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शिमला ! रीढ़ की हड्डी की समस्याएं तथा बिना चीर फाड़ के आप्रेशन की तकनीकों संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए पारस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की टीम ने पत्रकारों को संबोधित किया। इसमें अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डा. अनिल ढींगरा तथा कंसलटेंट डा. राजीव गर्ग शामिल थे। डा. अनिल ढींगरा ने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए 20-30 वर्ष की उम्र वर्ग का देश का हर पांचवा नौजवान रीढ़ की हड्डी की समस्या से पीडि़त हैं। यह समस्या पहले बुजुर्गों में देखी जाती थी। उन्होंने बताया कि बीते समय दौरान नौजवानों में रीढ़ की हड्डी की समस्याओं में 60 प्रतिशत इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि नौजवानों की जीवन शैली में बदलाव, अधिक वजन, विटामिन डी, बी-12, कैल्शियम तथा प्रोटीन की कमी नौजवानों में इस समस्या का मुख्य कारण है। डा. ढींगरा ने बताया कि लंबा समय लगातार एक ही पोजीशन में बैठने तथा गलत पोजीशन में बैठने से भी रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है, जिससे पीठ तथा गर्दन में बहुत जयादा दर्द होता है। उन्होंने बताया कि रीढ़ की हड्डी की समस्याएं बढऩे से भारत में रीढ़ की सर्जरी की नवीनतम तकनीकें इजाद हुई हैं। डा. ढींगरा ने बताया कि किसी समय आप्रेशन से तीन महीनों के लिए बिस्तर पर आराम (बैड रेस्ट) के लिए कहा जाता था, जो अब प्रगती करके एक दिन के आराम तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि ऐसी की-होल (छोटा सुराख) सर्जरी तकनीक से ही संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि जो मरीज दवाईयों या फिजियोथैरेपी आदि से ठीक नहीं होते तथा जिनके हाथों-पैरों में कमजोरी तथा सुन्नापन महसूस होता है, उनके लिए ऐसी सर्जरी की सिफारिश की जाती है, जिसमें चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ती। डा. राजीव गर्ग ने इस मौके संबोधन करते हुए कहा कि हमारी रीढ़ की हड्डी, छोटे छोटे मनकों से बनी होती है, जिनमें छोटी-छोटी डिस्कें होती हैं, जो किसी भी तरह के झटके को सहन करने का काम करती है। दुरूस्त पोजीशन में ना बैठने तथा रीढ़ की हड्डी पर लगातार दबाव पडऩे से यह डिस्कें खुशक रहने लग जाती हैं, जिस कारण डिस्क में दरारें आने तथा सुखमना नाड़ी (स्पाइनल कोर्ड) पर दबाव पड़ता है। इससे टांगों तथा कमर में बहुत तेज दर्द होता है। डा. गर्ग ने बताया कि हम अपनी जीवन शैली बदलकर इस समस्या से बच सकते हैं। पारस अस्पताल के फैसलिटी डायरेक्टर आशीष चड्ढा ने बताया कि इस अस्पताल में रीढ़ की हड्डी के इलाज के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल के पास हर तरह की न्यूरो सर्जरी के लिए सभी आध्ुानिक सामान तथा मशीनें मौजूद हैं।
शिमला ! रीढ़ की हड्डी की समस्याएं तथा बिना चीर फाड़ के आप्रेशन की तकनीकों संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए पारस अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की टीम ने पत्रकारों को संबोधित किया। इसमें अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डा. अनिल ढींगरा तथा कंसलटेंट डा. राजीव गर्ग शामिल थे। डा. अनिल ढींगरा ने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए 20-30 वर्ष की उम्र वर्ग का देश का हर पांचवा नौजवान रीढ़ की हड्डी की समस्या से पीडि़त हैं। यह समस्या पहले बुजुर्गों में देखी जाती थी।
उन्होंने बताया कि बीते समय दौरान नौजवानों में रीढ़ की हड्डी की समस्याओं में 60 प्रतिशत इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि नौजवानों की जीवन शैली में बदलाव, अधिक वजन, विटामिन डी, बी-12, कैल्शियम तथा प्रोटीन की कमी नौजवानों में इस समस्या का मुख्य कारण है।
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डा. ढींगरा ने बताया कि लंबा समय लगातार एक ही पोजीशन में बैठने तथा गलत पोजीशन में बैठने से भी रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है, जिससे पीठ तथा गर्दन में बहुत जयादा दर्द होता है। उन्होंने बताया कि रीढ़ की हड्डी की समस्याएं बढऩे से भारत में रीढ़ की सर्जरी की नवीनतम तकनीकें इजाद हुई हैं। डा. ढींगरा ने बताया कि किसी समय आप्रेशन से तीन महीनों के लिए बिस्तर पर आराम (बैड रेस्ट) के लिए कहा जाता था, जो अब प्रगती करके एक दिन के आराम तक पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि ऐसी की-होल (छोटा सुराख) सर्जरी तकनीक से ही संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि जो मरीज दवाईयों या फिजियोथैरेपी आदि से ठीक नहीं होते तथा जिनके हाथों-पैरों में कमजोरी तथा सुन्नापन महसूस होता है, उनके लिए ऐसी सर्जरी की सिफारिश की जाती है, जिसमें चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ती।
डा. राजीव गर्ग ने इस मौके संबोधन करते हुए कहा कि हमारी रीढ़ की हड्डी, छोटे छोटे मनकों से बनी होती है, जिनमें छोटी-छोटी डिस्कें होती हैं, जो किसी भी तरह के झटके को सहन करने का काम करती है। दुरूस्त पोजीशन में ना बैठने तथा रीढ़ की हड्डी पर लगातार दबाव पडऩे से यह डिस्कें खुशक रहने लग जाती हैं, जिस कारण डिस्क में दरारें आने तथा सुखमना नाड़ी (स्पाइनल कोर्ड) पर दबाव पड़ता है। इससे टांगों तथा कमर में बहुत तेज दर्द होता है। डा. गर्ग ने बताया कि हम अपनी जीवन शैली बदलकर इस समस्या से बच सकते हैं।
पारस अस्पताल के फैसलिटी डायरेक्टर आशीष चड्ढा ने बताया कि इस अस्पताल में रीढ़ की हड्डी के इलाज के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल के पास हर तरह की न्यूरो सर्जरी के लिए सभी आध्ुानिक सामान तथा मशीनें मौजूद हैं।
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