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चम्बा , 18 ऑक्टूबर [ शिवानी ] ! आज पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल चम्बा के सभागार हाल में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने मुख्यतिथि के रूप से शिरकत की, जबकि डाॅ विपन ठाकुर भी विशेष रूप से मौजूद रहे। कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला में डाक्टर, जूनियर डाक्टर, केसुयल्टी डाक्टर, जूनियर रेजिडेंट डाक्टर, इंटर डाक्टर और आशा वर्कर, हेल्थवर्कर व अन्य स्वास्थ्य कर्मीयों ने भाग लिया। इस मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने कार्यशाला में आए डाक्टर, जूनियर डाक्टर, केसुयल्टी डाक्टर, जूनियर रेजिडेंट डाक्टर, इंटर डाक्टर और आशा वर्कर, हेल्थवर्कर व अन्य स्वास्थ्य कर्मीयों को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता की शपथ भी दिलाई गई। इस कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने भी बताया कि सीपीआर का उपयोग हृदयाघात से पीड़ित लोगों में रक्त को ऑक्सीजन प्रदान करने और हृदयी उत्पादन को बनाए रखने के लिए किया जाता है ताकि महत्वपूर्ण अंग जीवित रहें। ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए रक्त परिसंचरण और ऑक्सीजनीकरण आवश्यक है । रक्त प्रवाह लगभग चार मिनट तक रुकने के बाद मस्तिष्क को नुकसान पहुँच सकता है और लगभग सात मिनट बाद अपरिवर्तनीय क्षति पहुँच सकती है। आमतौर पर अगर रक्त प्रवाह एक से दो घंटे तक रुक जाता है, तो शरीर की कोशिकाएँ मर जाती हैं । इसलिए, सामान्य तौर पर, सीपीआर तभी प्रभावी होता है जब रक्त प्रवाह रुकने के सात मिनट के भीतर किया जाए। हृदय भी तेजी से सामान्य लय बनाए रखने की क्षमता खो देता है। शरीर का कम तापमान, जैसा कि कभी-कभी डूबने के करीब पहुँचते समय देखा जाता है, मस्तिष्क के जीवित रहने के समय को बढ़ा देता है। कार्डियक अरेस्ट के बाद, प्रभावी सीपीआर मस्तिष्क तक पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम बनाता है जिससे ब्रेन स्टेम डेथ में देरी होती है और दिल को डिफिब्रिलेशन प्रयासों के प्रति संवेदनशील रहने की अनुमति मिलती है। उदाहरण के लिए, यदि पूरे सीपीआर प्रक्रिया के दौरान 120 संपीड़न प्रति मिनट से अधिक की संपीड़न दर का लगातार उपयोग किया जाता है, तो यह त्रुटि पीड़ित के लिए जीवित रहने की दर और परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इस कार्यशाला में डाॅ सलोनी सूद एनेस्थीसिया विभागाध्क्ष ने स्त्रोत व्यक्ति के रूप में जानकारी देते हुए बताया कि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) एक आपातकालीन प्रक्रिया है जिसका उपयोग हृदय या श्वसन के दौरान किया जाता है। इसमें छाती को दबाना, अक्सर कृत्रिम वेंटिलेशन के साथ, मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बनाए रखने और रक्त संचार को तब तक बनाए रखने के लिए किया जाता है जब तक कि सहज श्वास और हृदय गति बहाल न हो जाए। यह उन लोगों के लिए अनुशंसित है जो बिना किसी प्रतिक्रिया के सांस ले रहे हों या असामान्य श्वास ले रहे हो। डाॅ सलोनी सूद ने कहा कि सीपीआर में वयस्कों के लिए 5 सेमी (2.0 इंच) और 6 सेमी (2.4 इंच) गहराई के बीच और कम से कम 100 से 120 प्रति मिनट की दर से छाती को संकुचित करना शामिल है। बचावकर्ता या तो विषय के मुंह या नाक ( मुंह से मुंह पुनर्जीवन ) में हवा को बाहर निकालकर या विषय के फेफड़ों ( मैकेनिकल वेंटिलेशन ) में हवा को धकेलने वाले उपकरण का उपयोग करके कृत्रिम वेंटिलेशन भी प्रदान कर सकता है। वर्तमान सिफारिशें कृत्रिम वेंटिलेशन पर प्रारंभिक और उच्च गुणवत्ता वाले छाती संपीड़न पर जोर देती हैं। इस मौके पर जिला स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ कविता महाजन, जिला कार्यक्रम अधिकारी डाॅ करण हितेषी, एनेस्थीसिया विभाग से डाॅ मनुज, डाॅ सुनील, ओटीए कमल, जगदीष और कमलकांत सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद रहे।
