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शिमला, 20 मई [ विशाल सूद ] ! पूर्व उद्योग मंत्री एवं भाजपा विधायक बिक्रम ठाकुर ने आज शिमला में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान कांग्रेस सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि हिमाचल की वर्तमान सरकार हर उस वर्ग के खिलाफ काम कर रही है, जिसे सामाजिक सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की सबसे ज्यादा जरूरत है। चाहे बीपीएल सर्वे हो, पंचायतों की स्वायत्तता, कर्मचारी हित, महिला सम्मान या जनसुविधाएं – हर मोर्चे पर सरकार ने जनविरोधी निर्णय लिए हैं। बिक्रम ठाकुर ने कहा कि सरकार ने बीपीएल सूची में शामिल होने के लिए सालाना आय ₹50,000 तय की है, लेकिन यह मानक केवल पहले से सूची में दर्ज परिवारों पर ही लागू किया जा रहा है। नए आवेदन करने वाले गरीब परिवारों की वास्तविक आय को तहसील स्तर पर जानबूझकर ₹50,000 से ऊपर दर्शाया जा रहा है, जिससे उन्हें बीपीएल सूची से वंचित किया जा सके। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि किसी गरीब परिवार को पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की आवास योजना के तहत एक पक्का कमरा मिला है तो क्या यह अब गरीबी की श्रेणी से बाहर हो गया? सरकार स्पष्ट करे कि योजना का लाभ लेने वाला गरीब क्या अब बीपीएल सूची में रहने का हकदार नहीं है? पूर्व की तुलना में भूमि की अधिकतम सीमा दो हेक्टेयर से घटाकर एक हेक्टेयर करना सरकार की गरीब विरोधी मानसिकता का प्रमाण है। बिक्रम ठाकुर ने आरोप लगाया कि सरकार ने पंचायतों की वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां समाप्त कर दी हैं। अब ग्राम सभा के निर्णयों को दरकिनार कर अधिकारियों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे तय करें कौन बीपीएल सूची में होगा। पंचायत फंड के ब्याज को वापिस लेना, अनस्पेंट राशि पर तीन दिनों के भीतर रिवर्सल का आदेश देना और संपत्ति कर की आय भी छीन लेना – ये सब दर्शाते हैं कि सरकार पंचायतों को पूरी तरह से कमजोर करना चाहती है। उन्होंने कहा, “पंचायत प्रधान अब नल-जल मित्रों की ट्रेनिंग फीस भरें, कांगड़ा महोत्सव के नाम पर चंदा दें, और फिर भी विकास के नाम पर सरकार से ठोकरें खाएं।” बिक्रम ठाकुर ने याद दिलाया कि चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री ने जिला परिषद कर्मचारियों के विभागीय मर्जर को जायज बताया था और कहा था कि यह केवल एक “छोटी विसंगति” है। लेकिन ढाई साल बीत जाने के बावजूद न तो मर्जर हुआ और न ही सितंबर 2022 के बाद कोई नियमितिकरण। NPS कर्मचारियों को केंद्र के समान DA देने की अधिसूचना तो जारी हुई, लेकिन जिला परिषद के कर्मचारियों को इससे भी वंचित कर दिया गया। राज्य की ग्राम पंचायतों में तैनात ग्राम रोजगार सेवकों को पिछले तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है। सिलाई अध्यापिकाएं, पंचायत चौकीदार और अन्य मानदेयी कर्मचारी भी बीते पांच महीनों से भुगतान के इंतजार में हैं। चौकीदारों के लगभग 900 पद रिक्त हैं, जिन्हें भरने की कोई प्रक्रिया सरकार ने नहीं चलाई। जिन चौकीदारों ने 10 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया, उन्हें दैनिक वेतन भोगी तक नहीं बनाया जा रहा।बिक्रम ठाकुर ने कहा कि आज प्रधान को खुद चौकीदार का काम करना पड़ रहा है – इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति पंचायती राज व्यवस्था की कभी नहीं रही। पंचायतों में विकास कार्यों को ई-टेंडरिंग के माध्यम से करवाने की अधिसूचना सरकार को भारी विरोध के चलते वापिस लेनी पड़ी। लेकिन बाद में सरकार ने BDO स्तर पर टेंडर कराने का फरमान जारी किया, जिसे भी प्रधानों के दबाव में हटाना पड़ा। फिर भी पेवर ब्लॉक जैसी वस्तुओं की खरीद पर नियंत्रण सरकार ने अपने पास रखा है, ताकि अपने चहेते सप्लायर्स को लाभ पहुंचाया जा सके। *पानी के बिल और HRTC किराए में बढ़ोतरी – जनता की जेब पर डाका* बिक्रम ठाकुर ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के बिल न वसूलने की घोषणा के बावजूद सरकार ने चुपचाप फिर से वसूली शुरू कर दी है। ₹100 प्रति माह की दर से बिल वसूलने के लिए प्रधानों को अधिकृत करना जनता और प्रधानों के बीच टकराव पैदा करने की साजिश है। उन्होंने HRTC के किराया बढ़ोतरी की भी आलोचना की। ₹5 की जगह अब ₹10 न्यूनतम किराया कर दिया गया है। "नारी को नमन" योजना, जिसमें महिलाओं को 50% किराया छूट मिलती थी, उसे अब शहरी क्षेत्रों में बंद करने की योजना है – यह महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक धोखा है। 