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चम्बा ! सुन्दर शिक्षा (परमारथ) न्यास के तत्वावधान में कला सृजन पाठशाला, चम्बा द्वारा हाल ही में सफल आयोजन सत्र 53 (स्वर्ण सत्र-3) राजकीय महाविद्यालय चम्बा में साहित्यिक परिषद हिन्दी विभाग चम्बा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। अभी तक के तमाम आयोजन किसी न किसी रचनाकार को केन्द्र में रख कर आयोजित किए जाते रहे हैं। वे चाहे राष्ट्रीय स्तर के लेखक हों या राज्य स्तर के या फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के रचनाकार हों या फिर स्थानीय रचनाकार ही क्यूँ न हो। इसके साथ कोई न कोई सम सामायिक विषय भी जरूर शामिल किया गया। नारी सशक्तिकरण से लेकर नशामुक्ति तक के विषय शामिल किए जाते रहे हैं। इससे नवोदित लेखकों को जहाँ एक विस्तृत साहित्यिक परिदृश्य मिलता रहा है वहीं उनमें नि:सन्देह लेखन क्षमता की कुलबुलाहट भी जागृत की जाती रही है। कला सृजन पाठशाला से समय समय पर स्थानीय युवा से युवतम रचनाकार जुड़ते रहे हैं। उन सब लेखकों को मंच प्रदान करना कला सृजन पाठशाला का सौभाग्य रहा है। हिमाचल प्रदेश के अन्य जिलों से भी रचनाकार जुड़े हैं। और तो और अन्य प्रदेशों से भी रचनाकारों जुड़े हैं। समय के साथ साथ किसी न किसी कारण से रचनाकार छूटते भी रहे हैं। वही रचनाकार जुड़े रहे जो प्रतिबद्ध रहे। आज भी यदि कला सृजन पाठशाला अपनी यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही है तो केवल उन्हीं प्रतिबद्ध रचनाकारों की संगठित प्रतिबद्धता के कारण जिसके लिए कला सृजन पाठशाला सदैव ऋणी है। कला सृजन पाठशाला के सदस्यों की पुस्तकें अलग अलग प्रकाशनों से प्रकाशित हुई हैं जो कि कला सृजन पाठशाला के लिए गौरव की बात है। 'आग और राग के कवि: कुमार कृष्ण' द्वारा शरत् ( सुन्दर शकुन्तला प्रकाशन, चम्बा)। यह पुस्तक कुमार कृष्ण की कविताओं का विभिन्न लेखों के माध्यम से कविताओं के ताप को परखते हुए विश्लेषित करती है। दूसरी महत्त्वपूर्ण कविता पुस्तक 'मेरे शब्द मेरी पहचान' द्वारा ओ एस 'अज्ञात' (यशिता प्रकाशन, दिल्ली) है। इस पुस्तक में विद्यमान कविताएं सामाजिक पहलुओं को बखूबी दर्शाती हैं। तीसरी पुस्तक 'हिमाचल के हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास' द्वारा डॉ. हरि शर्मा (सुन्दर शकुन्तला प्रकाशन, चम्बा) है। यह पुस्तक हिमाचल प्रदेश के प्रत्येक हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी, शोधार्थी, अध्येता तथा हिन्दी के लेखकों, रचनाकारों के लिए हिमाचल प्रदेश के हिन्दी साहित्य की समझ को विकसित करने के लिए आवश्यक सन्दर्भ ग्रन्थ है। यह कालक्रमानुसार प्रवृत्तियात्मक विवेचन प्रस्तुत करता सन्दर्भ ग्रन्थ है। चौथी पुस्तक 'चिक्कणी मुक्कणी गल्लां' द्वारा भूपेंद्र सिंह जसरोटिया (स्व-प्रकाशन, चम्बा) है। यह हिमाचल प्रदेश के चम्बा शहर के जनपद की बोली मे लिखी सूक्ति तथा उक्ति युक्त लेखक की टिप्पणी, भावार्थ तथा व्याख्या सहित पुस्तक है। जिसमें रचनाकार ने पाठक को अच्छे तरीके से अपनी रचना को समझाने के अथक प्रयास किए हैं। पाँचवीं पुस्तक 'भारतदुर्दशा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' सं. प्रशान्त रमण 'रवि'(वाणी प्रकाशन, दिल्ली) । यह पुस्तक कई मायने में महत्त्वपूर्ण है। यह लेखों तथा व्याख्या सहित पुस्तक है जिससे इस पुस्तक की उपयोगिता छात्रों के लिए बहुत ही मात्रा में बढ़ गई है। छात्रों को यह गहन दृष्टि देने में जहाँ कामयाब है वहीं सरस, सहज और सरल भी है। यह पुस्तक