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देश व हिमाचल प्रदेश वासियों को अटल टनल के उद्घाटन पर हार्दिक बधाई। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस “महा निर्माण” को देश को समर्पित किया। इस अटल टनल के निर्माण में 80 श्रमिकों ने अपनी जान दी और 10 वर्ष के अंदर 3200 करोड़ और रुपए खर्च किए । सामरिक दृष्टि से यह टनल बनने से प्रदेश वासियों को तो फायदा होगा ही होगा साथ में देश की रक्षा में यह टनल एक महत्वपूर्ण योगदान देगी। चीन और पाकिस्तान से लगने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए मनाली से कुछ ही घंटों में सेना पहुंच जाया करेगी। आधुनिक स्तर की टनल के निर्माण में भले ही बीआरओ ने देश और दुनिया की वाहवाही लूटी हो लेकिन यह सत्य है कि जिन लोगों ने इस टनल के निर्माण में अपनी जान गवाई उन्हें भी याद करना होगा। हमारा उन बहदूर जांबाज श्रमिकों को नमन। सोलंग नाला से अटल टनल के साउथ पोर्टल तक बनने वाली 23 किलोमीटर लंबी सड़क का कार्य वर्ष 2002 में शुरू हो गया था। इसके साथ-साथ इस टनल के निर्माण में कई ऐसी घटनाएं हुई जिनमें कई श्रमिक आज तक अपने घर वापस नहीं आ सके और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। एक बार फिर प्रदेश व देशवासियों को इस कार्य के लिए हार्दिक बधाई। हमारे पास उपलब्ध चित्रों के अनुसार टनल के मुख्य द्वार पर मात्र अंग्रेजी में ‘अटल टनल रोहतांग’ लिखा गया है,(अगर हमारी जानकारी सही नहीं है तो सूचित करें) सौभाग्य से इस टनल का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है न जाने क्यों उनकी दृष्टि इस बात पर नहीं पड़ी कि टनल के मुख्य द्वारों पर बोर्ड मात्र अंग्रेजी में लिखें है, हिंदी का कहीं नामोनिशान तक नहीं है। अगर यह किसी देश जैसे कि चीन पाकिस्तान ने बनाई होती तो क्या चीनी भाषा या उर्दू में इस महत्वपूर्ण सुरंग के मुख्य द्वार पर वे अपनी का भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। केंद्र सरकार का यह विभाग जिसे “सीमा सड़क संगठन” कहते हैं राजभाषा अधिनियम को ताक पर रखकर मात्र अंग्रेजी में ये यह मुख्य नाम पट्ट कैसे लगा सकता है। क्या सीमा सड़क संगठन के पास देश की राजभाषा नीति को लागू करने के लिए कोई राजभाषा अधिकारी नहीं है या कोई नामित अधिकारी नहीं है जो राजभाषा अधिनियम 1963 राजभाषा अधिनियम 1976 की पालना के लिए काम करें। हम राजभाषा अधिनियम 1963(का 19) की धारा 3 उस धारा 4 के साथ पठित धारा 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्रीय सरकार ने जो नियम बनाए हैं उनकी पालना प्रतिबद्धता की और ध्यान आकृषित करवाना चाहते हैं। राजभाषा अधिनियम 1976 की धारा10(3) की ओर सीमा सड़क संगठन का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर यह लिखा गया है कि केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग के लिए ‘सभी नाम पट्ट, सूचना पट्ट, पत्र शीर्ष…” व अन्य मदें हिंदी व अंग्रेजी में लिखी जाएंगी और भाषाओं का क्रम पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी रहेगा। हां, यदि केंद्रीय सरकार यह आवश्यक समझे तो साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी कार्यालय या विभाग को उपरोक्त इन अनुबंधों से छूट दे सकती है। क्या केंद्र सरकार ने सीमा सड़क संगठन को यह छूट दे दी है कि मात्र अंग्रेजी में ही बोर्डों को लिखकर मुक्ति पा ली जाए। आप विदेशों में कहीं भी चले जाएं, जिन देशों की मुख्य भाषा , मातृभाषा या राजभाषा अंग्रेजी से अन्यत्र हैं वे पहले उस भाषा में लिखते हैं बाद में यात्रियों व पर्यटकों की सुविधा के लिए अंग्रेजी में उसी के नीचे लिखा जाता है या अलग से कोई बोर्ड लगाया जाता है। इस महानिर्माण पर देश की भाषा का उपयोग अंतरराष्ट्रीय जगत को यह बताने के लिए कि भारतीय अपनी भाषा का कितना सम्मान करते हैं हिंदी भाषा में नाम पर श्यामपट्ट व सूचना पट्ट लगाना बहुत जरूरी होगा मात्र अंग्रेजी से काम नहीं चलेगा। शायद माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ध्यान इस तथ्य की ओर नहीं गया कि सीमा सड़क संगठन ने राजभाषा अधिनियम कैसे वह क्यों भुला दिया। आशा है उद्घाटन के बाद भी सीमा सड़क संगठन जिसका दायित्व इस महान निर्माण के रखरखाव का है इसे जल्दी ठीक करेगा ताकी चीनी, पाकिस्तानी वह अन्य विदेशी पर्यटक भी देख सकें कि भारत अपनी राजभाषा का कितना सम्मान करता है।
