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शिमला ! हिमाचल प्रदेश मेडिकल अफसर संघ ने आज सरकार की उस जांच पर सवाल उठाए हैं जिसमें डीडीयू शिमला में मरीज द्वारा आत्महत्या के मामले में चिकित्सकों ,नर्सिंग स्टाफ और फार्मासिस्ट को दोषी ठहराया गया है। संघ ने कहां के यह सच में ही एक बहुत ही दुखद घटना थी और पूरे संघ की संवेदनाएं पीड़ित के परिवार के साथ हैं और संघ चाहता है कि पीड़िता को न्याय मिले ।लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की जांच कमेटी द्वारा आत्महत्या के मामले में चिकित्सकों ,नर्सेज और फार्मासिस्ट को दोषी दिखाना अत्यंत दुखद है,जबकि वो दिन रात सीमित साधनों में काम कर रहे हैं ।और अगर यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर मौत का जिम्मेदार चिकित्सक, नर्सेज और फार्मासिस्टों को ठहराया जाने लगेगा। संघ ने कड़े शब्दों में कहा कि इस तरह की जांच से जनता की आंखों में जो धूल झोंकने का प्रयास किया जा रहा है वह एक बहुत बड़ी विडंबना और दुर्भाग्यपूर्ण है। संघ ने जनता से भी अपील की है कि समय आ गया है जब जनता को यह सवाल सरकार से पूछना चाहिए ना की चिकित्सकोँ से। अगर अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी, नर्सेज की कमी ,फार्मासिस्टों की कमी, लैब सहायकों की कमी, बिस्तरों की कमी,जांच मशीनोँ की कमी और मॉनिटरिंग सिस्टम की कमी है तो, किस लिए है?? उसके लिए चिकित्सक जिम्मेवार नहीं सरकारें जिम्मेदार हैं। संघ सरकार से सवाल पूछता है कि जब डीडीयू की गैप एनालिसिस कमेटी ने 4 महीने के अंदर दो बार सरकार और स्वास्थ्य निदेशालय को सुझाव दिए ,तो उन सुझावों और कमियों के ऊपर अमल करते हुए क्यों संसाधनों की कमी को दूर नहीं किया गया। इसके लिये कौन दोषी है? संघ मांग करता है कि इस मामले में एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञों की टीम जिसमें चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ, नर्सिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ और फार्मासिस्ट क्षेत्र के विशेषज्ञों को माननीय कार्यरत न्यायधीश या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित करके निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
शिमला ! हिमाचल प्रदेश मेडिकल अफसर संघ ने आज सरकार की उस जांच पर सवाल उठाए हैं जिसमें डीडीयू शिमला में मरीज द्वारा आत्महत्या के मामले में चिकित्सकों ,नर्सिंग स्टाफ और फार्मासिस्ट को दोषी ठहराया गया है। संघ ने कहां के यह सच में ही एक बहुत ही दुखद घटना थी और पूरे संघ की संवेदनाएं पीड़ित के परिवार के साथ हैं और संघ चाहता है कि पीड़िता को न्याय मिले ।लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की जांच कमेटी द्वारा आत्महत्या के मामले में चिकित्सकों ,नर्सेज और फार्मासिस्ट को दोषी दिखाना अत्यंत दुखद है,जबकि वो दिन रात सीमित साधनों में काम कर रहे हैं ।और अगर यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हर मौत का जिम्मेदार चिकित्सक, नर्सेज और फार्मासिस्टों को ठहराया जाने लगेगा। संघ ने कड़े शब्दों में कहा कि इस तरह की जांच से जनता की आंखों में जो धूल झोंकने का प्रयास किया जा रहा है वह एक बहुत बड़ी विडंबना और दुर्भाग्यपूर्ण है।
संघ ने जनता से भी अपील की है कि समय आ गया है जब जनता को यह सवाल सरकार से पूछना चाहिए ना की चिकित्सकोँ से। अगर अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी, नर्सेज की कमी ,फार्मासिस्टों की कमी, लैब सहायकों की कमी, बिस्तरों की कमी,जांच मशीनोँ की कमी और मॉनिटरिंग सिस्टम की कमी है तो, किस लिए है?? उसके लिए चिकित्सक जिम्मेवार नहीं सरकारें जिम्मेदार हैं। संघ सरकार से सवाल पूछता है कि जब डीडीयू की गैप एनालिसिस कमेटी ने 4 महीने के अंदर दो बार सरकार और स्वास्थ्य निदेशालय को सुझाव दिए ,तो उन सुझावों और कमियों के ऊपर अमल करते हुए क्यों संसाधनों की कमी को दूर नहीं किया गया। इसके लिये कौन दोषी है?
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संघ मांग करता है कि इस मामले में एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञों की टीम जिसमें चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ, नर्सिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ और फार्मासिस्ट क्षेत्र के विशेषज्ञों को माननीय कार्यरत न्यायधीश या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित करके निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
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