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हिमाचल ! हिमाचल प्रदेश सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 को पूर्ण रूप से लागू करने का संकल्प लेकर इसे मंत्रिमंडल द्वारा से अनुमोदित कर देने के बाद,सरकार के दावे के अनुसार नई शिक्षा लागू करने के लिए हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बन कर सामने आया है। उक्त नीति के अनुसार इसे लागू करके भारत को वैश्विक महाशक्ति में बदलने में सीधा योगदान मिलेगा।इसी नीति के अंतर्गत प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण का माध्यम मातृभाषा रहेगी और जहां तक संभव हुआ आठवीं तक भी स्कूल पाठ्यक्रमों शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा ही रहेगा। नई शिक्षा नीति में अग्रजी का उल्लेख तो है लेकिन हिंदी पर विस्तृत चर्चा नहीं है। हिमाचल सरकार ने संस्कृत को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया है और इसके विकास, विस्तार तथा संवर्धन के लिए तत्काल पग उठाते हुए नई शिक्षा नीति 2020 पूर्णरूपेण लागू करने का संकल्प लिया गया है।इस नीति के क्रियान्वयन के लिये एक “वर्किंग ग्रुप” का गठन भी किया गया है। प्रदेश की राजभाषा हिंदी होते हुए भी एक और भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया जाना बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है।हिमाचल प्रदेश में यह शायद राजभाषा के मूल स्वरूप को बदलने का भी प्रयास है। यदि भारतीय संविधान में निहित राजभाषा अधिनियम 1963 व राजभाषा नियमों संबंधित कानूनों को देखा जाए तो ‘देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया है’।‘ इसके विकास व विस्तार का दायित्व केंद्र सरकार पर है, तदनुसार राज्य सरकारें भी उसी अनुक्रम में काम करती हैं।संविधान में 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली,अंतर्राष्ट्रीय अंकों में प्रयोग होने वाली,राजभाषा नीति को स्वीकार कर लिया। तभी से सारे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है व केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों में सरकार द्वारा अनुमोदित कार्यक्रम किए जाते हैं ताकि हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा मिल सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी भाषा को विस्तार तो मिला है लेकिन आज भी हिंदी भाषा अंग्रेजी मोहताज बनकर रह गई है। राजभाषा से अभिप्राय किसी राज्य या देश की वह भाषा है, जो राजकीय प्रयोजनों,सरकारी कामकाज में,प्रशासनिक कार्य के लिए उपयोग में लाई जाती हो। जहां तक हिमाचल प्रदेश में हिंदी के प्रगामी प्रयोग का प्रश्न है,सरकार के पास ऐसा कोई मानदंड या कोई अलग कार्यालय, विभाग नहीं है जो हिंदी भाषा को हिमाचल में पूर्णरूपेण लागू कर सके व इसके प्रगामी प्रयोग का अनुप्रवर्तन करे।अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए विधिवत कोई अनुभाग, मंडल या विभाग कार्य नहीं कर रहा है। राजभाषा अधिनियम के अनुच्छेद (3) में निहित कुछ दस्तावेज ऐसे हैं जो अधिनियम के अंतर्गत अवश्यमय कम से कम दोनों भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी में जारी किए जाने हैं। हिमाचल में ऐसा नहीं हो रहा है। किसी प्रदेश की राजभाषा का अभिप्राय, उस राज्य के अंतर्गत प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राजभाषा कहते हैं। राजभाषा प्रदेश के अधिकांश जन समुदाय द्वारा बोली और समझी जानी चाहिए। प्रशासनिक दृष्टि से संपूर्ण राज्य में इस भाषा को महत्व दिया जाना जरूरी है। किसी प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा उस राज्य के अंतर्गत समस्त सरकारी कार्यकलापों में राजभाषा का प्रयोग होना परम आवश्यक है। यही भारत के संविधान में भी वर्णित व उल्लेखित किया गया है। संविधान की धारा 343 में विस्तृत उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार व संघ की राजभाषा क्या है। राजभाषा अधिनियम, 1963, राजभाषा संकल्प, राजभाषा अधिनियम 1976 ही वे महत्वपूर्ण अधिनियम है जिनके तहत केंद्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि हिंदी का उपयोग करें, जिससे संवैधानिक अपेक्षाएं भी पूर्ण हो सकें। राजभाषा व राष्ट्रभाषा में एक अंतर रहता है। ज्यादा व्याख्या ना करते हुए अगर भारतीय संविधान की अनुसूची 8 को पढ़े तो अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। जिनमें 1996 में नेपाली, 2003 में बोडो, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा और संथाली को शामिल किया गया। मुख्यतः ये भाषाएं है असमिया, उर्दू, ओड़िया, कन्नड़, कश्मीरी, कोकणी, गुजराती डोगरी, तमिल, तेलुगू, नेपाली, पंजाबी, बंगाली, बोड़ो, मणिपुरी ,मराठी, मलयालम ,मैथिली, संथाली, संस्कृत, सिंधी और हिंदी हैं। हिमाचल प्रदेश में संपर्क भाषा जिसे अंग्रेजी में “लिंगवा फ्ररिंका” कहते हैं वह मात्र वह एकमात्र हिंदी ही है, जिसके माध्यम से एक जिले का व्यक्ति दूसरे जिले के व्यक्ति से भाषिक संपर्क व संवाद स्थापित कर सकता है। हिमाचल प्रदेश की अपनी कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है, ना ही हिंदी को छोड़कर अन्य किसी क्षेत्रीय भाषा की लिपि,साहित्य नहीं जिसे हिमाचल अपना सके। कुछ प्रयास तो हिमाचली विकसित करने हुआ है लेकिन लिपि हिंदी ही है। क्या चंबयाली, मंड़याली, कांगड़ी ,लाहौली, सिरमौरी, किन्नौरी या कोई और बोली क्षेत्रीय भाषा का रूप ले पाएगी। बोली और भाषा में अंतर समझना बहुत जरूरी है। एक समृद्ध भाषा है जिसकी अपनी लिपि, वर्तनी, साहित्य और सही भाषा लिखने के लिए भाषा विज्ञान उपलब्ध है। ऐसी परिस्थिति में क्या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में प्राइमरी स्कूलों व मिडिल स्कूलों के बच्चों को पढ़ाना संभव हो पाएगा या इसके विकल्प में संस्कृत को स्कूलों में पेश किया जाएगा। नई शिक्षा नीति 2020 के आने से पहले भी हिमाचल प्रदेश में भाषाओं के विकल्प को संस्कृत या उर्दू चुनने के लिए स्कूल स्तर तक विकल्प के रूप में 6 वीं से लेकर आठवीं तक संस्कृत या उर्दू में से एक भाषा का दिया जाता था। क्या अब सिर्फ संस्कृत पढ़नी पड़ेगी। निसंदेह संस्कृत एक समृद्ध वैदिक भाषा है, वह भारत के सम्मान, अभिमान ,भारतीय संस्कृति का प्रतीक भी है।संस्कृत सब भाषाओं की जननी,भारतीय आस्था की भाषा है। लेकिन प्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई संस्था या संगठन नहीं है जिसने संस्कृत भाषा को लागू करने के लिए काम किया हो। यहां तक कि हिमाचल सरकार के पास अलग से संस्कृत अकादमी तक भी नहीं है।पहले से जो भी प्रयास किये गये हैं वे शिक्षा विभाग के पाठ्यक्रम में एक विषय को जोड़ कर ही हुए है। जबकि दूसरे प्रदेशों में यह काम अकादमी कर रही है। हिमाचल में तत्काल एक संस्कृत अकादमी का गठन होना है व अलग से संस्कृत विकास परिषद बनाई जानी है, जो राज्य में संस्कृत के विकास का कार्य देखें और बच्चों और लोगों में इसके प्रति चेतना पैदा करें। जहां तक संस्कृत शिक्षकों का प्रश्न है, प्रदेश शिक्षा विभाग में उनके कितने पद खाली पड़े हैं। उस पर चर्चा करना संभव नहीं हो पाएगा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्याल में कितने लोग उच्च शिक्षा कक्षाओं में प्रवेश लिये , कितने शोध कर रहे है वे आंकड़े बिल्कूल भी संतोषजनक नहीं हैं। संस्कृत भाषा पढ़ना कितना सहज होगा। प्रदेश के कितने प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो संस्कृत को बोल, समझ, पढ़, सुन लेते हैं इसकी जांच करना बहुत जरूरी है। क्या संस्कृत प्रदेश की संपर्क भाषा बन पाएगी अगर हां तो कितना समय लगेगा अगर नहीं तो क्या या एक ऐतिहासिक विवशता है कि संस्कृत पढ़ी जाए।