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हमीरपुर, 29 मई [ बिंदिया ठाकुर ] ! सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने सुक्खू सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि इंजीनियर विमल नेगी की संदिग्ध मौत के मामले में सरकार की मंशा शुरू से ही दोषियों को बचाने और मामले की लीपापोती करने की रही है। उन्होंने कहा कि जनता और विपक्ष के भारी दबाव के चलते भले ही एसआईटी गठित की गई, लेकिन उस पर लगातार राजनीतिक दबाव डाला गया, जिससे जांच निष्पक्ष नहीं हो सकी। यहां तक कि एसआईटी ने खुद को जांच से हटाने की पेशकश भी अपने अधिकारियों से कर दी थी। उन्होंने कहा कि पुलिस शुरू से ही राजनीतिक दबाव के कारण इसे आत्महत्या का मामला सिद्ध करने में लगी थी लेकिन परिस्थितिया यह शंका भी जाहिर कर रही है कि कहीं यह हत्या का मामला तो नहीं था जिसे बाद में आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई। राजेंद्र राणा ने कहा कि दिवंगत इंजीनियर विमल नेगी की पत्नी सरकार से लगातार सीबीआई जांच की मांग करती रही, लेकिन मुख्यमंत्री बार-बार विधानसभा में एसआईटी की कार्यप्रणाली को सही ठहराते रहे। जब पीड़ित परिवार ने हाईकोर्ट का रुख किया और एसआईटी की जांच से असंतोष जताते हुए सीबीआई जांच की मांग की, तो कोर्ट ने सरकार के रवैये को देखते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। इससे सरकार में हड़कंप मच गया है क्योंकि अब कई ‘बड़ी मछलियां’ बेनकाब हो सकती हैं। राजेंद्र राणा ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह प्रदेश की पहली सरकार है, जहां अफसर खुलेआम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने सीनियर अफसरों पर संगीन आरोप लगा रहे हैं और सरकार सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती, बल्कि उन्हें कुछ दिनों की छुट्टी पर भेजकर मामले को टाल देती है। उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी ने न सिर्फ डीजीपी पर, बल्कि अतिरिक्त मुख्य सचिव और मुख्य सचिव तक पर आरोप जड़े, फिर भी सरकार मूकदर्शक बनी रही। यह प्रदेश के प्रशासनिक अनुशासन पर बड़ा सवालिया निशान है। राजेंद्र राणा ने कटाक्ष किया कि सरकार में अब एक और परंपरा शुरू हो गई है — रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े अफसर सत्ता के गलियारों में सांठगांठ और सौदेबाजी करके एक्सटेंशन पा जाते हैं, जबकि बाकी अधिकारी प्रमोशन की राह ताकते रहते हैं। राजेंद्र राणा ने आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ठेकेदारों की 8000 करोड़ से अधिक देनदारियां लटक रही हैं, जिसके चलते वे सरकारी कामों से दूरी बना रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछली सरकारों के दौरान प्रदेश पर कुल कर्ज 65,000 करोड़ रुपये था, जबकि मौजूदा सरकार ने मात्र 30 महीनों में 38,000 करोड़ का कर्ज और जोड़कर प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने चुनाव से पहले जनता से की गई गारंटियों को पूरी तरह भुला दिया है। न महिलाओं के खातों में ₹1500 आ रहे हैं, न युवाओं को रोजगार मिल रहा है। सरकार ने सभी दरवाजे बंद कर दिए हैं। राणा ने कहा कि सुक्खू सरकार के कार्यकाल में राज्य में प्रशासनिक अराजकता और अव्यवस्था का माहौल बन गया है। न अफसर जवाबदेह हैं, न योजनाएं धरातल पर उतर रही हैं। जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है।
हमीरपुर, 29 मई [ बिंदिया ठाकुर ] ! सुजानपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने सुक्खू सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि इंजीनियर विमल नेगी की संदिग्ध मौत के मामले में सरकार की मंशा शुरू से ही दोषियों को बचाने और मामले की लीपापोती करने की रही है। उन्होंने कहा कि जनता और विपक्ष के भारी दबाव के चलते भले ही एसआईटी गठित की गई, लेकिन उस पर लगातार राजनीतिक दबाव डाला गया, जिससे जांच निष्पक्ष नहीं हो सकी। यहां तक कि एसआईटी ने खुद को जांच से हटाने की पेशकश भी अपने अधिकारियों से कर दी थी।
उन्होंने कहा कि पुलिस शुरू से ही राजनीतिक दबाव के कारण इसे आत्महत्या का मामला सिद्ध करने में लगी थी लेकिन परिस्थितिया यह शंका भी जाहिर कर रही है कि कहीं यह हत्या का मामला तो नहीं था जिसे बाद में आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई।
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राजेंद्र राणा ने कहा कि दिवंगत इंजीनियर विमल नेगी की पत्नी सरकार से लगातार सीबीआई जांच की मांग करती रही, लेकिन मुख्यमंत्री बार-बार विधानसभा में एसआईटी की कार्यप्रणाली को सही ठहराते रहे। जब पीड़ित परिवार ने हाईकोर्ट का रुख किया और एसआईटी की जांच से असंतोष जताते हुए सीबीआई जांच की मांग की, तो कोर्ट ने सरकार के रवैये को देखते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। इससे सरकार में हड़कंप मच गया है क्योंकि अब कई ‘बड़ी मछलियां’ बेनकाब हो सकती हैं।
राजेंद्र राणा ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह प्रदेश की पहली सरकार है, जहां अफसर खुलेआम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने सीनियर अफसरों पर संगीन आरोप लगा रहे हैं और सरकार सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती, बल्कि उन्हें कुछ दिनों की छुट्टी पर भेजकर मामले को टाल देती है।
उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी ने न सिर्फ डीजीपी पर, बल्कि अतिरिक्त मुख्य सचिव और मुख्य सचिव तक पर आरोप जड़े, फिर भी सरकार मूकदर्शक बनी रही। यह प्रदेश के प्रशासनिक अनुशासन पर बड़ा सवालिया निशान है।
राजेंद्र राणा ने कटाक्ष किया कि सरकार में अब एक और परंपरा शुरू हो गई है — रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े अफसर सत्ता के गलियारों में सांठगांठ और सौदेबाजी करके एक्सटेंशन पा जाते हैं, जबकि बाकी अधिकारी प्रमोशन की राह ताकते रहते हैं।
राजेंद्र राणा ने आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ठेकेदारों की 8000 करोड़ से अधिक देनदारियां लटक रही हैं, जिसके चलते वे सरकारी कामों से दूरी बना रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि पिछली सरकारों के दौरान प्रदेश पर कुल कर्ज 65,000 करोड़ रुपये था, जबकि मौजूदा सरकार ने मात्र 30 महीनों में 38,000 करोड़ का कर्ज और जोड़कर प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने चुनाव से पहले जनता से की गई गारंटियों को पूरी तरह भुला दिया है। न महिलाओं के खातों में ₹1500 आ रहे हैं, न युवाओं को रोजगार मिल रहा है। सरकार ने सभी दरवाजे बंद कर दिए हैं।
राणा ने कहा कि सुक्खू सरकार के कार्यकाल में राज्य में प्रशासनिक अराजकता और अव्यवस्था का माहौल बन गया है। न अफसर जवाबदेह हैं, न योजनाएं धरातल पर उतर रही हैं। जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है।
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