किसी भी सूरत में विद्यार्थी मन पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालती है। अत: यह विद्यार्थियों के लिए अति आवश्यक पुस्तक है। कला सृजन पाठशाला को समृद्ध, सम्पन्न, परिष्कृत, मांजने, आँजने और निर्माण के लिए जो पदाधिकारी जी तोड़ भूमिका निभा रहे हैं उनमें डॉ. सन्तोष कुमार (महासचिव),डॉ. उज्जवल सिंह (प्रथम कोषाध्यक्ष), सोमी प्रकाश भूवेटा (उपाध्यक्ष/कोषाध्यक्ष), बालकृष्ण पराशर (संरक्षक), धर्मवीर शर्मा (वित्ताध्यक्ष), राकेश ठाकुर(प्रेस सचिव) प्रो.शिल्पा शर्मा (क्षेत्रीय सचिव), प्रो. पिंकी देवी(क्षेत्रीय सचिव), रेखा रश्मि गक्खड़(क्षेत्रीय सचिव), सहायक प्रो.संजय कुमार(क्षेत्रीय सचिव), पमेश (सचिव), भूपेंद्र मांडला (सचिव), शिल्पा ठाकुर (प्रसार सचिव), मीनाक्षी टण्डन (प्रचार सचिव), हेमराज (सचिव) उल्लेखनीय हैं जिनके प्रति कला सृजन पाठशाला सदैव आभारी है। अन्य सदस्यों व पदाधिकारियों की सक्रियता का कोई भी सानी नहीं है, यह भी विदित है।
चम्बा ! सुन्दर शिक्षा (परमारथ) न्यास के तत्वावधान में कला सृजन पाठशाला, चम्बा द्वारा हाल ही में सफल आयोजन सत्र 53 (स्वर्ण सत्र-3) राजकीय महाविद्यालय चम्बा में साहित्यिक परिषद हिन्दी विभाग चम्बा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। अभी तक के तमाम आयोजन किसी न किसी रचनाकार को केन्द्र में रख कर आयोजित किए जाते रहे हैं। वे चाहे राष्ट्रीय स्तर के लेखक हों या राज्य स्तर के या फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के रचनाकार हों या फिर स्थानीय रचनाकार ही क्यूँ न हो। इसके साथ कोई न कोई सम सामायिक विषय भी जरूर शामिल किया गया। नारी सशक्तिकरण से लेकर नशामुक्ति तक के विषय शामिल किए जाते रहे हैं। इससे नवोदित लेखकों को जहाँ एक विस्तृत साहित्यिक परिदृश्य मिलता रहा है वहीं उनमें नि:सन्देह लेखन क्षमता की कुलबुलाहट भी जागृत की जाती रही है।
कला सृजन पाठशाला से समय समय पर स्थानीय युवा से युवतम रचनाकार जुड़ते रहे हैं। उन सब लेखकों को मंच प्रदान करना कला सृजन पाठशाला का सौभाग्य रहा है। हिमाचल प्रदेश के अन्य जिलों से भी रचनाकार जुड़े हैं। और तो और अन्य प्रदेशों से भी रचनाकारों जुड़े हैं। समय के साथ साथ किसी न किसी कारण से रचनाकार छूटते भी रहे हैं। वही रचनाकार जुड़े रहे जो प्रतिबद्ध रहे। आज भी यदि कला सृजन पाठशाला अपनी यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही है तो केवल उन्हीं प्रतिबद्ध रचनाकारों की संगठित प्रतिबद्धता के कारण जिसके लिए कला सृजन पाठशाला सदैव ऋणी है।
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कला सृजन पाठशाला को समृद्ध, सम्पन्न, परिष्कृत, मांजने, आँजने और निर्माण के लिए जो पदाधिकारी जी तोड़ भूमिका निभा रहे हैं उनमें डॉ. सन्तोष कुमार (महासचिव),डॉ. उज्जवल सिंह (प्रथम कोषाध्यक्ष), सोमी प्रकाश भूवेटा (उपाध्यक्ष/कोषाध्यक्ष), बालकृष्ण पराशर (संरक्षक), धर्मवीर शर्मा (वित्ताध्यक्ष), राकेश ठाकुर(प्रेस सचिव) प्रो.शिल्पा शर्मा (क्षेत्रीय सचिव), प्रो. पिंकी देवी(क्षेत्रीय सचिव), रेखा रश्मि गक्खड़(क्षेत्रीय सचिव), सहायक प्रो.संजय कुमार(क्षेत्रीय सचिव), पमेश (सचिव), भूपेंद्र मांडला (सचिव), शिल्पा ठाकुर (प्रसार सचिव), मीनाक्षी टण्डन (प्रचार सचिव), हेमराज (सचिव) उल्लेखनीय हैं जिनके प्रति कला सृजन पाठशाला सदैव आभारी है। अन्य सदस्यों व पदाधिकारियों की सक्रियता का कोई भी सानी नहीं है, यह भी विदित है।
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