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शिमला ! सीटू, हिमाचल किसान सभा,जनवादी महिला समिति,डीवाईएफआई,एसएफआई,दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों,तीन किसान विरोधी कानूनों व बिजली संशोधन विधेयक 2020 को लेकर हिमाचल प्रदेश के गांव,ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर मोदी,अम्बानी व अडानी के पुतले जलाए। इन संगठनों ने ऐलान किया है कि किसानों के आंदोलन के समर्थन में प्रदेश भर के मजदूरों,किसानों,महिलाओं,युवाओं,छात्रों व सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों द्वारा आन्दोलन तेज किया जाएगा व 8 दिसम्बर को भारत बंद के तहत गांव व शहरों में किसान,मजदूर व आम जनता पूर्ण कार्य बंद करेंगे। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,महासचिव प्रेम गौतम,किसान सभा प्रदेशाध्यक्ष डॉ कुलदीप तंवर,महासचिव डॉ ओंकार शाद,महिला समिति प्रदेशाध्यक्ष डॉ रीना सिंह,सचिव फालमा चौहान,डीवाईएफआई प्रदेशाध्यक्ष अनिल मनकोटिया,सचिव चन्द्रकान्त वर्मा,एसएफआई प्रदेशाध्यक्ष रमन थारटा,सचिव अमित ठाकुर,दलित शोषण मुक्ति मंच संयोजक जगत राम व सह संयोजक आशीष कुमार ने कहा है कि किसान आंदोलन से स्पष्ट हो गया है कि मोदी की भाजपा सरकार पूंजीपतियों व नैगमिक घरानों के साथ है व उनकी मुनाफाखोरी को बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है। उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी,कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी - विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से एपीएमसी जैसी कृषि संस्थाएं बर्बाद हो जाएंगी,न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा खत्म हो जाएगी,कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी,जमाखोरी व मुनाफाखोरी होगी जिस से न केवल किसानों को नुकसान होगा अपितु आम जनता को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी। यह सब कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। आज कृषि भारी संकट में है। उसे मदद देने के बजाए केंद्र सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। न तो कृषि बजट में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानों की सब्सिडी में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानी के उपकरण किसानों को सरकार की ओर से मुहैय्या करवाए जा रहे हैं,न ही किसानों के कर्ज़े माफ किये जा रहे हैं और न ही उन्हें लाभकारी मूल्य दिया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें पिछले दो दशकों से केंद्र सरकार के मेजों पर धूल फांक रही हैं व उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। इसलिए बेहद जरूरी हो गया है कि देश के मजदूर,किसान,महिला,युवा,छात्र,सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हुए तबके पूर्ण एकता बनाकर इस सरकार की चूलें हिलाएं व इसकी पूंजीपति व कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर रोक लगाएं।
शिमला ! सीटू, हिमाचल किसान सभा,जनवादी महिला समिति,डीवाईएफआई,एसएफआई,दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों,तीन किसान विरोधी कानूनों व बिजली संशोधन विधेयक 2020 को लेकर हिमाचल प्रदेश के गांव,ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर मोदी,अम्बानी व अडानी के पुतले जलाए। इन संगठनों ने ऐलान किया है कि किसानों के आंदोलन के समर्थन में प्रदेश भर के मजदूरों,किसानों,महिलाओं,युवाओं,छात्रों व सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों द्वारा आन्दोलन तेज किया जाएगा व 8 दिसम्बर को भारत बंद के तहत गांव व शहरों में किसान,मजदूर व आम जनता पूर्ण कार्य बंद करेंगे।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,महासचिव प्रेम गौतम,किसान सभा प्रदेशाध्यक्ष डॉ कुलदीप तंवर,महासचिव डॉ ओंकार शाद,महिला समिति प्रदेशाध्यक्ष डॉ रीना सिंह,सचिव फालमा चौहान,डीवाईएफआई प्रदेशाध्यक्ष अनिल मनकोटिया,सचिव चन्द्रकान्त वर्मा,एसएफआई प्रदेशाध्यक्ष रमन थारटा,सचिव अमित ठाकुर,दलित शोषण मुक्ति मंच संयोजक जगत राम व सह संयोजक आशीष कुमार ने कहा है कि किसान आंदोलन से स्पष्ट हो गया है कि मोदी की भाजपा सरकार पूंजीपतियों व नैगमिक घरानों के साथ है व उनकी मुनाफाखोरी को बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है। उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इसके कारण किसानों की फसलों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साज़िश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी,कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी - विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी।
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उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार के नए कानूनों से एपीएमसी जैसी कृषि संस्थाएं बर्बाद हो जाएंगी,न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा खत्म हो जाएगी,कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी,जमाखोरी व मुनाफाखोरी होगी जिस से न केवल किसानों को नुकसान होगा अपितु आम जनता को भी इसकी मार झेलनी पड़ेगी। यह सब कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। आज कृषि भारी संकट में है। उसे मदद देने के बजाए केंद्र सरकार किसानों को तबाह करने पर तुली हुई है। न तो कृषि बजट में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानों की सब्सिडी में बढ़ोतरी हो रही है,न ही किसानी के उपकरण किसानों को सरकार की ओर से मुहैय्या करवाए जा रहे हैं,न ही किसानों के कर्ज़े माफ किये जा रहे हैं और न ही उन्हें लाभकारी मूल्य दिया जा रहा है। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें पिछले दो दशकों से केंद्र सरकार के मेजों पर धूल फांक रही हैं व उन्हें लागू नहीं किया जा रहा है। इसलिए बेहद जरूरी हो गया है कि देश के मजदूर,किसान,महिला,युवा,छात्र,सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हुए तबके पूर्ण एकता बनाकर इस सरकार की चूलें हिलाएं व इसकी पूंजीपति व कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर रोक लगाएं।
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