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हमीरपुर, 26 मई [ बिंदिया ठाकुर ] ! इंजीनियर विमल नेगी की संदिग्ध मौत की सीबीआई जांच के आदेश पर उठे सवालों ने हिमाचल प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने इस पूरे मामले में तीखा हमला बोलते हुए पूछा है कि क्या शिमला के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को राज्य सरकार ने अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने की आधिकारिक अनुमति दे दी है? अगर नहीं, तो क्या एक सरकारी अधिकारी को सेवा नियमों की अवहेलना करते हुए प्रेस वार्ता में इस तरह के बयान देने का अधिकार है? राजेंद्र राणा ने आरोप लगाया कि एसपी शिमला सिर्फ सीबीआई जांच का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि अपनी प्रेस कांफ्रेंस में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, मुख्य सचिव और यहां तक कि होम डिपार्टमेंट पर भी सार्वजनिक रूप से उंगलियां उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर एसपी के पास कोई ठोस तथ्य हैं, तो उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों या सीधे मुख्यमंत्री के समक्ष रखना चाहिए, न कि मीडिया का सहारा लेना चाहिए। उन्होंने तीखा सवाल उठाया कि आखिर एसपी को इस तरह बोलने की प्रेरणा देने वाली ताकत कौन सी है? क्या सरकार वास्तव में हाई कोर्ट के आदेश से इतनी असहज है कि वह खुद जांच से बचने की कोशिश कर रही है? क्या सरकार नहीं चाहती कि विमल नेगी के परिजनों को न्याय मिले? राणा ने इस बात पर भी चिंता जताई कि जांच के लिए 19 मार्च को गठित एसआईटी इस मामले को शुरू से ही आत्महत्या की दिशा में मोड़ने में लगी है। उन्होंने आशंका जताई कि कहीं यह हत्या को आत्महत्या का जामा पहनाने की साजिश तो नहीं? पूर्व विधायक ने कहा कि जहां एक ओर मुख्यमंत्री विधानसभा में कहते हैं कि नेगी का परिवार जांच से संतुष्ट है, वहीं उनकी पत्नी हाई कोर्ट में कह रही हैं कि उन्हें इस जांच पर विश्वास नहीं है और जांच सीबीआई से होनी चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए जवाब देने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि हिमाचल प्रदेश पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है, और अब अधिकारियों के ऐसे व्यवहार से संवैधानिक संकट खड़ा हो रहा है। एसपी द्वारा सीबीआई को दस्तावेज देने से मना करना, और कॉर्पोरेशन द्वारा भी ऐसा ही रुख अपनाना, सवालों के घेरे में है। राजेंद्र राणा ने कहां की प्रदेश के मुख्यमंत्री को जनता के सामने यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या सरकार द्वारा एसपी शिमला को अदालत में अपील की अनुमति दी गई है? या फिर एक अनुशासित सेवा में कार्यरत अधिकारी सरकार को अंधेरे में रखकर मीडिया के माध्यम से आदेशों को चुनौती दे रहा है।
हमीरपुर, 26 मई [ बिंदिया ठाकुर ] ! इंजीनियर विमल नेगी की संदिग्ध मौत की सीबीआई जांच के आदेश पर उठे सवालों ने हिमाचल प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने इस पूरे मामले में तीखा हमला बोलते हुए पूछा है कि क्या शिमला के पुलिस अधीक्षक (एसपी) को राज्य सरकार ने अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करने की आधिकारिक अनुमति दे दी है? अगर नहीं, तो क्या एक सरकारी अधिकारी को सेवा नियमों की अवहेलना करते हुए प्रेस वार्ता में इस तरह के बयान देने का अधिकार है?
राजेंद्र राणा ने आरोप लगाया कि एसपी शिमला सिर्फ सीबीआई जांच का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि अपनी प्रेस कांफ्रेंस में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, मुख्य सचिव और यहां तक कि होम डिपार्टमेंट पर भी सार्वजनिक रूप से उंगलियां उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर एसपी के पास कोई ठोस तथ्य हैं, तो उन्हें अपने वरिष्ठ अधिकारियों या सीधे मुख्यमंत्री के समक्ष रखना चाहिए, न कि मीडिया का सहारा लेना चाहिए।
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उन्होंने तीखा सवाल उठाया कि आखिर एसपी को इस तरह बोलने की प्रेरणा देने वाली ताकत कौन सी है? क्या सरकार वास्तव में हाई कोर्ट के आदेश से इतनी असहज है कि वह खुद जांच से बचने की कोशिश कर रही है? क्या सरकार नहीं चाहती कि विमल नेगी के परिजनों को न्याय मिले?
राणा ने इस बात पर भी चिंता जताई कि जांच के लिए 19 मार्च को गठित एसआईटी इस मामले को शुरू से ही आत्महत्या की दिशा में मोड़ने में लगी है। उन्होंने आशंका जताई कि कहीं यह हत्या को आत्महत्या का जामा पहनाने की साजिश तो नहीं?
पूर्व विधायक ने कहा कि जहां एक ओर मुख्यमंत्री विधानसभा में कहते हैं कि नेगी का परिवार जांच से संतुष्ट है, वहीं उनकी पत्नी हाई कोर्ट में कह रही हैं कि उन्हें इस जांच पर विश्वास नहीं है और जांच सीबीआई से होनी चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए जवाब देने की मांग की।
उन्होंने यह भी कहा कि हिमाचल प्रदेश पहले ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है, और अब अधिकारियों के ऐसे व्यवहार से संवैधानिक संकट खड़ा हो रहा है। एसपी द्वारा सीबीआई को दस्तावेज देने से मना करना, और कॉर्पोरेशन द्वारा भी ऐसा ही रुख अपनाना, सवालों के घेरे में है।
राजेंद्र राणा ने कहां की प्रदेश के मुख्यमंत्री को जनता के सामने यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या सरकार द्वारा एसपी शिमला को अदालत में अपील की अनुमति दी गई है? या फिर एक अनुशासित सेवा में कार्यरत अधिकारी सरकार को अंधेरे में रखकर मीडिया के माध्यम से आदेशों को चुनौती दे रहा है।
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