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शिमला ! प्रदेश उच्च न्यायालय ने भारत- तिब्बत पुलिस बल की 9 वीं बटालियन के कमांडेंट व गृह मंत्रालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसके तहत उन्होंने एक सैनिक को केवल 40% विकलांगता के आधार पर विकलांगता पेंशन देने से मना कर दिया था। यह निर्णय पारित करते हुए न्यायमूर्ति सबीना व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि मामला उसकी थकी हुई कहानी को प्रकट करता है। एक सैनिक जिसे युद्ध के मैदान में लड़ने की बजाय अपनी विकलांगता पेंशन के लिए न्यायालय में लड़ना पड़ रहा है। अदालत ने अपील में पारित निर्णय में सरकार को निर्देश दिया कि पूर्व कांस्टेबल भीष्म सिंह को विकलांगता पेंशन का भुगतान तीन महीने के भीतर 9 फीसदी ब्याज सहित करे। कोर्ट ने भारत-तिब्बत पुलिस बल के पूर्व कांस्टेबल की अपील को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया जिसकी बायीं आंख में चोट लगी थी व मेडिकल बोर्ड ने उसे कर्तव्यों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था। अपील में दिए तथ्यों के अनुसार 9 वीं बटालियन के कमांडेंट व गृह मंत्रालय ने अपीलकर्ता के विकलांगता पेंशन के दावे को केंद्रीय सिविल सेवा विकलांगता पेंशन का हवाला देते हुए रद्द कर दिया था। उनके अनुसार 60% से कम विकलांगता वाला व्यक्ति इस लाभ का हक नही रखता है। अदालत ने कहा कि यह विवाद में नहीं है कि सेवा के दौरान अपीलकर्ता को 40% की सीमा तक विकलांगता का सामना करना पड़ा है। न्यायालय ने कहा कि हालांकि केंद्रीय सेवा विकलांगता पेंशन नियम यह स्पष्ट करते हैं कि विकलांगता के प्रत्येक प्रतिशत के लिए, विकलांगता पेंशन की दरें विकलांगता के हिसाब से अलग अलग तय की गई है। यहां तक कि 50% से कम पर मेडिकल बोर्ड द्वारा मूल्यांकन की गई विकलांगता के मामले में उसे 50% गिने जाने का भी हवाला दिया गया है। अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता उसकी सेवा पेंशन के अतिरिक्त विकलांगता पेंशन लेने का भी हक़ रखता है ।
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