45,000 से अधिक बिजली मीटर ऐसे घरों में लगाए गए जिनके पास भवन निर्माण की NOC नहीं है। अब इनसे न केवल चालू बिल, बल्कि पहले के एरियर भी वसूले जा रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है और आम जनता पर आर्थिक बोझ है। **चमियाणा अस्पताल: न दवा, न बस, न सुविधा* * शिमला के पास शुरू किया गया सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बिना तैयारी के शुरू कर दिया गया। मरीजों को न तो हिमकेयर योजना का लाभ मिल रहा है, न ही दवाएं गुणवत्तायुक्त हैं। पर्ची शुल्क ₹10 तक लेना गरीबों पर अन्याय है। अस्पताल तक पहुंचने के लिए कोई सरकारी बस सेवा नहीं है और सड़कों की हालत इतनी खराब है कि मरीजों को आपातकाल में भी राहत नहीं मिलती। *शराब नीति: समाज के खिलाफ सरकारी साजिश* सरकार ने 240 शराब ठेकों को स्वयं चलाने का निर्णय लिया है और इसके लिए सरकारी कर्मचारियों व संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंप दी है। जिन क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं, वहां जनता के विरोध के बावजूद शराब ठेके खोले गए। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार राजस्व के लालच में सामाजिक सरोकारों की अनदेखी कर रही है। विधायक निधि पर भी अंकुश, ट्रेजरी बंद, विकास अवरुद्ध कोषागारों को बार-बार बंद किया जा रहा है, जिससे ठेकेदारों और विकास कार्यों के भुगतान लंबित पड़े हैं। ₹10,000 से अधिक का भुगतान एक साथ करने पर रोक लगाने का आदेश, विधायक निधि को भी प्रभावित कर रहा है। इससे विकास के लिए जिम्मेदार जनप्रतिनिधि खुद बेबस हो गए है।"क्या यह सरकार गरीबों, पंचायतों, कर्मचारियों, महिलाओं और युवाओं के प्रति संवेदनशील है? नहीं। यह सरकार केवल सत्ता, कमीशन और तानाशाही में विश्वास रखती है।
शिमला, 20 मई [ विशाल सूद ] ! पूर्व उद्योग मंत्री एवं भाजपा विधायक बिक्रम ठाकुर ने आज शिमला में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान कांग्रेस सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि हिमाचल की वर्तमान सरकार हर उस वर्ग के खिलाफ काम कर रही है, जिसे सामाजिक सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों की सबसे ज्यादा जरूरत है। चाहे बीपीएल सर्वे हो, पंचायतों की स्वायत्तता, कर्मचारी हित, महिला सम्मान या जनसुविधाएं – हर मोर्चे पर सरकार ने जनविरोधी निर्णय लिए हैं।
बिक्रम ठाकुर ने कहा कि सरकार ने बीपीएल सूची में शामिल होने के लिए सालाना आय ₹50,000 तय की है, लेकिन यह मानक केवल पहले से सूची में दर्ज परिवारों पर ही लागू किया जा रहा है। नए आवेदन करने वाले गरीब परिवारों की वास्तविक आय को तहसील स्तर पर जानबूझकर ₹50,000 से ऊपर दर्शाया जा रहा है, जिससे उन्हें बीपीएल सूची से वंचित किया जा सके।
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उन्होंने सवाल उठाया कि यदि किसी गरीब परिवार को पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की आवास योजना के तहत एक पक्का कमरा मिला है तो क्या यह अब गरीबी की श्रेणी से बाहर हो गया? सरकार स्पष्ट करे कि योजना का लाभ लेने वाला गरीब क्या अब बीपीएल सूची में रहने का हकदार नहीं है? पूर्व की तुलना में भूमि की अधिकतम सीमा दो हेक्टेयर से घटाकर एक हेक्टेयर करना सरकार की गरीब विरोधी मानसिकता का प्रमाण है।
बिक्रम ठाकुर ने आरोप लगाया कि सरकार ने पंचायतों की वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां समाप्त कर दी हैं। अब ग्राम सभा के निर्णयों को दरकिनार कर अधिकारियों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे तय करें कौन बीपीएल सूची में होगा। पंचायत फंड के ब्याज को वापिस लेना, अनस्पेंट राशि पर तीन दिनों के भीतर रिवर्सल का आदेश देना और संपत्ति कर की आय भी छीन लेना – ये सब दर्शाते हैं कि सरकार पंचायतों को पूरी तरह से कमजोर करना चाहती है।
