
छोटी सी चिंगारी भडक़ी तो टूटेगा प्रवासी लोगों पर जमकर कहर - जिला प्रशासन को इल्म नहीं कि जरा सी चिंगारी से क्या कहर बरपेगा - स्मल बस्तियों में अग्रि सुरक्षा के नाम पर एक पानी की टंकी तक नहीं
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सोलन , [ बद्दी ] , 17 जून [ पंकज गोल्डी ] ! भयंकर गर्मी में जहां हर जन मानस व्यथित है वहीं बीबीएन में बनी हुई स्लम बस्तियों में लगातार आग लगने का खतरा बरकरार है। कभी मानवीय भूल के कारण तो प्राकृतिक आपदा के कारण बददी बरोटीवाला की स्मल बस्तियां कभी भी आग की भेंट चढ़ जाती है लेकिन बाद में विलाप करने से ज्यादा कुछ नहीं बचता। बददी बरोटीवाला नालागढ़ प्रशासन ने अपने क्षेत्र की स्लम बस्तियों को लेकर कोई पैमाना तय नहीं किया है इसमें कितनी दूरी होनी चाहिए वहां पर फायर की गाडी पहुंचती है या नहीं। बददी बरोटीवाला के अधिकांश झुग्गी झोंपडी वाले अपने घरों में लकडियों से चूल्हों पर खाना पकाते हैं या कईयों ने पांच किलो वाले छोटे गैस सिलेंडर रखे हुए हैं। अगर गलती से किसी एक झुगी में आग लगती है तो आसपास लकडी व बांस से बनी झोंपडियां चपेट में आ जाती है और बचाने को कुछ बाकी नहीं रहता। इस कारण से श्रमिकों का बरसों से बना बनाया आशियाना पल भर में खाक हो जाता है। पूरा जीवन लगाकर जो सामान बनाया होता है वो भी जल जाता है। इसके बाद संबधित भूमि मालिक भी जो उनसे हर माह 800 से हजार रुपये किराया वसूलता है वो भी मुंह फेर लेता है और प्रशासन से भी कुछ नहीं मिलता और मिलता है तो बस पांच हजार की फौरी राहत। अब अगर बददी के पॉश एरिया के चक्कां रोड की बात की जाए तो इसको झोंपडी नगर भी कहा जा सकता है। दोनो ओर झोंपड पटटी की बयार है। भूमि मालिकों ने बना तो दी लेकिन लौ कॉस्ट हाऊसिंग बनाने की ओर कदम नहीं बढ़ाए जिससे यहां भी लकडी व बांस तथा तिरपाल से बनी झोंपडिया हैं। मानवाधिकार एसोसिएशन के प्रांतीय महासचिव डा. रणेश राणा ने कहा कि अगर जरा सी चिंगारी भडक गई तो यहां पर क्या हाल होगा सोच दिन मन बैठ जाता है। आसपास उद्योग भी है और व्यापारियों की दुकानें भी उन तक भी यह आंच पहुंचेगी। बीबीएन में आए दिन कहीं न कहीं कोई न कोई झोंपड पटटी आग की चपेट में आ जाती है। निजी भूमि में झोंपडियां बनाकर लैंड मालिक तो चंादी लूट रहे लेकिन भुगतना पुलिस व फायर विभाग को पडता है। आग लगने पर फायर की जिम्मेदारी ज्यादा होती है। किराया कोई बटोरे और आगे को कोई समेटे। कामगार पति पत्नी सुबह दिहाडी करने चले जाते हैं लेकिन उनके बच्चे दोपहर में झोंपडियों में अकेले ही होते हैं। पूर्व में ऐसे हादसे में कुछ बच्चों की जान भी जा चुकी है क्योंकि उनको बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिलता। वहीं फायर आफिसर बद्दी हेमराज ने कहा कि आग लगने पर तुरंत टीमें पहुंच जाती है लेकिन स्लम एरिया की सडकें व एपरोच रोड कई बार तंग होती है । इस कारण से कई बार गाडी नहीं पहुंच पाती जिससे हमें दिक्कतों का सामना करना पडता है। इस विषय में दिव्यांशु सिंघल ने कहा कि मानवाधिकार एसोसिएशन ने इस संदर्भ में कुछ सुझाव नालागढ़ प्रशासन को भेजे हैं। उस पर विचार किया जाएगा कि झोंपडियों की सुरक्षा कैसे हो सकती है और मजदूरों को सुविधाएं कैसे मिलेंगी। हाल ही में ऋषि अपार्टमेंट बददी के निकट लगी अचानक आग से 40 झोंपडिया जलकर राख हो गई थी। उस समय झोंपड पटटी के अंदर बनी करियाणे की दुकान में रखे पांच किलो वाले गैस सिलेंंडर की तरह फटे थे। इसके अलावा मजदूरों की झुगियों में रखे सिलेंडर भी धमाके के साथ फटे थे। उसके बाद भी जिला व नालागढ प्रशासन ने इस घटना से कोई सबक नहीं लिया कि कैसे स्लम एरिया को भविष्य के खतरे से बचाया जाए। इस संदर्भ में पुलिस ने भी अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया।
