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सुन्नी ! विश्वव्यापी कोरोना महामारी के संकट के चलते हर वर्ष लगने वाला सुन्नी का दशहरा मेला इस वर्ष नहीं मनाया जा रहा है, परंतु देव परंपराओं को निभाने के लिए सांकेतिक रूप से सुन्नी का दशहरा मनाया गया। सुन्नी क्षेत्र के आसपास के दर्जनों देवी देवता जो जिला स्तरीय दशहरा मेला सुन्नी की शान है, इस वर्ष दशहरे में नहीं पहुंचे, परंतु स्थानीय देवता सहस्त्रबाहु तथा मण्ढोडघाट से देवता कुरगण मेले की परंपरा को जारी रखते हुए देव मिलन के लिए सुन्नी पहुंचे जहां पर स्थानीय लोगों ने दोनों देवताओं का स्वागत किया। सुन्नी के मुख्य चौक पर दोनों देवताओं का मिलन हुआ जहां पर दोनों देवताओं ने दशहरे की खुशी जाहिर की तथा लोगों को आशीर्वाद दिया इसके बाद परंपरा अनुसार देवता दशहरा मैदान पहुंचे। देवता सहस्त्रबाहु ने दशहरा मैदान में पहुंचकर दशहरे में आने वाले विभिन्न देवताओं के स्थानों पर जाकर उनका आवाहन कर संकेतिक रूप से स्वागत किया। विजयदशमी पर रावण दहन की रस्म को निभाते हुए श्री रामलीला क्लब द्वारा रावण का पुतला जलाया गया । रामलीला क्लब के प्रधान जितेंद्र सिंह ने कहा कि देव आज्ञा अनुसार पुतला जलाना जरूरी था इसलिए इस परंपरा को निभाने के लिए स्थानीय देवता सहस्त्रबाहु की उपस्थिति में संकेतिक पुतला जलाया गया।
सुन्नी ! विश्वव्यापी कोरोना महामारी के संकट के चलते हर वर्ष लगने वाला सुन्नी का दशहरा मेला इस वर्ष नहीं मनाया जा रहा है, परंतु देव परंपराओं को निभाने के लिए सांकेतिक रूप से सुन्नी का दशहरा मनाया गया। सुन्नी क्षेत्र के आसपास के दर्जनों देवी देवता जो जिला स्तरीय दशहरा मेला सुन्नी की शान है, इस वर्ष दशहरे में नहीं पहुंचे, परंतु स्थानीय देवता सहस्त्रबाहु तथा मण्ढोडघाट से देवता कुरगण मेले की परंपरा को जारी रखते हुए देव मिलन के लिए सुन्नी पहुंचे जहां पर स्थानीय लोगों ने दोनों देवताओं का स्वागत किया। सुन्नी के मुख्य चौक पर दोनों देवताओं का मिलन हुआ जहां पर दोनों देवताओं ने दशहरे की खुशी जाहिर की तथा लोगों को आशीर्वाद दिया इसके बाद परंपरा अनुसार देवता दशहरा मैदान पहुंचे। देवता सहस्त्रबाहु ने दशहरा मैदान में पहुंचकर दशहरे में आने वाले विभिन्न देवताओं के स्थानों पर जाकर उनका आवाहन कर संकेतिक रूप से स्वागत किया।
विजयदशमी पर रावण दहन की रस्म को निभाते हुए श्री रामलीला क्लब द्वारा रावण का पुतला जलाया गया । रामलीला क्लब के प्रधान जितेंद्र सिंह ने कहा कि देव आज्ञा अनुसार पुतला जलाना जरूरी था इसलिए इस परंपरा को निभाने के लिए स्थानीय देवता सहस्त्रबाहु की उपस्थिति में संकेतिक पुतला जलाया गया।
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