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चम्बा , 24 सितंबर [ शिवानी ] ! आज हम अपने दर्शकों को नेपाल काठमांडू में स्थित भगवान पशुपतिनाथ के दर्शनों को करवाएंगे जोकि बागमती नदी के तट पर स्थित है। हमारी टीम ने जीरो ग्राउंड रिपोर्टिंग को करते हुए अपने देश भारत के साथ लगते दूसरे देश नेपाल में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ स्वरूप पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शनों को करवाने का भरसक प्रयास किया। आपको बता दे कि पशुपतिनाथ की उत्पत्ति के पीछे दो पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक कहानी का संबंध सीधे सीधे पांडवों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु,भगवान शिव उनके इस कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए। पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए पर भगवान भोले नाथ पांडवों से नही मिलना चाहते थे। तो उनसे छिपने के लिए भगवान शिव ने भैंसे का भेष धारण कर लिया था। केदारनाथ में ही पांडवों को शिव जी ने भैंसे के रूप में अपने दर्शन दिए थे। यह शिवलिंग है पशुपतिनाथ का, इस भैंसे का मुख धरती से जहां बाहर आया, उसे पशुपतिनाथ कहा गया। इसलिए केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों को करने के बाद नेपाल में स्तिथ भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ शिव मंदिर के दर्शनों को किए बिना यह यात्रा अधूरी मानी जाती है। भगवान भोले नाथ के इसी धाम में उन सभी भक्तों की आस्था झलकती है जोकि भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था रखते है। पवित्र बागमती नदी के तट पर स्थित यह बाबा भोलेनाथ का एक ऐसा अलौकिक और शिव मंदिर है जिसको की पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के पंचमुखी स्वरूप शिव लिंग के दर्शन होते है जिन्हे मंदिर के बाहरी छोर से प्रक्रिमा करते हुए बारी बारी से देखा जा सकता है। भूगर्व से निकले इस शिव लिंग की कितनी गहराई है इसका उल्लेख तो कोई आज तक नही कर पाया है पर भूमि से ऊपर शृंगार से सुशोभित इस शिव लिंग की ऊंचाई करीब तीन फुट के आसपास है। माना जाता है कि देवों के देव भगवान भोले नाथ के दर्शन मात्र से ही मनुष्य को उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है तो वहीं मनुष्य अगर फिर से किसी योनि में प्रवेश करता है तो उस मनुष्य को पशु योनी से छुटकारा मिल जाता है ऐसा उल्लेख ग्रंथो में लिखा विराजमान है। माना जाता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से अपनी अधूरी इस यात्रा को पूरी कर चुके हरियाणा कुरुक्षेत्र से आए संत कुमार, और हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला से आए, यह शिव भगत बेहद खुश थे। हजारों किलोमीटर की लंबी इस यात्रा को करने के बाद हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा से आए 21, लोगों का यह ट्रूप और हरियाणा से आए यह शिव भक्त क्या कहते है आइए उन्ही से सुन लेते है। यह बात भी सत्य है कि जिस किसी ने भी इस धरती में जन्म लिया है उसको यहां से जाना ही पड़ेगा और अगर इस शरीर की अंतिम विदाई भगवान भोलेनाथ के चरणों से होकर हो तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है। ऐसा ही सत्य को दर्शाता यह दृश्य पशुपतिनाथ मंदिर में देखने को मिल जाता है। इस ऐतिहासिक पशुपतिनाथ मंदिर की एक नही अपितु कई और विशेषताएं है पर सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण विशेषता इसमें एक और यह भी है कि भगवान शिव मंदिर के ठीक पिछली तरफ कुछ ही फर्लांग की दूरी पर पवित्र भागमती नदी बहती है और इसी नदी के तट पर नेपाल के मूल निवासियों का अंतिम देहसंस्कार भी किया जाता है। इस तट पर रोजाना कई अनगनित शवों का अंतिम संस्कार एक साथ किया जाता है।