हिमाचल प्रदेश में आज भी हिंदी न्यायालय की भाषा नहीं बन पाई है सारी न्यायिक गतिविधियों व कार्यकलाप अंग्रेजी में हो रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में निचली अदालतों मे न्यायिक कार्यों में हिंदी का उपयोग हो रहा है , यहां तक कि न्यायिक निर्णय भी हिंदी में लिए जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में यह सब अभी होना होना है। हिमाचल कला संस्कृति और भाषा अकादमी ने कुछ क्षेत्रीय बोलियों में पुस्तकों का प्रकाशन देवनागरी लिपि के साथ तो किया है, लेकिन इसके आगे या अकादमी कुछ भी नहीं कर पाई है।जबकि हिमाचल सरकार आज भी राजभाषा अधिनियम की अनदेखी करती हुई विभिन्न प्रकार के संकल्प, नोट, आलेख व अन्य दस्तावेज जिनका राजभाषा अधिनियम की धारा (3)3 उल्लेख किया गया है, अंग्रेजी में जारी करती है। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर या द्वी -भाषा में ये दस्तावेज प्रस्तुत करने का दायित्व किसका है।अभी भी हिमाचल सरकार के लगभग सभी कार्यालय अँग्रेजी में कार्य करते हैं। फ़िजी और भारत ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दे रखा है। इसके अतिरिक्त नेपाल, मॉरीशस, दक्षिण, अफ्रीका, सूरीनाम, युगांडा में हिंदी को बोला पढ़ा समझा जाता है। देवनागरी में हिंदी को आधुनिक भारतीय भाषा के अनुपात में रखा गया है जिसका अभिप्राय यह है कि यह बाकी भाषाओं के शब्दों को भी सामान्यतया यह भाषा आत्मसात कर लेती है। देश में 2011 की जनगणना के अनुसार 43.63 प्रतिशत हिंदी भाषी लोग हैं हिमाचल प्रदेश में 96% लोग हिंदी भाषा बोल समझ पढ़ लेते हैं।कार्यपालिका,विधानपलिका से जुड़े लोग जो संस्कृत को लागू करने की जोरदार वकालत कर रहे हैं,वे या उन के बच्चे संस्कृत बोलने पढ़ने मे कितने दक्ष हैं। ऐसी परिस्थिति में संस्कृत को राज्य की दूसरी राजभाषा बनाना और स्कूली स्तर पर इसे क्रियान्वित करना कितना सहज और संभव होगा यह फिलहाल बता पाना मुश्किल है।
हिमाचल ! हिमाचल प्रदेश सरकार ने नई शिक्षा नीति 2020 को पूर्ण रूप से लागू करने का संकल्प लेकर इसे मंत्रिमंडल द्वारा से अनुमोदित कर देने के बाद,सरकार के दावे के अनुसार नई शिक्षा लागू करने के लिए हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बन कर सामने आया है। उक्त नीति के अनुसार इसे लागू करके भारत को वैश्विक महाशक्ति में बदलने में सीधा योगदान मिलेगा।इसी नीति के अंतर्गत प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण का माध्यम मातृभाषा रहेगी और जहां तक संभव हुआ आठवीं तक भी स्कूल पाठ्यक्रमों शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा ही रहेगा। नई शिक्षा नीति में अग्रजी का उल्लेख तो है लेकिन हिंदी पर विस्तृत चर्चा नहीं है।
हिमाचल सरकार ने संस्कृत को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया है और इसके विकास, विस्तार तथा संवर्धन के लिए तत्काल पग उठाते हुए नई शिक्षा नीति 2020 पूर्णरूपेण लागू करने का संकल्प लिया गया है।इस नीति के क्रियान्वयन के लिये एक “वर्किंग ग्रुप” का गठन भी किया गया है। प्रदेश की राजभाषा हिंदी होते हुए भी एक और भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया जाना बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है।हिमाचल प्रदेश में यह शायद राजभाषा के मूल स्वरूप को बदलने का भी प्रयास है। यदि भारतीय संविधान में निहित राजभाषा अधिनियम 1963 व राजभाषा नियमों संबंधित कानूनों को देखा जाए तो ‘देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया है’।‘ इसके विकास व विस्तार का दायित्व केंद्र सरकार पर है, तदनुसार राज्य सरकारें भी उसी अनुक्रम में काम करती हैं।संविधान में 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली,अंतर्राष्ट्रीय अंकों में प्रयोग होने वाली,राजभाषा नीति को स्वीकार कर लिया। तभी से सारे देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है व केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों में सरकार द्वारा अनुमोदित कार्यक्रम किए जाते हैं ताकि हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा मिल सके। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी भाषा को विस्तार तो मिला है लेकिन आज भी हिंदी भाषा अंग्रेजी मोहताज बनकर रह गई है। राजभाषा से अभिप्राय किसी राज्य या देश की वह भाषा है, जो राजकीय प्रयोजनों,सरकारी कामकाज में,प्रशासनिक कार्य के लिए उपयोग में लाई जाती हो।
