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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) शिमला शहर में बीजेपी की सरकार व नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली से बिगड़ती पेयजल व्यवस्था पर गम्भीर चिंता व्यक्त करती है और प्रदेश की बीजेपी की सरकार व नगर निगम के द्वारा कंपनी बना कर पेयजल की व्यवस्था से निजीकरण की मुहिम पूर्णतः विफल हो गई है। आज शहरवासियों को न तो मीटर रीडिंग के आधार पर मासिक बिल मिल रहे हैं और 8-9 महीने बाद जो हजारों व लाखों रुपए के बिल दिए गए हैं वह बिल्कुल भी व्यवहारिक व न्यायोचित नहीं है। क्योंकि नगर निगम व सरकार स्वंय मान गई है कि करीब 13000 मीटरों का उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे 50 प्रतिशत से अधिक पानी के बिल ही नहीं दे पा रहे हैं। अतः सरकार व नगर निगम के द्वारा कंपनी बनाने के पश्चात पेयजल की व्यवस्था बिल्कुल चौपट हो गई है। बीजेपी पहले से ही प्रदेश व शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण की पक्षधर रही है और 2012 में भी तत्कालीन बीजेपी की सरकार ने शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था निजी कंपनी में सौंपने का कार्य कर दिया था, जिसे 2012 में सीपीएम के महापौर व उपमहापौर के नगर निगम में आने के पश्चात निरस्त कर दिया था। आज जिस प्रकार से सरकार व नगर निगम के द्वारा बनाई गई कंपनी पेयजल व्यवस्था के संचालन में पूर्णतः विफल हो गई है उसको देखते हुए सरकार को तुरंत इस कंपनी को समाप्त कर पेयजल की व्यवस्था नगर निगम को सौंप कर उसको ही पूर्व की भांति पेयजल व्यवस्था का संचालन करने दे। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि शहरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाना संवैधानिक रूप से भी नगर निगम का ही दायित्व है। पूर्व नगर निगम ने सरकार से लम्बे संघर्ष के पश्चात वर्ष 2016 में पेयजल की पूर्ण व्यवस्था अपने हाथों में लेकर नगर निगम के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र के ग्रेटर शिमला वाटर सप्लाई व सीवरेज सर्कल(GSWSSC) का गठन किया था। जिसके संचालन का जिम्मा पूर्ण रूप से नगर निगम का ही था और शिमला शहर में अम्रुत के तहत करीब 80 करोड़ रुपए की व्यवस्था प्रारंभिक रूप से शहर की पेयजल व सीवरेज की व्यवस्था के सुधार के लिए दिया था। इसमें से 8 करोड़ रुपये केवल शहर में पानी के मीटर बदलने के लिए दिये थे और मार्च, 2017 में पानी के मीटर बदलने आरम्भ कर दिये थे तथा मासिक आधार पर जून, 2017 से पानी के बिल देने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसके साथ ही वर्ष 2016 में विश्व बैंक से शिमला शहर में पेयजल व सीवरेज की व्यवस्था के सुधार के लिए करीब 900करोड़ रुपये(125 मिलियन डॉलर) की परियोजना स्वीकृत करवाई गई थी। इससे शिमला शहर को 65 MLD अतरिक्त पानी सतलुज से तथा पूरे शहर को सीवरेज से जोड़ने व पुरानी सीवरेज व्यवस्था के जीर्णोद्धार का कार्य करने की योजना है। परन्तु 2017 में बीजेपी की नगर निगम व सरकार बनाने के पश्चात 3 वर्ष का समय बीतने के बावजूद एक इंच भी कार्य आगे नहीं बढ़ाया गया है। आज जिस प्रकार से सरकार शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था का संचालन कंपनी के माध्यम से कर रही है, उससे स्पष्ट हो गया है कि सरकार की मंशा शहर की पेयजल व्यवस्था को सुधार करने की नहीं है बल्कि इस कंपनी पर किसका वर्चस्व हो उसकी लड़ाई हो गई है। जिस प्रकार से शहर के विधायक व शहरी विकास मंत्री व जल शक्ति विभाग के मंत्री अपने चेहते अफसरों को बिठाकर अपना वर्चस्व जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं उससे इस कंपनी की कार्यप्रणाली बुरी तरह से प्रभावित हुई है और सरकार की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगा है। मंत्रियों का इस कंपनी पर अपना वर्चस्व जमाने का संघर्ष शहर की पेयजल व्यवस्था में सुधार के लिए नहीं है, बल्कि जो करोड़ों रुपए की परियोजनाएं पूर्व नगर निगम ने स्वीकृत करवाई थी उसके माध्यम से8 अपने चेहतों को लाभ देने का है। तभी दोनों मन्त्री इस पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए अपने चेहते अफसरों को बैठाने के लिए खींचतान कर रहे हैं। जोकि हमारे शिमला शहर के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार के मंत्रियों के इस अनावश्यक हस्तक्षेप से जनता की मेहनत की कमाई के करोड़ों रुपए व्यर्थ हो रहे हैं और उसपर आर्थिक बोझ पड़ा है। और यदि इसमें समय रहते सुधार नहीं किया गया तो भविष्य में तो शहर की पेयजल व्यवस्था ही चौपट हो जाएगी।