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चम्बा , 24 दिसंबर [ शिवानी ] ! हिमाचल प्रदेश के चंबा से एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। रावी नदी पर बने चंबा के चमेरा चरण एक के डैम में पिछले कई दिनों से पानी में लगातार लकड़ियों का जखीरा तैर रहा है जिनमें कटे हुए बड़े बड़े पेड़ साफ देखे जा सकते हैं । गौरतलब है कि बरसात के दिनों में हिमाचल प्रदेश में हुई भयंकर बारिश से बाढ़ से हिमालयन रेंज के पहाड़ों से यह पेड़ बह कर रावी नदी में तैरते नजर आए थे। अब यही सारे पेड़ और लकड़ी चमेरा डैम में दूर दूर तक देखी जा सकती है। लोगों ने इसे पहाड़ों में अवैध कटान माना है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। साफ तौर से देखा जा सकता है इस चमेरा बांध में जो रावी नदी का पानी है वहाँ पानी के ऊपर तैरती हुई बड़ी बड़ी लकड़ियों के जखीरे से यह लग रहा है कि यहां बांध पानी का नहीं बल्कि लकड़ियों का बांध बना है, इतनी भारी मात्रा में पेड़ों के कटान से जंगलो के साथ जंगली जानवरों का नाश होना यह कहीं न कहीं प्रकृति के विनाश को संकेत दे रहा है। अब हालत ऐसे बने हाय है किपिछले तीन महीनों से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है और पहाड़ बर्फ को तरस रहे है। दिसंबर महीना समाप्त होने को है न बारिश न बर्फबारी हर तरफ सूखा, पेड़ों के कटान प्रकृति का विनाश इसके दुष्परिणाम हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतने हो।पर्यावरण से छेड़छाड़ और अवैध तौर से अशोक बकारिया का कहना है कि जंगलों से अवैध रूप से हो रहे पेड़ो के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा है और कहीं न कहीं पेड़ों के कटान से प्रकृति का विनाश और इसके दुष्परिणाम हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतने होंगे। जीवनदायनी संपदा जो हमें पोषित करती है को नष्ट होने से बचाना होगा
चम्बा , 24 दिसंबर [ शिवानी ] ! हिमाचल प्रदेश के चंबा से एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। रावी नदी पर बने चंबा के चमेरा चरण एक के डैम में पिछले कई दिनों से पानी में लगातार लकड़ियों का जखीरा तैर रहा है जिनमें कटे हुए बड़े बड़े पेड़ साफ देखे जा सकते हैं ।
गौरतलब है कि बरसात के दिनों में हिमाचल प्रदेश में हुई भयंकर बारिश से बाढ़ से हिमालयन रेंज के पहाड़ों से यह पेड़ बह कर रावी नदी में तैरते नजर आए थे। अब यही सारे पेड़ और लकड़ी चमेरा डैम में दूर दूर तक देखी जा सकती है। लोगों ने इसे पहाड़ों में अवैध कटान माना है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।
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साफ तौर से देखा जा सकता है इस चमेरा बांध में जो रावी नदी का पानी है वहाँ पानी के ऊपर तैरती हुई बड़ी बड़ी लकड़ियों के जखीरे से यह लग रहा है कि यहां बांध पानी का नहीं बल्कि लकड़ियों का बांध बना है, इतनी भारी मात्रा में पेड़ों के कटान से जंगलो के साथ जंगली जानवरों का नाश होना यह कहीं न कहीं प्रकृति के विनाश को संकेत दे रहा है।
अब हालत ऐसे बने हाय है किपिछले तीन महीनों से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है और पहाड़ बर्फ को तरस रहे है। दिसंबर महीना समाप्त होने को है न बारिश न बर्फबारी हर तरफ सूखा, पेड़ों के कटान प्रकृति का विनाश इसके दुष्परिणाम हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतने हो।
पर्यावरण से छेड़छाड़ और अवैध तौर से अशोक बकारिया का कहना है कि जंगलों से अवैध रूप से हो रहे पेड़ो के अंधाधुंध कटान से पर्यावरण को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा है और कहीं न कहीं पेड़ों के कटान से प्रकृति का विनाश और इसके दुष्परिणाम हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतने होंगे। जीवनदायनी संपदा जो हमें पोषित करती है को नष्ट होने से बचाना होगा
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