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जहां तक हिमाचल प्रदेश में हिंदी के प्रगामी प्रयोग का प्रश्न है,सरकार के पास ऐसा कोई मानदंड या कोई अलग कार्यालय, विभाग नहीं है जो हिंदी भाषा को हिमाचल में पूर्णरूपेण लागू कर सके व इसके प्रगामी प्रयोग का अनुप्रवर्तन करे।अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए विधिवत कोई अनुभाग, मंडल या विभाग कार्य नहीं कर रहा है। राजभाषा अधिनियम के अनुच्छेद (3) में निहित कुछ दस्तावेज ऐसे हैं जो अधिनियम के अंतर्गत अवश्यमय कम से कम दोनों भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी में जारी किए जाने हैं। हिमाचल में ऐसा नहीं हो रहा है। किसी प्रदेश की राजभाषा का अभिप्राय, उस राज्य के अंतर्गत प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राजभाषा कहते हैं। राजभाषा प्रदेश के अधिकांश जन समुदाय द्वारा बोली और समझी जानी चाहिए। प्रशासनिक दृष्टि से संपूर्ण राज्य में इस भाषा को महत्व दिया जाना जरूरी है। किसी प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा उस राज्य के अंतर्गत समस्त सरकारी कार्यकलापों में राजभाषा का प्रयोग होना परम आवश्यक है। यही भारत के संविधान में भी वर्णित व उल्लेखित किया गया है। संविधान की धारा 343 में विस्तृत उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार व संघ की राजभाषा क्या है। राजभाषा अधिनियम, 1963, राजभाषा संकल्प, राजभाषा अधिनियम 1976 ही वे महत्वपूर्ण अधिनियम है जिनके तहत केंद्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि हिंदी का उपयोग करें, जिससे संवैधानिक अपेक्षाएं भी पूर्ण हो सकें।
राजभाषा व राष्ट्रभाषा में एक अंतर रहता है। ज्यादा व्याख्या ना करते हुए अगर भारतीय संविधान की अनुसूची 8 को पढ़े तो अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। जिनमें 1996 में नेपाली, 2003 में बोडो, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा और संथाली को शामिल किया गया। मुख्यतः ये भाषाएं है असमिया, उर्दू, ओड़िया, कन्नड़, कश्मीरी, कोकणी, गुजराती डोगरी, तमिल, तेलुगू, नेपाली, पंजाबी, बंगाली, बोड़ो, मणिपुरी ,मराठी, मलयालम ,मैथिली, संथाली, संस्कृत, सिंधी और हिंदी हैं। हिमाचल प्रदेश में संपर्क भाषा जिसे अंग्रेजी में “लिंगवा फ्ररिंका” कहते हैं वह मात्र वह एकमात्र हिंदी ही है, जिसके माध्यम से एक जिले का व्यक्ति दूसरे जिले के व्यक्ति से भाषिक संपर्क व संवाद स्थापित कर सकता है। हिमाचल प्रदेश की अपनी कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है, ना ही हिंदी को छोड़कर अन्य किसी क्षेत्रीय भाषा की लिपि,साहित्य नहीं जिसे हिमाचल अपना सके। कुछ प्रयास तो हिमाचली विकसित करने हुआ है लेकिन लिपि हिंदी ही है। क्या चंबयाली, मंड़याली, कांगड़ी ,लाहौली, सिरमौरी, किन्नौरी या कोई और बोली क्षेत्रीय भाषा का रूप ले पाएगी। बोली और भाषा में अंतर समझना बहुत जरूरी है। एक समृद्ध भाषा है जिसकी अपनी लिपि, वर्तनी, साहित्य और सही भाषा लिखने के लिए भाषा विज्ञान उपलब्ध है। ऐसी परिस्थिति में क्या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा में प्राइमरी स्कूलों व मिडिल स्कूलों के बच्चों को पढ़ाना संभव हो पाएगा या इसके विकल्प में संस्कृत को स्कूलों में पेश किया जाएगा। नई शिक्षा नीति 2020 के आने से पहले भी हिमाचल प्रदेश में भाषाओं के विकल्प को संस्कृत या उर्दू चुनने के लिए स्कूल स्तर तक विकल्प के रूप में 6 वीं से लेकर आठवीं तक संस्कृत या उर्दू में से एक भाषा का दिया जाता था। क्या अब सिर्फ संस्कृत पढ़नी पड़ेगी।
