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चम्बा , 13 अक्टूबर [ शिवानी ] ! विजयदशमी के बाद बकलोह में गोरखा समुदाय के लोगों ने सोमवार से पांच दिवसीय दशहरा टीका का शुभारंभ किया। गोरखा समुदाय के प्रत्येक घर के मुखिया की ओर से सुबह नहा धोकरदेवी देवताओं और कुलदेवी की पूजा-अर्चना करने के बाद खेत्री (जौ) की खेतरी को काटकर दही, चावल और लाल गुलाल मिलाकर सभी देवताओं को चढ़ाया जाता है। इसके बाद परिवार के सदस्यों को एक साथ बैठाकर मुखिया द्वारा दहीं व चावल में लाल गुलाल मिला टिक्का उनके माथे में लगाकर बीजे हुए खेत्री को पुरुषों के कान व महिलाओं के बाल में लगाया जाता है। मुखिया घर में आए सभी सगे-संबंधियों को दक्षिणा के रूप मे पैसे देता है। उनके यहां जो भी सगे-संबंधी आते हैं, वे अपने घर में बने मिस्ठान सैल, रोटी, गुजिया, फिनि, बटुक रसभरी, मट्ठी व आलू की चटनी आदि लाते हैं। यह त्योहार पांच दिन तक इसलिए चलता है, क्योंकि कई परिवारों के सदस्यों को देश व विदेश से आने में समय लगता है। अंतिम दिन गोरखा समुदाय के लोग मिलकर नदियों में जल प्रवाहित करते हैं। वही बकलोह के गोरखा सभा मे भी गोरखा सभा सभा पति विजय गुरुंग जी के अगुवाई में भी देशहरा का खुब धूम धाम से मनाया गया।
चम्बा , 13 अक्टूबर [ शिवानी ] ! विजयदशमी के बाद बकलोह में गोरखा समुदाय के लोगों ने सोमवार से पांच दिवसीय दशहरा टीका का शुभारंभ किया। गोरखा समुदाय के प्रत्येक घर के मुखिया की ओर से सुबह नहा धोकरदेवी देवताओं और कुलदेवी की पूजा-अर्चना करने के बाद खेत्री (जौ) की खेतरी को काटकर दही, चावल और लाल गुलाल मिलाकर सभी देवताओं को चढ़ाया जाता है।
इसके बाद परिवार के सदस्यों को एक साथ बैठाकर मुखिया द्वारा दहीं व चावल में लाल गुलाल मिला टिक्का उनके माथे में लगाकर बीजे हुए खेत्री को पुरुषों के कान व महिलाओं के बाल में लगाया जाता है। मुखिया घर में आए सभी सगे-संबंधियों को दक्षिणा के रूप मे पैसे देता है। उनके यहां जो भी सगे-संबंधी आते हैं, वे अपने घर में बने मिस्ठान सैल, रोटी, गुजिया, फिनि, बटुक रसभरी, मट्ठी व आलू की चटनी आदि लाते हैं।
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यह त्योहार पांच दिन तक इसलिए चलता है, क्योंकि कई परिवारों के सदस्यों को देश व विदेश से आने में समय लगता है। अंतिम दिन गोरखा समुदाय के लोग मिलकर नदियों में जल प्रवाहित करते हैं। वही बकलोह के गोरखा सभा मे भी गोरखा सभा सभा पति विजय गुरुंग जी के अगुवाई में भी देशहरा का खुब धूम धाम से मनाया गया।
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