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चम्बा 12 मई [ शिवानी ] ! चम्बा जिला के जनजातीय क्षेत्र भरमौर की तरफ पड़ने वाले जिला के अंतिम गांव के ग्रामीणों की हालत काफी दयानीय है। यहां भरमौर जनजाति क्षेत्र की सड़क जहां पर समाप्त होती है उसके आगे करीब 20 किलोमीटर बाद पहाड़ी से कांगड़ा की सीमा शुरू होती है। लेकिन चम्बा जिला के इस अंतिम गांव सुरेई व उरना के ग्रामीण को यहां पर नयाग्रां इलाके वाली माता तक सड़क मार्ग के बाद लोगों को पैदल आना जाना पड़ रहा है। नदी को पार करने के लिए यहां पर दो लकड़ी के पुल बनाए गए हैं। लेकिन उनकी हालत इतनी खस्ता है कि इस पर सफर करना खतरे से खाली नहीं है। हालांकि इस गांव में सड़क मार्ग न होने के वजह से लोग बहुत कम आते जाते हैं लेकिन इस क्षेत्र की करीब 40 पंचायत के भेड़ पालक अपनी माल मवेशियों को इसी रास्ते से कांगड़ा की तरफ ले जाते हैं और नदी पार करने के लिए इसी पुल का इस्तेमाल किया जाता है साथ ही जो सैलानी जागसू पास ट्रेकिंग के लिए जाते हैं वह भी इसी पुल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस पुल की हालत दिन प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है। जब रात के समय कोई बीमार होता है तो उसे पीठ पर उठाकर इलाज के लाना पड़ता है और रात के समय यहां खतरा और भी बढ़ जाता है। अगर गलती से पैर फिसल जाए तो बचने की संभावना बहुत कम है। यहां के स्थानीय लोगों व पंचायत प्रधान ने बताया कि जनजातीय क्षेत्र भरमौर के अंतिम गांव सुरेई व उरना की तरफ जाने के लिए नदी पार करने के लिए जो सिलंग नाले पर पुल बना है उसकी हालत बहुत खराब है। उन्होंने बताया कि यहां पर लकड़ी के फटे लगाए गए हैं वह पूरी तरह से सड़ चुके हैं। दोनों तरफ रेलिंग भी नहीं है और इन गांव के ग्रामीण इसी रास्ते से आते जाते हैं। सैलानी भी ट्रैकिंग पर आने-जाने के लिए इसी पुल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह पुल दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसकी हालात को सुधारा जाए ताकि लोगों को दिक्कत ना हो।
चम्बा 12 मई [ शिवानी ] ! चम्बा जिला के जनजातीय क्षेत्र भरमौर की तरफ पड़ने वाले जिला के अंतिम गांव के ग्रामीणों की हालत काफी दयानीय है। यहां भरमौर जनजाति क्षेत्र की सड़क जहां पर समाप्त होती है उसके आगे करीब 20 किलोमीटर बाद पहाड़ी से कांगड़ा की सीमा शुरू होती है। लेकिन चम्बा जिला के इस अंतिम गांव सुरेई व उरना के ग्रामीण को यहां पर नयाग्रां इलाके वाली माता तक सड़क मार्ग के बाद लोगों को पैदल आना जाना पड़ रहा है।
नदी को पार करने के लिए यहां पर दो लकड़ी के पुल बनाए गए हैं। लेकिन उनकी हालत इतनी खस्ता है कि इस पर सफर करना खतरे से खाली नहीं है। हालांकि इस गांव में सड़क मार्ग न होने के वजह से लोग बहुत कम आते जाते हैं लेकिन इस क्षेत्र की करीब 40 पंचायत के भेड़ पालक अपनी माल मवेशियों को इसी रास्ते से कांगड़ा की तरफ ले जाते हैं और नदी पार करने के लिए इसी पुल का इस्तेमाल किया जाता है साथ ही जो सैलानी जागसू पास ट्रेकिंग के लिए जाते हैं वह भी इसी पुल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस पुल की हालत दिन प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है।
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जब रात के समय कोई बीमार होता है तो उसे पीठ पर उठाकर इलाज के लाना पड़ता है और रात के समय यहां खतरा और भी बढ़ जाता है। अगर गलती से पैर फिसल जाए तो बचने की संभावना बहुत कम है। यहां के स्थानीय लोगों व पंचायत प्रधान ने बताया कि जनजातीय क्षेत्र भरमौर के अंतिम गांव सुरेई व उरना की तरफ जाने के लिए नदी पार करने के लिए जो सिलंग नाले पर पुल बना है उसकी हालत बहुत खराब है।
उन्होंने बताया कि यहां पर लकड़ी के फटे लगाए गए हैं वह पूरी तरह से सड़ चुके हैं। दोनों तरफ रेलिंग भी नहीं है और इन गांव के ग्रामीण इसी रास्ते से आते जाते हैं। सैलानी भी ट्रैकिंग पर आने-जाने के लिए इसी पुल का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह पुल दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसकी हालात को सुधारा जाए ताकि लोगों को दिक्कत ना हो।
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