
- विज्ञापन (Article Top Ad) -
चम्बा ! पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेेज चम्बा में 75वें आजादी अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य पर दैनिक दिनचर्या में पानी कैसे बचाएं, नदी का प्रदूषण कैसे रोके विषय पर पावर पॉइट प्रेजेंटेशन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में एमबीबीएस बैंच 2022 के 120 प्रशिक्षुओ ने भाग लिया। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के माध्यम और दिशा निर्देश के अनुसार आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेेज चम्बा प्राचार्य डॉ एसएस डोगरा ने की, इस मौके पर डॉ एसएस डोगरा ने कहा कि इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए जल संरक्षण महत्वपूर्ण है। पीने, स्नान, कृषि, सिंचाई, आतिथ्य, निर्माण और पानी के अन्य बुनियादी उपयोग सभी महत्वपूर्ण हैं। भूमि और वायु के बाद जल परिवहन का एक प्रमुख साधन है। कुछ देशों में अपने नागरिकों के लिए प्रचुर मात्रा में जल संसाधन हैं और उनकी सेवा करते हैं, जबकि अन्य में जीवित रहने के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों की कमी है। मीठे पानी की कमी मानव अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पानी की गुणवत्ता और मात्रा दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। यद्यपि पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ हैं। डॉ एसएस डोगरा ने कहा कि उद्योगों के तेजी से बढ़ने के साथ-साथ कुशल कचरा निपटान की समस्या बढ़ गई है। इन कंपनियों के अपशिष्ट उत्पादों में अत्यंत खतरनाक सामग्री होती है जो नदियों और पानी के अन्य निकायों को प्रदूषित करती है। फसलों को उपचारित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक पानी की आपूर्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। हैजा, पीलिया और टाइफाइड जैसे जलजनित रोग नदियों में फेंके गए सीवेज कचरे के कारण होते हैं, जिससे पानी पीने और धोने के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। प्लास्टिक के उपयोग और जल निकायों में उनके लापरवाही से निपटान से जलीय जीवन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे पारिस्थितिकी और बाधित होती है। पृथ्वी पर पानी की कमी का एक अन्य प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, वर्ष 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया में पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। अब हमें मीठे पानी की कमी के खतरे के बारे में जागरूक होना चाहिए और इसे रोकने के लिए उचित प्रयास करना चाहिए। डॉ एसएस डोगरा कहा कि प्रतिदिन पानी बचाना अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनायें, कपड़े धोते समय अपनी वॉशिंग मशीन की पूरी क्षमता का उपयोग करें। वाष्पीकरण को कम करने के लिए शाम को पौधों को पानी दें। शॉवर की जगह बाल्टियों का प्रयोग करें क्योंकि इससे पानी की काफी बचत होती है। अपना चेहरा या हाथ धोते समय नल को चलने न दें। अपने इलाके, स्कूल और आस-पड़ोस में पानी बचाने की पहल के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ।बच्चों को कम उम्र से ही जल-बचत के बारे में शिक्षित करें ताकि वे इसका मूल्य समझ सकें। इस प्रतियोगिता में मेघा संजीव ने प्रथम स्थान तो ईशांत चंदेल ने दूसरा और श्वेता ने तीसरा स्थान हासिल किया। मेडिकल कॉलेज चम्बा के प्राचार्य डॉ एसएस डोगरा ने प्रतिभागियों को सम्मनित किया। इस मौके पर डॉ प्रदीप सिंह, डॉ ईथी तुली और डॉ फातिमा बेगम ने निर्णायक मण्डल की भूमिका निभाई। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
चम्बा ! पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेेज चम्बा में 75वें आजादी अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य पर दैनिक दिनचर्या में पानी कैसे बचाएं, नदी का प्रदूषण कैसे रोके विषय पर पावर पॉइट प्रेजेंटेशन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
इस प्रतियोगिता में एमबीबीएस बैंच 2022 के 120 प्रशिक्षुओ ने भाग लिया। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के माध्यम और दिशा निर्देश के अनुसार आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेेज चम्बा प्राचार्य डॉ एसएस डोगरा ने की, इस मौके पर डॉ एसएस डोगरा ने कहा कि इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए जल संरक्षण महत्वपूर्ण है। पीने, स्नान, कृषि, सिंचाई, आतिथ्य, निर्माण और पानी के अन्य बुनियादी उपयोग सभी महत्वपूर्ण हैं। भूमि और वायु के बाद जल परिवहन का एक प्रमुख साधन है। कुछ देशों में अपने नागरिकों के लिए प्रचुर मात्रा में जल संसाधन हैं और उनकी सेवा करते हैं, जबकि अन्य में जीवित रहने के लिए भी प्राकृतिक संसाधनों की कमी है। मीठे पानी की कमी मानव अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार पानी की गुणवत्ता और मात्रा दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। यद्यपि पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ हैं।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
डॉ एसएस डोगरा ने कहा कि उद्योगों के तेजी से बढ़ने के साथ-साथ कुशल कचरा निपटान की समस्या बढ़ गई है। इन कंपनियों के अपशिष्ट उत्पादों में अत्यंत खतरनाक सामग्री होती है जो नदियों और पानी के अन्य निकायों को प्रदूषित करती है। फसलों को उपचारित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक पानी की आपूर्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। हैजा, पीलिया और टाइफाइड जैसे जलजनित रोग नदियों में फेंके गए सीवेज कचरे के कारण होते हैं, जिससे पानी पीने और धोने के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। प्लास्टिक के उपयोग और जल निकायों में उनके लापरवाही से निपटान से जलीय जीवन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे पारिस्थितिकी और बाधित होती है। पृथ्वी पर पानी की कमी का एक अन्य प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, वर्ष 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया में पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। अब हमें मीठे पानी की कमी के खतरे के बारे में जागरूक होना चाहिए और इसे रोकने के लिए उचित प्रयास करना चाहिए।
डॉ एसएस डोगरा कहा कि प्रतिदिन पानी बचाना अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी बनायें, कपड़े धोते समय अपनी वॉशिंग मशीन की पूरी क्षमता का उपयोग करें। वाष्पीकरण को कम करने के लिए शाम को पौधों को पानी दें। शॉवर की जगह बाल्टियों का प्रयोग करें क्योंकि इससे पानी की काफी बचत होती है।
अपना चेहरा या हाथ धोते समय नल को चलने न दें। अपने इलाके, स्कूल और आस-पड़ोस में पानी बचाने की पहल के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ।बच्चों को कम उम्र से ही जल-बचत के बारे में शिक्षित करें ताकि वे इसका मूल्य समझ सकें।
इस प्रतियोगिता में मेघा संजीव ने प्रथम स्थान तो ईशांत चंदेल ने दूसरा और श्वेता ने तीसरा स्थान हासिल किया। मेडिकल कॉलेज चम्बा के प्राचार्य डॉ एसएस डोगरा ने प्रतिभागियों को सम्मनित किया। इस मौके पर डॉ प्रदीप सिंह, डॉ ईथी तुली और डॉ फातिमा बेगम ने निर्णायक मण्डल की भूमिका निभाई।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -