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राजगढ़ ! सिरमौर व शिमला जिले की सीमा पर 12 हजार फीट की ऊंचाई पर 25 से 30 फुट बर्फ के बीच हर साल की तरह इस साल भी स्वामी कमलनंद जी द्वारा क्षैत्र के प्रसिद्ध आराध्य देव शिरगुल महाराज की पांरपरिक पूजा अर्चना एव अपनी योग साधना जारी रखी गई है । अगर इतिहास पर नजर दौडाई जाये तो करीब 20 साल पहले स्वामी जी अपने समाधि में लीन हो चुके गुरु श्री श्यामानंद जी महाराज के सानिध्य में चोटी पर पहुंचे थे। लगभग 20 साल पहले गुरु ने उन्हें बर्फ के दौरान चोटी पर रहने का आदेश दिया था, जिसकी पालना वो आज भी बरकरार रखे हुए हैं सनद रहै कि जिस समय समाधि में लीन हो चुके गुरु श्री श्यामानंद जी चोटी पर अकेले रहा करते थे, उस समय भी 30 फुट तक भी बर्फबारी हो जाया करती थी। और उस समय संसाधन भी नहीं थे। हालांकि बदलते वक्त में अब स्वामी जी से मोबाइल के जरिए यदा कदा संपर्क करना संभव हो जाता है। लेकिन बर्फ के बीच ऑक्सीजन की कमी कई मर्तबा जीवन पर भारी भी पड़ती है। इस बार भी हालत कुछ ऐसे ही बन गये है । इस समय चूडधार मे स्वामी जी के साथ एक उनका चैला भी है ! साधना व योग के बूते ब्रह्मचारी कमलानंद जी हर बरस चोटी पर विकट से विकट परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित रखने में सफल हो जाते हैं। इतने अधिक हिमपात मे आश्रम से एक कदम भी बाहर रखना आसान नहीं होता। इसके बावजूद वो एक सुरंग के जरिए प्राचीन शिरगुल महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना को भी जारी रखते हैं।आश्रम व शिरगुल मंदिर के बीच कुछ ही मीटरो की दूरी है और मंदिर आश्रम से मंदिर जाने के लिए बरफ के बीच ही एक गुफा नुमा रास्ता हर साल बनाया जाता है कई जगहों पर तेज हवाओं के कारण बर्फ के 20 फुट तक भी टीले बन चुके हैं। मई माह तक चोटी पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है। स्वामी कमलानंद जी ने बताया कि मोबाइल चार्जिंग की थोड़ी बहुत व्यवस्था हैं। इसके जरिए ही उनका कुशलक्षेम श्रद्धालुओं व अन्य लोगों तक पहुंच जाता हैं। कुल मिलाकर चोटी पर ब्रह्मचारी जी की जबरदस्त बर्फ के बीच मौजूदगी इस बात को साबित करती है कि गुरु व शिष्य का रिश्ता कितना अटूट होता है।मगर इस साल समस्या कुछ ज्यादा है क्यूंकि इस बार चूडधार मे स्नौफाल ने अपना पिछला लगभग तीन दशको का रिकॉर्ड तौड दिया है हालत यह है कि पूरा मंदिर व आश्रम बरफ मे दब गये है अब आश्रम की छत से बरफ हटानी पड रही है क्योंकि बरफ का वजन आश्रम की छत को तौड सकता है
राजगढ़ ! सिरमौर व शिमला जिले की सीमा पर 12 हजार फीट की ऊंचाई पर 25 से 30 फुट बर्फ के बीच हर साल की तरह इस साल भी स्वामी कमलनंद जी द्वारा क्षैत्र के प्रसिद्ध आराध्य देव शिरगुल महाराज की पांरपरिक पूजा अर्चना एव अपनी योग साधना जारी रखी गई है । अगर इतिहास पर नजर दौडाई जाये तो करीब 20 साल पहले स्वामी जी अपने समाधि में लीन हो चुके गुरु श्री श्यामानंद जी महाराज के सानिध्य में चोटी पर पहुंचे थे।
लगभग 20 साल पहले गुरु ने उन्हें बर्फ के दौरान चोटी पर रहने का आदेश दिया था, जिसकी पालना वो आज भी बरकरार रखे हुए हैं सनद रहै कि जिस समय समाधि में लीन हो चुके गुरु श्री श्यामानंद जी चोटी पर अकेले रहा करते थे, उस समय भी 30 फुट तक भी बर्फबारी हो जाया करती थी। और उस समय संसाधन भी नहीं थे। हालांकि बदलते वक्त में अब स्वामी जी से मोबाइल के जरिए यदा कदा संपर्क करना संभव हो जाता है। लेकिन बर्फ के बीच ऑक्सीजन की कमी कई मर्तबा जीवन पर भारी भी पड़ती है। इस बार भी हालत कुछ ऐसे ही बन गये है । इस समय चूडधार मे स्वामी जी के साथ एक उनका चैला भी है !
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साधना व योग के बूते ब्रह्मचारी कमलानंद जी हर बरस चोटी पर विकट से विकट परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित रखने में सफल हो जाते हैं। इतने अधिक हिमपात मे आश्रम से एक कदम भी बाहर रखना आसान नहीं होता। इसके बावजूद वो एक सुरंग के जरिए प्राचीन शिरगुल महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना को भी जारी रखते हैं।आश्रम व शिरगुल मंदिर के बीच कुछ ही मीटरो की दूरी है और मंदिर आश्रम से मंदिर जाने के लिए बरफ के बीच ही एक गुफा नुमा रास्ता हर साल बनाया जाता है कई जगहों पर तेज हवाओं के कारण बर्फ के 20 फुट तक भी टीले बन चुके हैं। मई माह तक चोटी पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है।
स्वामी कमलानंद जी ने बताया कि मोबाइल चार्जिंग की थोड़ी बहुत व्यवस्था हैं। इसके जरिए ही उनका कुशलक्षेम श्रद्धालुओं व अन्य लोगों तक पहुंच जाता हैं। कुल मिलाकर चोटी पर ब्रह्मचारी जी की जबरदस्त बर्फ के बीच मौजूदगी इस बात को साबित करती है कि गुरु व शिष्य का रिश्ता कितना अटूट होता है।मगर इस साल समस्या कुछ ज्यादा है क्यूंकि इस बार चूडधार मे स्नौफाल ने अपना पिछला लगभग तीन दशको का रिकॉर्ड तौड दिया है हालत यह है कि पूरा मंदिर व आश्रम बरफ मे दब गये है अब आश्रम की छत से बरफ हटानी पड रही है क्योंकि बरफ का वजन आश्रम की छत को तौड सकता है
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