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भरमौर , 04 अगस्त [ शिवानी ] ! इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई कावड़िए कावड़ लेकर भरमौर पहुंचे हैं। आपको बता दें कि 25 दिनों की पैदल यात्रा करने के बाद हरिद्वार से भरमौर पहुंचे शिव भगत रजत और लवली जो जम्मू के निवासी हैं वे कावड़ में गंगा जल भरकर चौरासी स्थित मणिमहेश मन्दिर पहुंचे और शिवलिंग का जलाभिषेक किया।उनके स्वागत के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग सड़कों पर कतार लगाकर खड़े रहे। आपको बता दें कि इससे पूर्व हमारे बुजुर्ग भरमौर से हरिद्वार पैदल अस्थियां लेकर जाते थे और दो महीने बाद वापिस घर पहुंचते थे। कहते हैं कई बार वे लोग जीवित वापिस नहीं पहुंचते थे क्योंकि रास्ते में डाकू लुटेरे उनको लूट कर मार दिया करते थे।फिर अधिकतर लोग जत्था बना कर हरिद्वार जाते थे तब से हरिद्वार में पंडितों के पास अस्थियां ले जाने वाले का नाम ग्राम लिखते थे ताकि पुनः जाने वाले लोगों का पता लग सके कि वाक्य ये लोग हरिद्वार गए थे। नाम लिखवाने की परंपरा आज भी जारी है।
भरमौर , 04 अगस्त [ शिवानी ] ! इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई कावड़िए कावड़ लेकर भरमौर पहुंचे हैं। आपको बता दें कि 25 दिनों की पैदल यात्रा करने के बाद हरिद्वार से भरमौर पहुंचे शिव भगत रजत और लवली जो जम्मू के निवासी हैं वे कावड़ में गंगा जल भरकर चौरासी स्थित मणिमहेश मन्दिर पहुंचे और शिवलिंग का जलाभिषेक किया।उनके स्वागत के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग सड़कों पर कतार लगाकर खड़े रहे।
आपको बता दें कि इससे पूर्व हमारे बुजुर्ग भरमौर से हरिद्वार पैदल अस्थियां लेकर जाते थे और दो महीने बाद वापिस घर पहुंचते थे। कहते हैं कई बार वे लोग जीवित वापिस नहीं पहुंचते थे क्योंकि रास्ते में डाकू लुटेरे उनको लूट कर मार दिया करते थे।फिर अधिकतर लोग जत्था बना कर हरिद्वार जाते थे तब से हरिद्वार में पंडितों के पास अस्थियां ले जाने वाले का नाम ग्राम लिखते थे ताकि पुनः जाने वाले लोगों का पता लग सके कि वाक्य ये लोग हरिद्वार गए थे। नाम लिखवाने की परंपरा आज भी जारी है।
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