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शिमला, 03 मई [ विशाल सूद ] ! शिमला के गेयटी थिएटर में शनिवार की संध्या एक विशिष्ट आत्मिक अनुभव का साक्षी बनी, जब संत निरंकारी मिशन द्वारा “वननेस टॉक” अर्थात् संवाद-एकत्व कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन एक गहन आत्ममंथन की यात्रा थी एक प्रयास, जिसमें मनुष्य स्वयं को बाहरी चकाचौंध से परे देख सके, भीतर झांक सके और आत्मा की शांति को स्पर्श कर सके। संत निरंकारी मण्डल दिल्ली से पधारे (कार्यकारिणी सदस्य) आदरणीय श्री राकेश मुटरेजा ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में बताया कि आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में भले ही व्यक्ति के पास भौतिक सुख-सुविधाएं हों, परंतु अंतर्मन में व्याप्त अशांति उसे सच्चे सुख से वंचित कर देती है। उन्होंने कहा कि सच्चा संतुलन और स्थायी सुकून बाहरी उपलब्धियों से नहीं, भीतर की अनुभूति से प्राप्त होता है। यह संवाद वाणी की नहीं अपितु अनुभूति की भाषा है। उन्होंने आगे वेदों और पुराणों का उदाहरण देते हुए भक्ति के मार्ग को प्रेम से जोड़ते हुए समझाया कि ‘भक्ति तभी फलित होती है जब वह सतगुरु की कृपा से युक्त हो। सतगुरु के प्रति समर्पण और प्रेम से ही आत्मबोध की यात्रा आरंभ होती है।’ उन्होंने श्रोताओं को जीवन की सरलता, मौन की शक्ति और आंतरिक स्थिरता को अपनाने का संदेश दिया। कार्यक्रम की सांस्कृतिक प्रस्तुति में नीमा अकादमी (दिल्ली) के प्रिंसिपल डॉ. विनोद गंधर्व एवं उनकी संगीत टीम ने भक्ति संगीत की प्रस्तुति देकर सभागार को भाव विभोर कर दिया। उनकी प्रस्तुतियों ने उपस्थित श्रोताओं के हृदय को छू लिया और पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। इस अवसर पर शहर के अनेक गणमान्य अतिथि, स्थानीय निवासी, पर्यटक एवं मिशन के श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सभी ने इस कार्यक्रम को न केवल सुना, बल्कि भीतर तक अनुभव किया। निसंदेह संत निरंकारी मिशन की यह पहल जीवन के उस विराम की ओर संकेत करती है, जहाँ व्यक्ति ठहरकर यह सोच सके कि उसकी वास्तविक पहचान क्या है? और वह आत्मिक शांति कहाँ है? जिसकी उसे सदैव तलाश रहती है।
शिमला, 03 मई [ विशाल सूद ] ! शिमला के गेयटी थिएटर में शनिवार की संध्या एक विशिष्ट आत्मिक अनुभव का साक्षी बनी, जब संत निरंकारी मिशन द्वारा “वननेस टॉक” अर्थात् संवाद-एकत्व कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन एक गहन आत्ममंथन की यात्रा थी एक प्रयास, जिसमें मनुष्य स्वयं को बाहरी चकाचौंध से परे देख सके, भीतर झांक सके और आत्मा की शांति को स्पर्श कर सके।
संत निरंकारी मण्डल दिल्ली से पधारे (कार्यकारिणी सदस्य) आदरणीय श्री राकेश मुटरेजा ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में बताया कि आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में भले ही व्यक्ति के पास भौतिक सुख-सुविधाएं हों, परंतु अंतर्मन में व्याप्त अशांति उसे सच्चे सुख से वंचित कर देती है। उन्होंने कहा कि सच्चा संतुलन और स्थायी सुकून बाहरी उपलब्धियों से नहीं, भीतर की अनुभूति से प्राप्त होता है। यह संवाद वाणी की नहीं अपितु अनुभूति की भाषा है।
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उन्होंने आगे वेदों और पुराणों का उदाहरण देते हुए भक्ति के मार्ग को प्रेम से जोड़ते हुए समझाया कि ‘भक्ति तभी फलित होती है जब वह सतगुरु की कृपा से युक्त हो। सतगुरु के प्रति समर्पण और प्रेम से ही आत्मबोध की यात्रा आरंभ होती है।’ उन्होंने श्रोताओं को जीवन की सरलता, मौन की शक्ति और आंतरिक स्थिरता को अपनाने का संदेश दिया।
कार्यक्रम की सांस्कृतिक प्रस्तुति में नीमा अकादमी (दिल्ली) के प्रिंसिपल डॉ. विनोद गंधर्व एवं उनकी संगीत टीम ने भक्ति संगीत की प्रस्तुति देकर सभागार को भाव विभोर कर दिया। उनकी प्रस्तुतियों ने उपस्थित श्रोताओं के हृदय को छू लिया और पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।
इस अवसर पर शहर के अनेक गणमान्य अतिथि, स्थानीय निवासी, पर्यटक एवं मिशन के श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। सभी ने इस कार्यक्रम को न केवल सुना, बल्कि भीतर तक अनुभव किया।
निसंदेह संत निरंकारी मिशन की यह पहल जीवन के उस विराम की ओर संकेत करती है, जहाँ व्यक्ति ठहरकर यह सोच सके कि उसकी वास्तविक पहचान क्या है? और वह आत्मिक शांति कहाँ है? जिसकी उसे सदैव तलाश रहती है।
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