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सोलन , ( बद्दी ) 20 नवम्बर [ पंकज गोल्डी ] ! चण्डीगढ़ के पूर्व सांसद, भारत सरकार के अपर महासालिसिटर एवं पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट व सिंडीकेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य सत्य पाल जैन ने कहा है कि अब समय आ गया जब दल-बदल कानून में संशोधन करके दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर निर्णय करने की शक्ति विधानसभा के स्पीकरों से लेकर चुनाव आयोग आदि निष्पक्ष संस्थाओं को दी जानी चाहिये । तथा दल-बदल विरोधी कानून सांसदों और विधानसभा के साथ-साथ नगर निगम, नगर पालिका, जिला परिषद्, पंचायत समिति आदि संस्थाओं पर भी लागू होना चाहिये। जैन आज प्रातः भारतीय विद्यापीठ नई दिल्ली द्वारा दल-बदल विरोधी कानून पर आयोजित वेबीनार में मुख्य वक्ता के नाते बाल रहे थे। जैन ने कहा कि दल-बदल विरोधी कानून जो 1985 में बनाया गया था, दल-बदल रोकने में इसलिये पूरी तरह सफल नहीं हो पाया क्योंकि विधानसभाओं के स्पीकर ऐसी याचिकाओं पर अपनी व अपनी पार्टी के हित में निर्णय करते हैं न की संविधान या कानून के अनुसार। उन्होंने कहा कि लगभग सभी विधानसभा अध्यक्षों के फैसले कानून में स्पष्टता के बावजूद उसी पार्टी के पक्ष में आते हैं जिस पार्टी से स्पीकर संबंधित है। उन्होंने कहा कि कई बार तो विधानसभा अध्यक्ष अपनी पार्टी के हित के लिये 3-3, 4-4 साल तक इन याचिकाओं के निर्णय नहीं करते बाद में वही निर्णय होता तो जो उनकी पार्टी के पक्ष में हो। जैन ने कहा कि समय आ गया है जब दल-बदल विरोधी कानून विधानसभा एवं लोकसभा के साथ-साथ नगर निगम, नगर पालिका, जिला परिषद आदि पर भी लागू किया जाना चाहिये। इस वेबिनार में भारतीय विद्यापीठ के सैंकड़ों छात्रों, शिक्षकों तथा शोधकर्ताओं ने भाग लिया बाद में श्री जैन ने लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये।
सोलन , ( बद्दी ) 20 नवम्बर [ पंकज गोल्डी ] ! चण्डीगढ़ के पूर्व सांसद, भारत सरकार के अपर महासालिसिटर एवं पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट व सिंडीकेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य सत्य पाल जैन ने कहा है कि अब समय आ गया जब दल-बदल कानून में संशोधन करके दल-बदल विरोधी याचिकाओं पर निर्णय करने की शक्ति विधानसभा के स्पीकरों से लेकर चुनाव आयोग आदि निष्पक्ष संस्थाओं को दी जानी चाहिये ।
तथा दल-बदल विरोधी कानून सांसदों और विधानसभा के साथ-साथ नगर निगम, नगर पालिका, जिला परिषद्, पंचायत समिति आदि संस्थाओं पर भी लागू होना चाहिये। जैन आज प्रातः भारतीय विद्यापीठ नई दिल्ली द्वारा दल-बदल विरोधी कानून पर आयोजित वेबीनार में मुख्य वक्ता के नाते बाल रहे थे।
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जैन ने कहा कि दल-बदल विरोधी कानून जो 1985 में बनाया गया था, दल-बदल रोकने में इसलिये पूरी तरह सफल नहीं हो पाया क्योंकि विधानसभाओं के स्पीकर ऐसी याचिकाओं पर अपनी व अपनी पार्टी के हित में निर्णय करते हैं न की संविधान या कानून के अनुसार। उन्होंने कहा कि लगभग सभी विधानसभा अध्यक्षों के फैसले कानून में स्पष्टता के बावजूद उसी पार्टी के पक्ष में आते हैं जिस पार्टी से स्पीकर संबंधित है।
उन्होंने कहा कि कई बार तो विधानसभा अध्यक्ष अपनी पार्टी के हित के लिये 3-3, 4-4 साल तक इन याचिकाओं के निर्णय नहीं करते बाद में वही निर्णय होता तो जो उनकी पार्टी के पक्ष में हो। जैन ने कहा कि समय आ गया है जब दल-बदल विरोधी कानून विधानसभा एवं लोकसभा के साथ-साथ नगर निगम, नगर पालिका, जिला परिषद आदि पर भी लागू किया जाना चाहिये। इस वेबिनार में भारतीय विद्यापीठ के सैंकड़ों छात्रों, शिक्षकों तथा शोधकर्ताओं ने भाग लिया बाद में श्री जैन ने लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये।
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