निसंदेह संस्कृत एक समृद्ध वैदिक भाषा है, वह भारत के सम्मान, अभिमान ,भारतीय संस्कृति का प्रतीक भी है।संस्कृत सब भाषाओं की जननी,भारतीय आस्था की भाषा है। लेकिन प्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई संस्था या संगठन नहीं है जिसने संस्कृत भाषा को लागू करने के लिए काम किया हो। यहां तक कि हिमाचल सरकार के पास अलग से संस्कृत अकादमी तक भी नहीं है।पहले से जो भी प्रयास किये गये हैं वे शिक्षा विभाग के पाठ्यक्रम में एक विषय को जोड़ कर ही हुए है। जबकि दूसरे प्रदेशों में यह काम अकादमी कर रही है। हिमाचल में तत्काल एक संस्कृत अकादमी का गठन होना है व अलग से संस्कृत विकास परिषद बनाई जानी है, जो राज्य में संस्कृत के विकास का कार्य देखें और बच्चों और लोगों में इसके प्रति चेतना पैदा करें। जहां तक संस्कृत शिक्षकों का प्रश्न है, प्रदेश शिक्षा विभाग में उनके कितने पद खाली पड़े हैं। उस पर चर्चा करना संभव नहीं हो पाएगा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्याल में कितने लोग उच्च शिक्षा कक्षाओं में प्रवेश लिये , कितने शोध कर रहे है वे आंकड़े बिल्कूल भी संतोषजनक नहीं हैं। संस्कृत भाषा पढ़ना कितना सहज होगा। प्रदेश के कितने प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो संस्कृत को बोल, समझ, पढ़, सुन लेते हैं इसकी जांच करना बहुत जरूरी है। क्या संस्कृत प्रदेश की संपर्क भाषा बन पाएगी अगर हां तो कितना समय लगेगा अगर नहीं तो क्या या एक ऐतिहासिक विवशता है कि संस्कृत पढ़ी जाए।हिमाचल प्रदेश में आज भी हिंदी न्यायालय की भाषा नहीं बन पाई है सारी न्यायिक गतिविधियों व कार्यकलाप अंग्रेजी में हो रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में निचली अदालतों मे न्यायिक कार्यों में हिंदी का उपयोग हो रहा है , यहां तक कि न्यायिक निर्णय भी हिंदी में लिए जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में यह सब अभी होना होना है। हिमाचल कला संस्कृति और भाषा अकादमी ने कुछ क्षेत्रीय बोलियों में पुस्तकों का प्रकाशन देवनागरी लिपि के साथ तो किया है, लेकिन इसके आगे या अकादमी कुछ भी नहीं कर पाई है।जबकि हिमाचल सरकार आज भी राजभाषा अधिनियम की अनदेखी करती हुई विभिन्न प्रकार के संकल्प, नोट, आलेख व अन्य दस्तावेज जिनका राजभाषा अधिनियम की धारा (3)3 उल्लेख किया गया है, अंग्रेजी में जारी करती है। अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर या द्वी -भाषा में ये दस्तावेज प्रस्तुत करने का दायित्व किसका है।अभी भी हिमाचल सरकार के लगभग सभी कार्यालय अँग्रेजी में कार्य करते हैं। फ़िजी और भारत ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दे रखा है।
इसके अतिरिक्त नेपाल, मॉरीशस, दक्षिण, अफ्रीका, सूरीनाम, युगांडा में हिंदी को बोला पढ़ा समझा जाता है। देवनागरी में हिंदी को आधुनिक भारतीय भाषा के अनुपात में रखा गया है जिसका अभिप्राय यह है कि यह बाकी भाषाओं के शब्दों को भी सामान्यतया यह भाषा आत्मसात कर लेती है। देश में 2011 की जनगणना के अनुसार 43.63 प्रतिशत हिंदी भाषी लोग हैं हिमाचल प्रदेश में 96% लोग हिंदी भाषा बोल समझ पढ़ लेते हैं।कार्यपालिका,विधानपलिका से जुड़े लोग जो संस्कृत को लागू करने की जोरदार वकालत कर रहे हैं,वे या उन के बच्चे संस्कृत बोलने पढ़ने मे कितने दक्ष हैं। ऐसी परिस्थिति में संस्कृत को राज्य की दूसरी राजभाषा बनाना और स्कूली स्तर पर इसे क्रियान्वित करना कितना सहज और संभव होगा यह फिलहाल बता पाना मुश्किल है।
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