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शिमला , 03 सितंबर [ विशाल सूद ] ! राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज राजभवन, शिमला में सुप्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष आचार्य श्री रामचन्द्र तिवारी द्वारा रचित ‘‘हिंदी का गद्य साहित्य’’ के 16वें संस्करण का लोकार्पण किया। आचार्य तिवारी को वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा हिंदी गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया था। पुस्तक का संशोधन एवं परिवर्धन उनके पुत्र डॉ. प्रेमव्रत तिवारी ने किया है। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि यह ग्रंथ हिन्दी गद्य साहित्य के इतिहास पर आधारित एक प्रामाणिक और प्राधिकारपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है, जो गहन शोध और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इसका प्रथम संस्करण वर्ष 1955 में प्रकाशित हुआ था और 16वां संस्करण आज भी विद्वानों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहा है। राज्यपाल ने कहा कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों, अध्यापकों और साहित्य प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर फणीश्वर नाथ रेणु तक के गद्यकारों का मूल्यांकन किया गया है। उन्होंने आचार्य तिवारी और इस पुस्तक को एक-दूसरे का पर्याय बताते हुए इसे ‘‘हिन्दी गद्य का कोष’’ करार दिया। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. चित्तरंजन मिश्र, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व प्रति कुलपति ने पुस्तक को हिन्दी गद्य का महान भंडार बताते हुए आचार्य तिवारी की आजीवन साहित्य के सत्य की खोज को सराहा। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने भी कहा कि यह पुस्तक शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए अमूल्य निधि है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. धर्मव्रत तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन भी प्रस्तुत किया। राज्यपाल के सचिव सी.पी. वर्मा, साहित्यकार एवं भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के फैलो भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
शिमला , 03 सितंबर [ विशाल सूद ] ! राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज राजभवन, शिमला में सुप्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष आचार्य श्री रामचन्द्र तिवारी द्वारा रचित ‘‘हिंदी का गद्य साहित्य’’ के 16वें संस्करण का लोकार्पण किया। आचार्य तिवारी को वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा हिंदी गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया था। पुस्तक का संशोधन एवं परिवर्धन उनके पुत्र डॉ. प्रेमव्रत तिवारी ने किया है।
इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि यह ग्रंथ हिन्दी गद्य साहित्य के इतिहास पर आधारित एक प्रामाणिक और प्राधिकारपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है, जो गहन शोध और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इसका प्रथम संस्करण वर्ष 1955 में प्रकाशित हुआ था और 16वां संस्करण आज भी विद्वानों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो रहा है।
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राज्यपाल ने कहा कि यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों, अध्यापकों और साहित्य प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर फणीश्वर नाथ रेणु तक के गद्यकारों का मूल्यांकन किया गया है। उन्होंने आचार्य तिवारी और इस पुस्तक को एक-दूसरे का पर्याय बताते हुए इसे ‘‘हिन्दी गद्य का कोष’’ करार दिया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. चित्तरंजन मिश्र, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व प्रति कुलपति ने पुस्तक को हिन्दी गद्य का महान भंडार बताते हुए आचार्य तिवारी की आजीवन साहित्य के सत्य की खोज को सराहा। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने भी कहा कि यह पुस्तक शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों के लिए अमूल्य निधि है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. धर्मव्रत तिवारी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन भी प्रस्तुत किया। राज्यपाल के सचिव सी.पी. वर्मा, साहित्यकार एवं भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के फैलो भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
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