उन्होंने कहा, “पंचायत प्रधान अब नल-जल मित्रों की ट्रेनिंग फीस भरें, कांगड़ा महोत्सव के नाम पर चंदा दें, और फिर भी विकास के नाम पर सरकार से ठोकरें खाएं।”
बिक्रम ठाकुर ने याद दिलाया कि चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री ने जिला परिषद कर्मचारियों के विभागीय मर्जर को जायज बताया था और कहा था कि यह केवल एक “छोटी विसंगति” है। लेकिन ढाई साल बीत जाने के बावजूद न तो मर्जर हुआ और न ही सितंबर 2022 के बाद कोई नियमितिकरण। NPS कर्मचारियों को केंद्र के समान DA देने की अधिसूचना तो जारी हुई, लेकिन जिला परिषद के कर्मचारियों को इससे भी वंचित कर दिया गया।
राज्य की ग्राम पंचायतों में तैनात ग्राम रोजगार सेवकों को पिछले तीन महीनों से वेतन नहीं मिला है। सिलाई अध्यापिकाएं, पंचायत चौकीदार और अन्य मानदेयी कर्मचारी भी बीते पांच महीनों से भुगतान के इंतजार में हैं। चौकीदारों के लगभग 900 पद रिक्त हैं, जिन्हें भरने की कोई प्रक्रिया सरकार ने नहीं चलाई। जिन चौकीदारों ने 10 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया, उन्हें दैनिक वेतन भोगी तक नहीं बनाया जा रहा।बिक्रम ठाकुर ने कहा कि आज प्रधान को खुद चौकीदार का काम करना पड़ रहा है – इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति पंचायती राज व्यवस्था की कभी नहीं रही।
पंचायतों में विकास कार्यों को ई-टेंडरिंग के माध्यम से करवाने की अधिसूचना सरकार को भारी विरोध के चलते वापिस लेनी पड़ी। लेकिन बाद में सरकार ने BDO स्तर पर टेंडर कराने का फरमान जारी किया, जिसे भी प्रधानों के दबाव में हटाना पड़ा। फिर भी पेवर ब्लॉक जैसी वस्तुओं की खरीद पर नियंत्रण सरकार ने अपने पास रखा है, ताकि अपने चहेते सप्लायर्स को लाभ पहुंचाया जा सके।
*पानी के बिल और HRTC किराए में बढ़ोतरी – जनता की जेब पर डाका*
बिक्रम ठाकुर ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के बिल न वसूलने की घोषणा के बावजूद सरकार ने चुपचाप फिर से वसूली शुरू कर दी है। ₹100 प्रति माह की दर से बिल वसूलने के लिए प्रधानों को अधिकृत करना जनता और प्रधानों के बीच टकराव पैदा करने की साजिश है।
उन्होंने HRTC के किराया बढ़ोतरी की भी आलोचना की। ₹5 की जगह अब ₹10 न्यूनतम किराया कर दिया गया है। "नारी को नमन" योजना, जिसमें महिलाओं को 50% किराया छूट मिलती थी, उसे अब शहरी क्षेत्रों में बंद करने की योजना है – यह महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक धोखा है। 45,000 से अधिक बिजली मीटर ऐसे घरों में लगाए गए जिनके पास भवन निर्माण की NOC नहीं है। अब इनसे न केवल चालू बिल, बल्कि पहले के एरियर भी वसूले जा रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है और आम जनता पर आर्थिक बोझ है।
**चमियाणा अस्पताल: न दवा, न बस, न सुविधा*
*
शिमला के पास शुरू किया गया सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बिना तैयारी के शुरू कर दिया गया। मरीजों को न तो हिमकेयर योजना का लाभ मिल रहा है, न ही दवाएं गुणवत्तायुक्त हैं। पर्ची शुल्क ₹10 तक लेना गरीबों पर अन्याय है। अस्पताल तक पहुंचने के लिए कोई सरकारी बस सेवा नहीं है और सड़कों की हालत इतनी खराब है कि मरीजों को आपातकाल में भी राहत नहीं मिलती।
*शराब नीति: समाज के खिलाफ सरकारी साजिश*
सरकार ने 240 शराब ठेकों को स्वयं चलाने का निर्णय लिया है और इसके लिए सरकारी कर्मचारियों व संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंप दी है। जिन क्षेत्रों में कांग्रेस के विधायक हैं, वहां जनता के विरोध के बावजूद शराब ठेके खोले गए। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार राजस्व के लालच में सामाजिक सरोकारों की अनदेखी कर रही है।
विधायक निधि पर भी अंकुश, ट्रेजरी बंद, विकास अवरुद्ध
कोषागारों को बार-बार बंद किया जा रहा है, जिससे ठेकेदारों और विकास कार्यों के भुगतान लंबित पड़े हैं। ₹10,000 से अधिक का भुगतान एक साथ करने पर रोक लगाने का आदेश, विधायक निधि को भी प्रभावित कर रहा है। इससे विकास के लिए जिम्मेदार जनप्रतिनिधि खुद बेबस हो गए है।"क्या यह सरकार गरीबों, पंचायतों, कर्मचारियों, महिलाओं और युवाओं के प्रति संवेदनशील है? नहीं। यह सरकार केवल सत्ता, कमीशन और तानाशाही में विश्वास रखती है।
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