देश व हिमाचल प्रदेश वासियों को अटल टनल के उद्घाटन पर हार्दिक बधाई। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस “महा निर्माण” को देश को समर्पित किया। इस अटल टनल के निर्माण में 80 श्रमिकों ने अपनी जान दी और 10 वर्ष के अंदर 3200 करोड़ और रुपए खर्च किए । सामरिक दृष्टि से यह टनल बनने से प्रदेश वासियों को तो फायदा होगा ही होगा साथ में देश की रक्षा में यह टनल एक महत्वपूर्ण योगदान देगी। चीन और पाकिस्तान से लगने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए मनाली से कुछ ही घंटों में सेना पहुंच जाया करेगी। आधुनिक स्तर की टनल के निर्माण में भले ही बीआरओ ने देश और दुनिया की वाहवाही लूटी हो लेकिन यह सत्य है कि जिन लोगों ने इस टनल के निर्माण में अपनी जान गवाई उन्हें भी याद करना होगा। हमारा उन बहदूर जांबाज श्रमिकों को नमन। सोलंग नाला से अटल टनल के साउथ पोर्टल तक बनने वाली 23 किलोमीटर लंबी सड़क का कार्य वर्ष 2002 में शुरू हो गया था। इसके साथ-साथ इस टनल के निर्माण में कई ऐसी घटनाएं हुई जिनमें कई श्रमिक आज तक अपने घर वापस नहीं आ सके और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। एक बार फिर प्रदेश व देशवासियों को इस कार्य के लिए हार्दिक बधाई।
हमारे पास उपलब्ध चित्रों के अनुसार टनल के मुख्य द्वार पर मात्र अंग्रेजी में ‘अटल टनल रोहतांग’ लिखा गया है,(अगर हमारी जानकारी सही नहीं है तो सूचित करें) सौभाग्य से इस टनल का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है न जाने क्यों उनकी दृष्टि इस बात पर नहीं पड़ी कि टनल के मुख्य द्वारों पर बोर्ड मात्र अंग्रेजी में लिखें है, हिंदी का कहीं नामोनिशान तक नहीं है। अगर यह किसी देश जैसे कि चीन पाकिस्तान ने बनाई होती तो क्या चीनी भाषा या उर्दू में इस महत्वपूर्ण सुरंग के मुख्य द्वार पर वे अपनी का भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। केंद्र सरकार का यह विभाग जिसे “सीमा सड़क संगठन” कहते हैं राजभाषा अधिनियम को ताक पर रखकर मात्र अंग्रेजी में ये यह मुख्य नाम पट्ट कैसे लगा सकता है। क्या सीमा सड़क संगठन के पास देश की राजभाषा नीति को लागू करने के लिए कोई राजभाषा अधिकारी नहीं है या कोई नामित अधिकारी नहीं है जो राजभाषा अधिनियम 1963 राजभाषा अधिनियम 1976 की पालना के लिए काम करें। हम राजभाषा अधिनियम 1963(का 19) की धारा 3 उस धारा 4 के साथ पठित धारा 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्रीय सरकार ने जो नियम बनाए हैं उनकी पालना प्रतिबद्धता की और ध्यान आकृषित करवाना चाहते हैं। राजभाषा अधिनियम 1976 की धारा10(3) की ओर सीमा सड़क संगठन का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर यह लिखा गया है कि केंद्रीय सरकार के किसी कार्यालय में प्रयोग के लिए ‘सभी नाम पट्ट, सूचना पट्ट, पत्र शीर्ष…” व अन्य मदें हिंदी व अंग्रेजी में लिखी जाएंगी और भाषाओं का क्रम पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी रहेगा।
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हां, यदि केंद्रीय सरकार यह आवश्यक समझे तो साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी कार्यालय या विभाग को उपरोक्त इन अनुबंधों से छूट दे सकती है। क्या केंद्र सरकार ने सीमा सड़क संगठन को यह छूट दे दी है कि मात्र अंग्रेजी में ही बोर्डों को लिखकर मुक्ति पा ली जाए। आप विदेशों में कहीं भी चले जाएं, जिन देशों की मुख्य भाषा , मातृभाषा या राजभाषा अंग्रेजी से अन्यत्र हैं वे पहले उस भाषा में लिखते हैं बाद में यात्रियों व पर्यटकों की सुविधा के लिए अंग्रेजी में उसी के नीचे लिखा जाता है या अलग से कोई बोर्ड लगाया जाता है। इस महानिर्माण पर देश की भाषा का उपयोग अंतरराष्ट्रीय जगत को यह बताने के लिए कि भारतीय अपनी भाषा का कितना सम्मान करते हैं हिंदी भाषा में नाम पर श्यामपट्ट व सूचना पट्ट लगाना बहुत जरूरी होगा मात्र अंग्रेजी से काम नहीं चलेगा। शायद माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ध्यान इस तथ्य की ओर नहीं गया कि सीमा सड़क संगठन ने राजभाषा अधिनियम कैसे वह क्यों भुला दिया। आशा है उद्घाटन के बाद भी सीमा सड़क संगठन जिसका दायित्व इस महान निर्माण के रखरखाव का है इसे जल्दी ठीक करेगा ताकी चीनी, पाकिस्तानी वह अन्य विदेशी पर्यटक भी देख सकें कि भारत अपनी राजभाषा का कितना सम्मान करता है।
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