सोलन , [ बद्दी ] , 17 जून [ पंकज गोल्डी ] ! भयंकर गर्मी में जहां हर जन मानस व्यथित है वहीं बीबीएन में बनी हुई स्लम बस्तियों में लगातार आग लगने का खतरा बरकरार है। कभी मानवीय भूल के कारण तो प्राकृतिक आपदा के कारण बददी बरोटीवाला की स्मल बस्तियां कभी भी आग की भेंट चढ़ जाती है लेकिन बाद में विलाप करने से ज्यादा कुछ नहीं बचता। बददी बरोटीवाला नालागढ़ प्रशासन ने अपने क्षेत्र की स्लम बस्तियों को लेकर कोई पैमाना तय नहीं किया है इसमें कितनी दूरी होनी चाहिए वहां पर फायर की गाडी पहुंचती है या नहीं। बददी बरोटीवाला के अधिकांश झुग्गी झोंपडी वाले अपने घरों में लकडियों से चूल्हों पर खाना पकाते हैं या कईयों ने पांच किलो वाले छोटे गैस सिलेंडर रखे हुए हैं।
अगर गलती से किसी एक झुगी में आग लगती है तो आसपास लकडी व बांस से बनी झोंपडियां चपेट में आ जाती है और बचाने को कुछ बाकी नहीं रहता। इस कारण से श्रमिकों का बरसों से बना बनाया आशियाना पल भर में खाक हो जाता है। पूरा जीवन लगाकर जो सामान बनाया होता है वो भी जल जाता है। इसके बाद संबधित भूमि मालिक भी जो उनसे हर माह 800 से हजार रुपये किराया वसूलता है वो भी मुंह फेर लेता है और प्रशासन से भी कुछ नहीं मिलता और मिलता है तो बस पांच हजार की फौरी राहत।
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अब अगर बददी के पॉश एरिया के चक्कां रोड की बात की जाए तो इसको झोंपडी नगर भी कहा जा सकता है। दोनो ओर झोंपड पटटी की बयार है। भूमि मालिकों ने बना तो दी लेकिन लौ कॉस्ट हाऊसिंग बनाने की ओर कदम नहीं बढ़ाए जिससे यहां भी लकडी व बांस तथा तिरपाल से बनी झोंपडिया हैं। मानवाधिकार एसोसिएशन के प्रांतीय महासचिव डा. रणेश राणा ने कहा कि अगर जरा सी चिंगारी भडक गई तो यहां पर क्या हाल होगा सोच दिन मन बैठ जाता है। आसपास उद्योग भी है और व्यापारियों की दुकानें भी उन तक भी यह आंच पहुंचेगी।
बीबीएन में आए दिन कहीं न कहीं कोई न कोई झोंपड पटटी आग की चपेट में आ जाती है। निजी भूमि में झोंपडियां बनाकर लैंड मालिक तो चंादी लूट रहे लेकिन भुगतना पुलिस व फायर विभाग को पडता है। आग लगने पर फायर की जिम्मेदारी ज्यादा होती है। किराया कोई बटोरे और आगे को कोई समेटे। कामगार पति पत्नी सुबह दिहाडी करने चले जाते हैं लेकिन उनके बच्चे दोपहर में झोंपडियों में अकेले ही होते हैं। पूर्व में ऐसे हादसे में कुछ बच्चों की जान भी जा चुकी है क्योंकि उनको बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिलता।
वहीं फायर आफिसर बद्दी हेमराज ने कहा कि आग लगने पर तुरंत टीमें पहुंच जाती है लेकिन स्लम एरिया की सडकें व एपरोच रोड कई बार तंग होती है । इस कारण से कई बार गाडी नहीं पहुंच पाती जिससे हमें दिक्कतों का सामना करना पडता है।
इस विषय में दिव्यांशु सिंघल ने कहा कि मानवाधिकार एसोसिएशन ने इस संदर्भ में कुछ सुझाव नालागढ़ प्रशासन को भेजे हैं। उस पर विचार किया जाएगा कि झोंपडियों की सुरक्षा कैसे हो सकती है और मजदूरों को सुविधाएं कैसे मिलेंगी।
हाल ही में ऋषि अपार्टमेंट बददी के निकट लगी अचानक आग से 40 झोंपडिया जलकर राख हो गई थी। उस समय झोंपड पटटी के अंदर बनी करियाणे की दुकान में रखे पांच किलो वाले गैस सिलेंंडर की तरह फटे थे। इसके अलावा मजदूरों की झुगियों में रखे सिलेंडर भी धमाके के साथ फटे थे। उसके बाद भी जिला व नालागढ प्रशासन ने इस घटना से कोई सबक नहीं लिया कि कैसे स्लम एरिया को भविष्य के खतरे से बचाया जाए। इस संदर्भ में पुलिस ने भी अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया।
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