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हिमाचल ! देश का अन्नदाता, खेतों में काम करने वाले किसान अपने खेत छोड़कर सड़कों पर उतर आए हैं और नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इन नए कानूनों के कारण वे अपनी जमीन और फसल को लेकर शंका ग्रस्त नजर आ रहे हैं। देश में इन कृषि कानूनों को लेकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आवाह्न पर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश के किसान तीन नये कानूनो का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वर्तमान सरकार संसद के मानसून सत्र में ये कानून लेकर आई, लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति ने इन पारित विधेयकों पर अपने हस्ताक्षर कर कानून में बदल दिए। इस कानून के विरोध में पंजाब में पहले से ही आंदोलन चल रहा था। पंजाब के किसानों ने चक्का जाम, रेल रोको कर आंदोलन को जुझारू बना दिया। केंद्र सरकार और कृषक नेताओं में लगभग सात घंटे चली वार्ता विफल रही।आखिर ऐसा क्या है कि देश के किसान इन तीन विधेयकों के पास होने के बाद भड़क उठे हैं और 26-27 नवंबर से देशभर के किसान दिल्ली कूच कर गये। जब रोका गया तो वे दिल्ली जाने वाली सड़कों पर बैठे धरना दे रहे हैं। हरियाणा सरकार ने जिस तरीके से दमनकारी नीति अपनाकर आंदोलन को कुचलने की कोशिश की व किसानों को दिल्ली जाने से रोका, निसंदेह यह हरियाणा सरकार व केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों का ही एक रूप हो सकता है। खेमों में बंटा हुआ राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कोई इन किसानों को आतंकवादी तो कोई खालिस्तानी कह रहा है। यहां तक की कुछ चैनलों ने तो इस कृषक आंदोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित आंदोलन कहा है। अगर हम सोशल मीडिया व अन्य छोटे पोर्टल व चैनलों पर नजर दौड़ने तो हम पाएंगे कि सोशल मीडिया किस तरीके से किसानों को अपना समर्थन दे रहा है। यह सत्य है कि अगर कांग्रेस में इतना बड़ा आंदोलन चलाने की क्षमता होती तो वे चुनावों में अपनी इतनी दुर्गति होती ना देखते । बड़ा कृषक जनसमर्थन उनके साथ होता तो वे चुनावों मे अपनी हार का मुंह ना देख पाते । उधर सरकार ने इन कानूनों को देश में कृषकों के लिए सबसे बेहतरीन कानून माना है और यह कहां है कि ऐसे कानून आज तक नहीं बने जो कृषकों को उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सके। कृषि मंत्री के साथ-साथ रेल मंत्री भी इस कानून का विरोध करने वाले किसनों पर भड़के हुए हैं क्योंकि पंजाब ने रेल रोको आंदोलन कर रखा था, जिससे पंजाब के क्षेत्रों में रेलवे आवाजाही बंद हो गई थी। किसान नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वी एम सिंह ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार के तीनों कानूनों को भले ही सरकार किसान के हित में बता रही है लेकिन ये कानून बिल्कुल भी किसानों के हित में नहीं है। इन कानूनों से किसान, मजदूर बनकर रह जाएंगे। ये कानून हम किसानों के लिए ना होकर कारपरेट हाउसों को संरक्षण देने के लिए बनाया गया है, इसीलिए किसान विरोध कर रहे हैं। ये किसान सिर्फ पंजाब से ही नहीं है बल्कि करनाल, रोहतक, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद सहित हरियाणा में 20 स्थानों पर किसानों ने प्रदर्शन किया है। उधर मथुरा- दिल्ली हाईवे, गाजियाबाद दिल्ली हाईवे पर भी जाम लगा हुआ है। यह सामान्य जाम नहीं बल्कि किसानों की टोलियां सड़कों पर डटी हुई हैं। आंदोलन इतना प्रचंड हो गया है कि कृषक कृषि मंत्री और गृह मंत्री की बात सुनने को तैयार नहीं है। ऐसा मानते हैं कि किसी तरीके से आंदोलनकारियों को बहका सरकार आंदोलन को शांत करना चाहती है। यद्यपि सरकार ने अंततः आंदोलनकारी कृषकों को दिल्ली आने दिया व वार्ता करने के लिये भी आमंत्रित कर रही है, पर किसान हैं कि बस मानते नहीं। यहां केंद्र सरकार और किसानों के बीच एक संघर्ष की स्थिति पैदा होने जा रही है। देश के 52 फ़ीसदी किसान यानि हर दूसरा किसान इन तीनों कानूनों के विरोध में हैंष इनकी एक सीधी मांग है कि कृषकों को अपनी फसल का “न्यूनतम समर्थन मूल्य” मिलना सुनिश्चित किया जाए। जबकि कानूनों में समर्थन मूल्य की बात नहीं की गई है। आंदोलनकारी कृषकों का मानना है कि उनकी उगाई फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाहर निकलकर मंडियों में ना जाकर कारपोरेट घरानों के हाथों में चली जाएगी जिससे उन्हें निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा और वे कंगाल बन जाएंगे। कृषकों की बात को समझने के लिए इन तीनों कृषि कानूनों को समझना बहुत जरूरी है, जिसकी व्याख्या सरकार अपने तरीके से व कृषक अपने तरीके से कर रहे हैं। लेकिन सरकार का दावा है कि इन कानूनों से कृषक दलालों के चुंगल से बाहर निकल जाएंगें और उनकी फसल कोई भी खरीद पाएगा जो पहले मंडियों में आढतियों के पास जाया करती थी, वह किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए बाध्य थे। वे फसलें खरीद कर सरकार व भारतीय खाद्य निगम को दिया करते थे अपना कमीशन बीच में रख लेते थे। ये यह कानून है, ‘कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और) सुधार बिल -2020’। ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020’। और तीसरा कानून है ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम- 2020’। तीसरे कानून के अंतर्गत तो गेहूं तथा चावल को से बाहर कर दिया गया है। किसानों को वैसे ही समर्थन मूल्य नहीं मिल रहे हैं फिर ऐसे कानून आने से किसानों की फसलों के भाव और भी कम हो जाएंगे। उत्तर प्रदेश में अच्छे धान का अधिकतम सरकारी रेट ₹1888 प्रति कुंलत है। सरकारी खरीद होने के बावजूद किसान धान 1000 और 1200 रू. के बीच में बेचने के लिये विवश हैं। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से 4 अक्टूबर को जारी आंकड़ों के अनुसार 3 अक्टूबर तक एमएसपी पर 1082.4654 करोड़ रुपए की खरीद हुई है जिससे 41,084 किसानों को लाभ मिला है। नये कानून के अनुसार सरकारी खरीद केंद्रों पर फसल बेचने के लिए किसान के पास खसरा खतौनी, बैंक पासबुक और आधार कार्ड होना जरूरी है वे सरकारी मंडियों में अपनी फसल को बेच सकेंगे। इससे इससे बटाई कर फसल बेचने वाले और ठेके पर खेती करने वाले किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 में एक ऐसा प्रावधान किया गया है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। इस कानून के प्रावधान में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात की गई है। मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने की भी बात की गई। कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 में कृषि उत्पाद विपणन के लिये राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। यह कृषि बिल उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस, थोक विक्रेताओं बड़े , खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ने के लिए सशक्त करता। यही में चिंता है जहां कृषक कारपोरेट जगत से डरते नजर आ रहे हैं। इस प्रावधान के तहत किसानों से अनुबंध किया जाएगा और अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक,2020 में अनाज, तिलहन, दलहन ,खाद्य तेल,प्याज, आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। माना जा रहा है कि इस विधेयक के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढेगी। किसान यह समझ रहे हैं कि इस विधेयक के माध्यम से सारा कृषक जगत कारपोरेट घरानों व पूंजीपतियों के हाथ में चला जाएगा और कृषकों को भारी नुकसान होगा। अभी तक पंजाब में किसान की फसल एफ सी आई खरीदता है। वर्ष 2019-2020 के दौरान रवी मार्केटिंग सीजन में केंद्र द्वारा खरीदे गए 341 मैट्रिक टन गेहूं में से 130 लाख मैट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति पंजाब ने की है। प्रदर्शनकारियों को डर है कि अब राज्य की मंडियों से भारतीय खाद्य निगम खरीद नहीं करेगा जिससे आढ़तियों, एजेंटों को 2.5 प्रतिशत कमीशन का घाटा होगा और राज्य सरकारे अपना 6% कमीशन खो देंगी जो एजेंसियों की खरीद पर लगाया जाता। किसानों का कहना है ये विधेयक किसानों के लिए नहीं बल्कि बाजार के लिए लाए गए हैं। इन विधेयकों के चलते किसान अपनी जमीनें खुद ना बीज कर पूंजीपतियों को बेच देंगे व खुद मजदूरी करने पर विवश हो जाएंगे। देखते हैं कृषकों का यह आंदोलन क्या सरकार को इन कृषि कानूनों में परिवर्तन करने या तरमीम करने के लिए बाध्य करेगा या नहीं। देवेंद्र धर