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) शिमला शहर में बीजेपी की सरकार व नगर निगम की लचर कार्यप्रणाली से बिगड़ती पेयजल व्यवस्था पर गम्भीर चिंता व्यक्त करती है और प्रदेश की बीजेपी की सरकार व नगर निगम के द्वारा कंपनी बना कर पेयजल की व्यवस्था से निजीकरण की मुहिम पूर्णतः विफल हो गई है। आज शहरवासियों को न तो मीटर रीडिंग के आधार पर मासिक बिल मिल रहे हैं और 8-9 महीने बाद जो हजारों व लाखों रुपए के बिल दिए गए हैं वह बिल्कुल भी व्यवहारिक व न्यायोचित नहीं है। क्योंकि नगर निगम व सरकार स्वंय मान गई है कि करीब 13000 मीटरों का उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे 50 प्रतिशत से अधिक पानी के बिल ही नहीं दे पा रहे हैं। अतः सरकार व नगर निगम के द्वारा कंपनी बनाने के पश्चात पेयजल की व्यवस्था बिल्कुल चौपट हो गई है। बीजेपी पहले से ही प्रदेश व शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था के निजीकरण की पक्षधर रही है और 2012 में भी तत्कालीन बीजेपी की सरकार ने शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था निजी कंपनी में सौंपने का कार्य कर दिया था, जिसे 2012 में सीपीएम के महापौर व उपमहापौर के नगर निगम में आने के पश्चात निरस्त कर दिया था। आज जिस प्रकार से सरकार व नगर निगम के द्वारा बनाई गई कंपनी पेयजल व्यवस्था के संचालन में पूर्णतः विफल हो गई है उसको देखते हुए सरकार को तुरंत इस कंपनी को समाप्त कर पेयजल की व्यवस्था नगर निगम को सौंप कर उसको ही पूर्व की भांति पेयजल व्यवस्था का संचालन करने दे। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि शहरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाना संवैधानिक रूप से भी नगर निगम का ही दायित्व है।
पूर्व नगर निगम ने सरकार से लम्बे संघर्ष के पश्चात वर्ष 2016 में पेयजल की पूर्ण व्यवस्था अपने हाथों में लेकर नगर निगम के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र के ग्रेटर शिमला वाटर सप्लाई व सीवरेज सर्कल(GSWSSC) का गठन किया था। जिसके संचालन का जिम्मा पूर्ण रूप से नगर निगम का ही था और शिमला शहर में अम्रुत के तहत करीब 80 करोड़ रुपए की व्यवस्था प्रारंभिक रूप से शहर की पेयजल व सीवरेज की व्यवस्था के सुधार के लिए दिया था। इसमें से 8 करोड़ रुपये केवल शहर में पानी के मीटर बदलने के लिए दिये थे और मार्च, 2017 में पानी के मीटर बदलने आरम्भ कर दिये थे तथा मासिक आधार पर जून, 2017 से पानी के बिल देने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसके साथ ही वर्ष 2016 में विश्व बैंक से शिमला शहर में पेयजल व सीवरेज की व्यवस्था के सुधार के लिए करीब 900करोड़ रुपये(125 मिलियन डॉलर) की परियोजना स्वीकृत करवाई गई थी। इससे शिमला शहर को 65 MLD अतरिक्त पानी सतलुज से तथा पूरे शहर को सीवरेज से जोड़ने व पुरानी सीवरेज व्यवस्था के जीर्णोद्धार का कार्य करने की योजना है। परन्तु 2017 में बीजेपी की नगर निगम व सरकार बनाने के पश्चात 3 वर्ष का समय बीतने के बावजूद एक इंच भी कार्य आगे नहीं बढ़ाया गया है।
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आज जिस प्रकार से सरकार शिमला शहर की पेयजल व्यवस्था का संचालन कंपनी के माध्यम से कर रही है, उससे स्पष्ट हो गया है कि सरकार की मंशा शहर की पेयजल व्यवस्था को सुधार करने की नहीं है बल्कि इस कंपनी पर किसका वर्चस्व हो उसकी लड़ाई हो गई है। जिस प्रकार से शहर के विधायक व शहरी विकास मंत्री व जल शक्ति विभाग के मंत्री अपने चेहते अफसरों को बिठाकर अपना वर्चस्व जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं उससे इस कंपनी की कार्यप्रणाली बुरी तरह से प्रभावित हुई है और सरकार की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगा है। मंत्रियों का इस कंपनी पर अपना वर्चस्व जमाने का संघर्ष शहर की पेयजल व्यवस्था में सुधार के लिए नहीं है, बल्कि जो करोड़ों रुपए की परियोजनाएं पूर्व नगर निगम ने स्वीकृत करवाई थी उसके माध्यम से8 अपने चेहतों को लाभ देने का है। तभी दोनों मन्त्री इस पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए अपने चेहते अफसरों को बैठाने के लिए खींचतान कर रहे हैं। जोकि हमारे शिमला शहर के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार के मंत्रियों के इस अनावश्यक हस्तक्षेप से जनता की मेहनत की कमाई के करोड़ों रुपए व्यर्थ हो रहे हैं और उसपर आर्थिक बोझ पड़ा है। और यदि इसमें समय रहते सुधार नहीं किया गया तो भविष्य में तो शहर की पेयजल व्यवस्था ही चौपट हो जाएगी।
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