चम्बा , 18 ऑक्टूबर [ शिवानी ] ! आज पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल चम्बा के सभागार हाल में कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने मुख्यतिथि के रूप से शिरकत की, जबकि डाॅ विपन ठाकुर भी विशेष रूप से मौजूद रहे।
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कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला में डाक्टर, जूनियर डाक्टर, केसुयल्टी डाक्टर, जूनियर रेजिडेंट डाक्टर, इंटर डाक्टर और आशा वर्कर, हेल्थवर्कर व अन्य स्वास्थ्य कर्मीयों ने भाग लिया।
इस मौके पर पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने कार्यशाला में आए डाक्टर, जूनियर डाक्टर, केसुयल्टी डाक्टर, जूनियर रेजिडेंट डाक्टर, इंटर डाक्टर और आशा वर्कर, हेल्थवर्कर व अन्य स्वास्थ्य कर्मीयों को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता की शपथ भी दिलाई गई।
इस कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरूकता सप्ताह अभियान के तहत कार्यशाला में पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ पंकज गुप्ता ने भी बताया कि सीपीआर का उपयोग हृदयाघात से पीड़ित लोगों में रक्त को ऑक्सीजन प्रदान करने और हृदयी उत्पादन को बनाए रखने के लिए किया जाता है ताकि महत्वपूर्ण अंग जीवित रहें।
ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए रक्त परिसंचरण और ऑक्सीजनीकरण आवश्यक है । रक्त प्रवाह लगभग चार मिनट तक रुकने के बाद मस्तिष्क को नुकसान पहुँच सकता है और लगभग सात मिनट बाद अपरिवर्तनीय क्षति पहुँच सकती है। आमतौर पर अगर रक्त प्रवाह एक से दो घंटे तक रुक जाता है, तो शरीर की कोशिकाएँ मर जाती हैं ।
इसलिए, सामान्य तौर पर, सीपीआर तभी प्रभावी होता है जब रक्त प्रवाह रुकने के सात मिनट के भीतर किया जाए। हृदय भी तेजी से सामान्य लय बनाए रखने की क्षमता खो देता है। शरीर का कम तापमान, जैसा कि कभी-कभी डूबने के करीब पहुँचते समय देखा जाता है, मस्तिष्क के जीवित रहने के समय को बढ़ा देता है।
कार्डियक अरेस्ट के बाद, प्रभावी सीपीआर मस्तिष्क तक पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाने में सक्षम बनाता है जिससे ब्रेन स्टेम डेथ में देरी होती है और दिल को डिफिब्रिलेशन प्रयासों के प्रति संवेदनशील रहने की अनुमति मिलती है। उदाहरण के लिए, यदि पूरे सीपीआर प्रक्रिया के दौरान 120 संपीड़न प्रति मिनट से अधिक की संपीड़न दर का लगातार उपयोग किया जाता है, तो यह त्रुटि पीड़ित के लिए जीवित रहने की दर और परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
इस कार्यशाला में डाॅ सलोनी सूद एनेस्थीसिया विभागाध्क्ष ने स्त्रोत व्यक्ति के रूप में जानकारी देते हुए बताया कि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) एक आपातकालीन प्रक्रिया है जिसका उपयोग हृदय या श्वसन के दौरान किया जाता है।
इसमें छाती को दबाना, अक्सर कृत्रिम वेंटिलेशन के साथ, मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बनाए रखने और रक्त संचार को तब तक बनाए रखने के लिए किया जाता है जब तक कि सहज श्वास और हृदय गति बहाल न हो जाए। यह उन लोगों के लिए अनुशंसित है जो बिना किसी प्रतिक्रिया के सांस ले रहे हों या असामान्य श्वास ले रहे हो।
डाॅ सलोनी सूद ने कहा कि सीपीआर में वयस्कों के लिए 5 सेमी (2.0 इंच) और 6 सेमी (2.4 इंच) गहराई के बीच और कम से कम 100 से 120 प्रति मिनट की दर से छाती को संकुचित करना शामिल है। बचावकर्ता या तो विषय के मुंह या नाक ( मुंह से मुंह पुनर्जीवन ) में हवा को बाहर निकालकर या विषय के फेफड़ों ( मैकेनिकल वेंटिलेशन ) में हवा को धकेलने वाले उपकरण का उपयोग करके कृत्रिम वेंटिलेशन भी प्रदान कर सकता है। वर्तमान सिफारिशें कृत्रिम वेंटिलेशन पर प्रारंभिक और उच्च गुणवत्ता वाले छाती संपीड़न पर जोर देती हैं।
इस मौके पर जिला स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ कविता महाजन, जिला कार्यक्रम अधिकारी डाॅ करण हितेषी, एनेस्थीसिया विभाग से डाॅ मनुज, डाॅ सुनील, ओटीए कमल, जगदीष और कमलकांत सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद रहे।
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