हिमाचल ! देश का अन्नदाता, खेतों में काम करने वाले किसान अपने खेत छोड़कर सड़कों पर उतर आए हैं और नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इन नए कानूनों के कारण वे अपनी जमीन और फसल को लेकर शंका ग्रस्त नजर आ रहे हैं। देश में इन कृषि कानूनों को लेकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आवाह्न पर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश के किसान तीन नये कानूनो का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वर्तमान सरकार संसद के मानसून सत्र में ये कानून लेकर आई, लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद राष्ट्रपति ने इन पारित विधेयकों पर अपने हस्ताक्षर कर कानून में बदल दिए। इस कानून के विरोध में पंजाब में पहले से ही आंदोलन चल रहा था। पंजाब के किसानों ने चक्का जाम, रेल रोको कर आंदोलन को जुझारू बना दिया। केंद्र सरकार और कृषक नेताओं में लगभग सात घंटे चली वार्ता विफल रही।आखिर ऐसा क्या है कि देश के किसान इन तीन विधेयकों के पास होने के बाद भड़क उठे हैं और 26-27 नवंबर से देशभर के किसान दिल्ली कूच कर गये। जब रोका गया तो वे दिल्ली जाने वाली सड़कों पर बैठे धरना दे रहे हैं। हरियाणा सरकार ने जिस तरीके से दमनकारी नीति अपनाकर आंदोलन को कुचलने की कोशिश की व किसानों को दिल्ली जाने से रोका, निसंदेह यह हरियाणा सरकार व केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों का ही एक रूप हो सकता है। खेमों में बंटा हुआ राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कोई इन किसानों को आतंकवादी तो कोई खालिस्तानी कह रहा है। यहां तक की कुछ चैनलों ने तो इस कृषक आंदोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित आंदोलन कहा है। अगर हम सोशल मीडिया व अन्य छोटे पोर्टल व चैनलों पर नजर दौड़ने तो हम पाएंगे कि सोशल मीडिया किस तरीके से किसानों को अपना समर्थन दे रहा है। यह सत्य है कि अगर कांग्रेस में इतना बड़ा आंदोलन चलाने की क्षमता होती तो वे चुनावों में अपनी इतनी दुर्गति होती ना देखते ।
बड़ा कृषक जनसमर्थन उनके साथ होता तो वे चुनावों मे अपनी हार का मुंह ना देख पाते । उधर सरकार ने इन कानूनों को देश में कृषकों के लिए सबसे बेहतरीन कानून माना है और यह कहां है कि ऐसे कानून आज तक नहीं बने जो कृषकों को उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सके। कृषि मंत्री के साथ-साथ रेल मंत्री भी इस कानून का विरोध करने वाले किसनों पर भड़के हुए हैं क्योंकि पंजाब ने रेल रोको आंदोलन कर रखा था, जिससे पंजाब के क्षेत्रों में रेलवे आवाजाही बंद हो गई थी। किसान नेता और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वी एम सिंह ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार के तीनों कानूनों को भले ही सरकार किसान के हित में बता रही है लेकिन ये कानून बिल्कुल भी किसानों के हित में नहीं है। इन कानूनों से किसान, मजदूर बनकर रह जाएंगे। ये कानून हम किसानों के लिए ना होकर कारपरेट हाउसों को संरक्षण देने के लिए बनाया गया है, इसीलिए किसान विरोध कर रहे हैं। ये किसान सिर्फ पंजाब से ही नहीं है बल्कि करनाल, रोहतक, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद सहित हरियाणा में 20 स्थानों पर किसानों ने प्रदर्शन किया है। उधर मथुरा- दिल्ली हाईवे, गाजियाबाद दिल्ली हाईवे पर भी जाम लगा हुआ है। यह सामान्य जाम नहीं बल्कि किसानों की टोलियां सड़कों पर डटी हुई हैं।
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आंदोलन इतना प्रचंड हो गया है कि कृषक कृषि मंत्री और गृह मंत्री की बात सुनने को तैयार नहीं है। ऐसा मानते हैं कि किसी तरीके से आंदोलनकारियों को बहका सरकार आंदोलन को शांत करना चाहती है। यद्यपि सरकार ने अंततः आंदोलनकारी कृषकों को दिल्ली आने दिया व वार्ता करने के लिये भी आमंत्रित कर रही है, पर किसान हैं कि बस मानते नहीं। यहां केंद्र सरकार और किसानों के बीच एक संघर्ष की स्थिति पैदा होने जा रही है। देश के 52 फ़ीसदी किसान यानि हर दूसरा किसान इन तीनों कानूनों के विरोध में हैंष इनकी एक सीधी मांग है कि कृषकों को अपनी फसल का “न्यूनतम समर्थन मूल्य” मिलना सुनिश्चित किया जाए। जबकि कानूनों में समर्थन मूल्य की बात नहीं की गई है। आंदोलनकारी कृषकों का मानना है कि उनकी उगाई फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाहर निकलकर मंडियों में ना जाकर कारपोरेट घरानों के हाथों में चली जाएगी जिससे उन्हें निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा और वे कंगाल बन जाएंगे।
