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शिमला , 14 जून ! राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज यहां भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) हिमालय वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के सहयोग से हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन द्वारा आयोजित 12वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ किया। प्रारंभिक सत्र को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने युवा वैज्ञानिकों से पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को संरक्षित और एकीकृत करने के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान का वास्तविक उद्देश्य मानवता का कल्याण होना चाहिए, न कि उसका विनाश। राज्यपाल ने पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचारशील और भविष्योन्मुखी चर्चा के लिए आयोजकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को स्थानीय परंपराओं, स्वदेशी ज्ञान और प्रकृति के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिससे इनकी सार्थकता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि जब हम प्रौद्योगिकी के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, तो ज्ञान की हमारी समृद्ध विरासत को आधुनिक नवाचार के साथ जोड़ना महत्त्वपूर्ण है और यह सम्मेलन इस दिशा में सराहनीय पहल है। हिमाचल प्रदेश की अनूठी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल जैसे पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण की पहल न केवल स्थानीय संदर्भ में बल्कि वैश्विक विमर्श में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय विरासत पर शोध करने और उसे महत्त्व देने के लिए प्रेरित कर सकें, तो भारत वैश्विक कल्याण में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। राज्यपाल ने प्राकृतिक सुंदरता के लिए पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होने के बावजूद पहाड़ी राज्य में बढ़ते प्रदूषण के स्तर पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इनमें से कई चुनौतियों का समाधान पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान के माध्यम से किया जा सकता है। स्वदेशी उन्नति का उदाहरण देते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारत की स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली ज्ञान प्रणालियों में अनुसंधान के महत्त्व का प्रमाण है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि विविध वैज्ञानिक विषयों के विद्वान इस मंच का उपयोग नवाचार, स्थिरता और सामाजिक आवश्यकताओं से संबंधित समकालीन मुद्दों का समाधान करने वाले शोध परिणामों को प्रस्तुत करने के लिए करेंगे। राज्यपाल ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग के दुष्प्रभावों के बारे में भी चर्चा की। इस अवसर पर राज्यपाल ने हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के प्रकाशन का विमोचन किया और कुमारी ओशीन और शवीन चोर्टा को ‘चोफला पुरस्कार’ से सम्मानित किया। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आदर्श पाल विग ने कहा कि विकास मॉडल में अर्थशास्त्र और पर्यावरण को साथ-साथ चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र पर तो पूरा ध्यान दिया गया है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण प्राथमिकता होने के बावजूद पिछड़ गया है। उन्होंने कहा कि ‘मेरा पर्यावरण, मेरी जिम्मेदारी’ हर व्यक्ति का मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। उन्होंने राज्य में प्लास्टिक की बोतलों पर प्रतिबंध लगाने की पहल के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार की भी सराहना की। हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने राज्यपाल का स्वागत किया। डीआरडीओ बेंगलुरु के वैज्ञानिक डॉ. दिलीपबाबू विजयकुमार, आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर और हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक प्रो. भुवनेश गुप्ता और एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो. दीपक पठानिया ने भी सम्मेलन को संबोधित किया और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर विचार साझा किए।
शिमला , 14 जून ! राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज यहां भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) हिमालय वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के सहयोग से हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन द्वारा आयोजित 12वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ किया। प्रारंभिक सत्र को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने युवा वैज्ञानिकों से पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को संरक्षित और एकीकृत करने के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान का वास्तविक उद्देश्य मानवता का कल्याण होना चाहिए, न कि उसका विनाश।
राज्यपाल ने पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचारशील और भविष्योन्मुखी चर्चा के लिए आयोजकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को स्थानीय परंपराओं, स्वदेशी ज्ञान और प्रकृति के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिससे इनकी सार्थकता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि जब हम प्रौद्योगिकी के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं, तो ज्ञान की हमारी समृद्ध विरासत को आधुनिक नवाचार के साथ जोड़ना महत्त्वपूर्ण है और यह सम्मेलन इस दिशा में सराहनीय पहल है।
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हिमाचल प्रदेश की अनूठी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल जैसे पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण की पहल न केवल स्थानीय संदर्भ में बल्कि वैश्विक विमर्श में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को राष्ट्रीय विरासत पर शोध करने और उसे महत्त्व देने के लिए प्रेरित कर सकें, तो भारत वैश्विक कल्याण में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
राज्यपाल ने प्राकृतिक सुंदरता के लिए पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होने के बावजूद पहाड़ी राज्य में बढ़ते प्रदूषण के स्तर पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इनमें से कई चुनौतियों का समाधान पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान के माध्यम से किया जा सकता है।
स्वदेशी उन्नति का उदाहरण देते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारत की स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली ज्ञान प्रणालियों में अनुसंधान के महत्त्व का प्रमाण है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि विविध वैज्ञानिक विषयों के विद्वान इस मंच का उपयोग नवाचार, स्थिरता और सामाजिक आवश्यकताओं से संबंधित समकालीन मुद्दों का समाधान करने वाले शोध परिणामों को प्रस्तुत करने के लिए करेंगे।
राज्यपाल ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग के दुष्प्रभावों के बारे में भी चर्चा की। इस अवसर पर राज्यपाल ने हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के प्रकाशन का विमोचन किया और कुमारी ओशीन और शवीन चोर्टा को ‘चोफला पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रो. आदर्श पाल विग ने कहा कि विकास मॉडल में अर्थशास्त्र और पर्यावरण को साथ-साथ चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र पर तो पूरा ध्यान दिया गया है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण प्राथमिकता होने के बावजूद पिछड़ गया है। उन्होंने कहा कि ‘मेरा पर्यावरण, मेरी जिम्मेदारी’ हर व्यक्ति का मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। उन्होंने राज्य में प्लास्टिक की बोतलों पर प्रतिबंध लगाने की पहल के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार की भी सराहना की।
हिमालयन फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. संदीप शर्मा ने राज्यपाल का स्वागत किया। डीआरडीओ बेंगलुरु के वैज्ञानिक डॉ. दिलीपबाबू विजयकुमार, आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर और हिम विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक प्रो. भुवनेश गुप्ता और एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रो. दीपक पठानिया ने भी सम्मेलन को संबोधित किया और पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर विचार साझा किए।
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