगार कमाता है, लेकिन इस बार एक भी पत्तल बेच नहीं पाया है।
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पत्तल निर्माताओं के अनुसार वे पत्तल और अन्य हाथ से बनाए हुए सामान से महीने का 15 हजार रूपए कमा लेते थे। लेकिन अब कोरोना महामारी के कारण क्षेत्र के लगभग 10 लाख रुपए के व्यापार का नुकसान हुआ है। लोग अपनी जमा पूंजी से अपने परिवार और सरकारी डिपो से राशन मुहैया होने से गुजारा कर रहे हैं। घरवासड़ा के दिल्लू राम का कहना है कि वे 35 साल से पत्तल का कारोबार कर रहे है।
पत्तल हर समय तैयार की हुई होती है। पतल और डूने की मांग को मुशिकल से पूरा करना पड़ता था। दो अन्य महिलाओं को साथ मे पतल बनाने के लिए रखा गया है। लेकिन आयोजनों पर लगी रोक के कारण पत्तल नही बिक रही है। इससे लाखों रुपये का घाटा सहन करना पड़ रहा है।
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