कृषकों की बात को समझने के लिए इन तीनों कृषि कानूनों को समझना बहुत जरूरी है, जिसकी व्याख्या सरकार अपने तरीके से व कृषक अपने तरीके से कर रहे हैं। लेकिन सरकार का दावा है कि इन कानूनों से कृषक दलालों के चुंगल से बाहर निकल जाएंगें और उनकी फसल कोई भी खरीद पाएगा जो पहले मंडियों में आढतियों के पास जाया करती थी, वह किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए बाध्य थे। वे फसलें खरीद कर सरकार व भारतीय खाद्य निगम को दिया करते थे अपना कमीशन बीच में रख लेते थे।
ये यह कानून है, ‘कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और) सुधार बिल -2020’। ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020’। और तीसरा कानून है ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम- 2020’। तीसरे कानून के अंतर्गत तो गेहूं तथा चावल को से बाहर कर दिया गया है। किसानों को वैसे ही समर्थन मूल्य नहीं मिल रहे हैं फिर ऐसे कानून आने से किसानों की फसलों के भाव और भी कम हो जाएंगे। उत्तर प्रदेश में अच्छे धान का अधिकतम सरकारी रेट ₹1888 प्रति कुंलत है। सरकारी खरीद होने के बावजूद किसान धान 1000 और 1200 रू. के बीच में बेचने के लिये विवश हैं। केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से 4 अक्टूबर को जारी आंकड़ों के अनुसार 3 अक्टूबर तक एमएसपी पर 1082.4654 करोड़ रुपए की खरीद हुई है जिससे 41,084 किसानों को लाभ मिला है। नये कानून के अनुसार सरकारी खरीद केंद्रों पर फसल बेचने के लिए किसान के पास खसरा खतौनी, बैंक पासबुक और आधार कार्ड होना जरूरी है वे सरकारी मंडियों में अपनी फसल को बेच सकेंगे। इससे इससे बटाई कर फसल बेचने वाले और ठेके पर खेती करने वाले किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है।
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 में एक ऐसा प्रावधान किया गया है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। इस कानून के प्रावधान में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात की गई है। मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने की भी बात की गई। कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 में कृषि उत्पाद विपणन के लिये राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। यह कृषि बिल उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस, थोक विक्रेताओं बड़े , खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ने के लिए सशक्त करता। यही में चिंता है जहां कृषक कारपोरेट जगत से डरते नजर आ रहे हैं। इस प्रावधान के तहत किसानों से अनुबंध किया जाएगा और अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, ऋण की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक,2020 में अनाज, तिलहन, दलहन ,खाद्य तेल,प्याज, आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है। माना जा रहा है कि इस विधेयक के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढेगी। किसान यह समझ रहे हैं कि इस विधेयक के माध्यम से सारा कृषक जगत कारपोरेट घरानों व पूंजीपतियों के हाथ में चला जाएगा और कृषकों को भारी नुकसान होगा। अभी तक पंजाब में किसान की फसल एफ सी आई खरीदता है। वर्ष 2019-2020 के दौरान रवी मार्केटिंग सीजन में केंद्र द्वारा खरीदे गए 341 मैट्रिक टन गेहूं में से 130 लाख मैट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति पंजाब ने की है। प्रदर्शनकारियों को डर है कि अब राज्य की मंडियों से भारतीय खाद्य निगम खरीद नहीं करेगा जिससे आढ़तियों, एजेंटों को 2.5 प्रतिशत कमीशन का घाटा होगा और राज्य सरकारे अपना 6% कमीशन खो देंगी जो एजेंसियों की खरीद पर लगाया जाता।
किसानों का कहना है ये विधेयक किसानों के लिए नहीं बल्कि बाजार के लिए लाए गए हैं। इन विधेयकों के चलते किसान अपनी जमीनें खुद ना बीज कर पूंजीपतियों को बेच देंगे व खुद मजदूरी करने पर विवश हो जाएंगे। देखते हैं कृषकों का यह आंदोलन क्या सरकार को इन कृषि कानूनों में परिवर्तन करने या तरमीम करने के लिए बाध्य करेगा या नहीं। देवेंद्र धर
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