चम्बा , 24 सितंबर [ शिवानी ] ! आज हम अपने दर्शकों को नेपाल काठमांडू में स्थित भगवान पशुपतिनाथ के दर्शनों को करवाएंगे जोकि बागमती नदी के तट पर स्थित है। हमारी टीम ने जीरो ग्राउंड रिपोर्टिंग को करते हुए अपने देश भारत के साथ लगते दूसरे देश नेपाल में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ स्वरूप पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शनों को करवाने का भरसक प्रयास किया।
आपको बता दे कि पशुपतिनाथ की उत्पत्ति के पीछे दो पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। जिनमें से एक कहानी का संबंध सीधे सीधे पांडवों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु,भगवान शिव उनके इस कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए। पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए पर भगवान भोले नाथ पांडवों से नही मिलना चाहते थे। तो उनसे छिपने के लिए भगवान शिव ने भैंसे का भेष धारण कर लिया था। केदारनाथ में ही पांडवों को शिव जी ने भैंसे के रूप में अपने दर्शन दिए थे।
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यह शिवलिंग है पशुपतिनाथ का, इस भैंसे का मुख धरती से जहां बाहर आया, उसे पशुपतिनाथ कहा गया। इसलिए केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों को करने के बाद नेपाल में स्तिथ भगवान शिव को समर्पित पशुपतिनाथ शिव मंदिर के दर्शनों को किए बिना यह यात्रा अधूरी मानी जाती है।
भगवान भोले नाथ के इसी धाम में उन सभी भक्तों की आस्था झलकती है जोकि भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था रखते है।
पवित्र बागमती नदी के तट पर स्थित यह बाबा भोलेनाथ का एक ऐसा अलौकिक और शिव मंदिर है जिसको की पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के पंचमुखी स्वरूप शिव लिंग के दर्शन होते है जिन्हे मंदिर के बाहरी छोर से प्रक्रिमा करते हुए बारी बारी से देखा जा सकता है। भूगर्व से निकले इस शिव लिंग की कितनी गहराई है इसका उल्लेख तो कोई आज तक नही कर पाया है पर भूमि से ऊपर शृंगार से सुशोभित इस शिव लिंग की ऊंचाई करीब तीन फुट के आसपास है।
माना जाता है कि देवों के देव भगवान भोले नाथ के दर्शन मात्र से ही मनुष्य को उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है तो वहीं मनुष्य अगर फिर से किसी योनि में प्रवेश करता है तो उस मनुष्य को पशु योनी से छुटकारा मिल जाता है ऐसा उल्लेख ग्रंथो में लिखा विराजमान है। माना जाता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से अपनी अधूरी इस यात्रा को पूरी कर चुके हरियाणा कुरुक्षेत्र से आए संत कुमार, और हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिला से आए, यह शिव भगत बेहद खुश थे। हजारों किलोमीटर की लंबी इस यात्रा को करने के बाद हिमाचल प्रदेश के जिला चम्बा से आए 21, लोगों का यह ट्रूप और हरियाणा से आए यह शिव भक्त क्या कहते है आइए उन्ही से सुन लेते है।
यह बात भी सत्य है कि जिस किसी ने भी इस धरती में जन्म लिया है उसको यहां से जाना ही पड़ेगा और अगर इस शरीर की अंतिम विदाई भगवान भोलेनाथ के चरणों से होकर हो तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है।
ऐसा ही सत्य को दर्शाता यह दृश्य पशुपतिनाथ मंदिर में देखने को मिल जाता है। इस ऐतिहासिक पशुपतिनाथ मंदिर की एक नही अपितु कई और विशेषताएं है पर सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण विशेषता इसमें एक और यह भी है कि भगवान शिव मंदिर के ठीक पिछली तरफ कुछ ही फर्लांग की दूरी पर पवित्र भागमती नदी बहती है और इसी नदी के तट पर नेपाल के मूल निवासियों का अंतिम देहसंस्कार भी किया जाता है। इस तट पर रोजाना कई अनगनित शवों का अंतिम संस्कार एक साथ किया जाता है।
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