नहीं तो सचिवालय घेराव की चेतावनी,बोले आर्थिक संकट तो मंडी रैली क्यों?
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शिमला , 11 दिसंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले जुड़े 18 पेंशनर संगठन अब सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। शीतकालीन सत्र के दौरान भी समिति ने रैली और प्रदर्शन कर सरकार के समक्ष मांगो को उठाया था, लेकिन कोई ठोस परिणाम न निकलने से पेंशनरों में गहरा रोष है। कांगड़ा में हुई रोष रैली के बाद पेंशनर प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार दबाव में आई और मुख्यमंत्री ने वार्ता का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक उन्हें बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है। पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि 17 दिसंबर से पहले वार्ता नहीं होती, तो वे सचिवालय के बाहर उग्र आंदोलन शुरू करेंगे। शिमला में पत्रकार वार्ता कर पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश ठाकुर ने कहा कि समिति की सबसे महत्वपूर्ण मांग जेसीसी का गठन है। सरकार बार-बार आग्रह के बावजूद सरकार कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही। पेंशनर्स के दूसरे गुट पर भी निशाना साधा और कहा कि मुट्ठीभर लोग पेंशनरों को गुमराह कर रहे हैं, जबकि अदालत से जारी स्टे ऑर्डर के कारण वे किसी भी तरह की पेंशनर वेलफेयर गतिविधि चलाने के अधिकृत नहीं हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जिस तथाकथित ‘जॉइंट फ्रंट’ का हवाला दिया जा रहा है, वह न तो पंजीकृत संगठन है और न ही मान्यता प्राप्त। यह वहां लोग हैं जिन्हें पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन से बाहर निकाला गया है। मुख्यमंत्री से ये लोग मिले और कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही लेकिन उन्हें भी असली और फर्जी में अंतर समझना चाहिए। ये लोग सरकार के पिट्ठू बनकर पेंशनरो के हितों को नुकसान पहुंचा रहे है। सुरेश ठाकुर नें कहा कि संयुक्त संघर्ष समिति के साथ दो लाख से अधिक पेंशनर जुड़े हुए हैं, और सरकार को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। मुख्यमंत्री को भी पेंशनरों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सरकार वित्तीय संकट का हवाला देती है, तब मंडी में डिज़ास्टर एक्ट में रैली कैसे आयोजित की जा रही है। इस विरोधाभास को लेकर पेंशनरों में गहरी नाराज़गी है।समिति ने सरकार को साफ-साफ चेतावनी दी है कि यदि 17 दिसंबर से पहले जीसीसी का गठन नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा। पेंशनरों ने कहा कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तो 17 दिसंबर के बाद वे सचिवालय के बाहर बड़ा और उग्र आंदोलन करेंगे।
शिमला , 11 दिसंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले जुड़े 18 पेंशनर संगठन अब सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। शीतकालीन सत्र के दौरान भी समिति ने रैली और प्रदर्शन कर सरकार के समक्ष मांगो को उठाया था, लेकिन कोई ठोस परिणाम न निकलने से पेंशनरों में गहरा रोष है। कांगड़ा में हुई रोष रैली के बाद पेंशनर प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार दबाव में आई और मुख्यमंत्री ने वार्ता का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक उन्हें बैठक के लिए नहीं बुलाया गया है। पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि 17 दिसंबर से पहले वार्ता नहीं होती, तो वे सचिवालय के बाहर उग्र आंदोलन शुरू करेंगे।
शिमला में पत्रकार वार्ता कर पेंशनर्स संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश ठाकुर ने कहा कि समिति की सबसे महत्वपूर्ण मांग जेसीसी का गठन है। सरकार बार-बार आग्रह के बावजूद सरकार कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रही। पेंशनर्स के दूसरे गुट पर भी निशाना साधा और कहा कि मुट्ठीभर लोग पेंशनरों को गुमराह कर रहे हैं, जबकि अदालत से जारी स्टे ऑर्डर के कारण वे किसी भी तरह की पेंशनर वेलफेयर गतिविधि चलाने के अधिकृत नहीं हैं।
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उन्होंने स्पष्ट कहा कि जिस तथाकथित ‘जॉइंट फ्रंट’ का हवाला दिया जा रहा है, वह न तो पंजीकृत संगठन है और न ही मान्यता प्राप्त। यह वहां लोग हैं जिन्हें पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन से बाहर निकाला गया है। मुख्यमंत्री से ये लोग मिले और कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही लेकिन उन्हें भी असली और फर्जी में अंतर समझना चाहिए। ये लोग सरकार के पिट्ठू बनकर पेंशनरो के हितों को नुकसान पहुंचा रहे है। सुरेश ठाकुर नें कहा कि संयुक्त संघर्ष समिति के साथ दो लाख से अधिक पेंशनर जुड़े हुए हैं, और सरकार को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। मुख्यमंत्री को भी पेंशनरों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब सरकार वित्तीय संकट का हवाला देती है, तब मंडी में डिज़ास्टर एक्ट में रैली कैसे आयोजित की जा रही है। इस विरोधाभास को लेकर पेंशनरों में गहरी नाराज़गी है।समिति ने सरकार को साफ-साफ चेतावनी दी है कि यदि 17 दिसंबर से पहले जीसीसी का गठन नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा। पेंशनरों ने कहा कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तो 17 दिसंबर के बाद वे सचिवालय के बाहर बड़ा और उग्र आंदोलन करेंगे।
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