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शिमला । जिला में कोरोना पॉजिटिव महिला के डीडीयू अस्पताल में फंदा लगाकर आत्महत्या करने के मामले में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। डीडीयू से हटाए कार्यकारी एमएस डॉक्टर लोकेंद्र शर्मा ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों पर कई तरह के सवाल उठाए हैं। डॉक्टर लोकेंद्र ने कहा कि वह हर तरह की जांच के लिए तैयार हैं। सात माह के दौरान उन्होंने कम स्टाफ से पूरे प्रदेश भर के मरीजों के उपचार का जिम्मा उठाए रखा। पत्रकारों से बात करते हुऐ उन्होंने कहा कि कुछ माह पहले एसीएस हेल्थ के साथ हुई बैठक में भी कम स्टाफ का मामला उठाया था, लेकिन हल नहीं निकाला गया। अब जब महिला ने आत्महत्या की तो उसका सारा कसूर प्रबंधन और डॉक्टरों पर डाला जा रहा है। जांच में मालूम हुआ है कि यह महिला मानसिक रोगी थी। हालांकि, कोविड का इलाज सही तरीके से चला हुआ था, लेकिन अचानक ये फैसला महिला ने क्यों लिया, इसका पता तो जांच में ही सामने आएगा। जिस तरीके से स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी व जिला प्रशासन के लोग अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर प्रबंधन को कसूरवार ठहरा रहे हैं, वह गलत है। उन्होंने कहा कि अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों का मनोबल गिर रहा है। डीसी को पांच बार फोन किया, नहीं उठाया डॉ. लोकेंद्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने घटना की जानकारी देने को पांच बार उपायुक्त शिमला को फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन उठाने की जहमत तक नहीं उठाई। लक्षण और लक्षण न होने वाले मरीजों को लेकर अलग-अलग नियम होने से परेशानियां पेश आ रही हैं। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन ही नई गाइडलाइन आई। इससे साफ पता चलता है कि स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी अपने कार्य को लेकर कितने सजग हैं। सरकार ने पहले शिमला और किन्नौर के मरीजों के लिए व्यवस्था रखने को कहा था, लेकिन उसके बाद सिरमौर और सोलन के मरीजों को भी यहां भेजा गया।
शिमला । जिला में कोरोना पॉजिटिव महिला के डीडीयू अस्पताल में फंदा लगाकर आत्महत्या करने के मामले में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। डीडीयू से हटाए कार्यकारी एमएस डॉक्टर लोकेंद्र शर्मा ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों पर कई तरह के सवाल उठाए हैं। डॉक्टर लोकेंद्र ने कहा कि वह हर तरह की जांच के लिए तैयार हैं। सात माह के दौरान उन्होंने कम स्टाफ से पूरे प्रदेश भर के मरीजों के उपचार का जिम्मा उठाए रखा। पत्रकारों से बात करते हुऐ उन्होंने कहा कि कुछ माह पहले एसीएस हेल्थ के साथ हुई बैठक में भी कम स्टाफ का मामला उठाया था, लेकिन हल नहीं निकाला गया।
अब जब महिला ने आत्महत्या की तो उसका सारा कसूर प्रबंधन और डॉक्टरों पर डाला जा रहा है। जांच में मालूम हुआ है कि यह महिला मानसिक रोगी थी। हालांकि, कोविड का इलाज सही तरीके से चला हुआ था, लेकिन अचानक ये फैसला महिला ने क्यों लिया, इसका पता तो जांच में ही सामने आएगा। जिस तरीके से स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी व जिला प्रशासन के लोग अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर प्रबंधन को कसूरवार ठहरा रहे हैं, वह गलत है। उन्होंने कहा कि अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरों का मनोबल गिर रहा है।
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डॉ. लोकेंद्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने घटना की जानकारी देने को पांच बार उपायुक्त शिमला को फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन उठाने की जहमत तक नहीं उठाई। लक्षण और लक्षण न होने वाले मरीजों को लेकर अलग-अलग नियम होने से परेशानियां पेश आ रही हैं। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन ही नई गाइडलाइन आई। इससे साफ पता चलता है कि स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारी अपने कार्य को लेकर कितने सजग हैं।
सरकार ने पहले शिमला और किन्नौर के मरीजों के लिए व्यवस्था रखने को कहा था, लेकिन उसके बाद सिरमौर और सोलन के मरीजों को भी यहां भेजा गया।
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