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शिमला ! भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसकी व्यापकता को यदि सही मायने में परखना या देखना है तो स्थानीय स्तर की राजनीति का साक्षात्कार करना अति आवश्यक है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश में पंचायत स्तर के चुनाव संपन्न हुए हैं। मुझे भी लगभग 20 वर्षों के पश्चात किसी चुनाव को इतने नजदीक से देखने और महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ। अनायास ही प्रोफेसर लास्की के यह शब्द याद आ गए..... Whether you are interested or not in politics but politics is interested in you. पंचायत स्तर की यह राजनीति और चुनाव वास्तव में ही कौतूहल उत्पन्न करने वाले हैं। लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार एक आवश्यक अंग है और इसके तहत भारत के किसी भी नागरिक को चुनाव लड़ने या मत का प्रयोग करने का अधिकार दिया गया है। चुनाव से पूर्व इच्छुक प्रत्याशी अलग-अलग सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरते हैं। अपने पक्ष में मतदाता को मतदान के लिए प्रेरित किया जाता है। ग्रामीण स्तर के चुनाव की यदि बात की जाए तो आज भी मतदाता को अपने पक्ष में करने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाए जाते हैं। क्षेत्रवाद,जातिवाद या किसी अन्य आधार पर मतदाता को अपने पक्ष में रिझाने का भरसक प्रयास किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में शिक्षा का व्यापक विस्तार हुआ है। चुनाव में धन, बल या किसी अन्य वस्तु का प्रलोभन ज्यादा कामयाब या कारगर साबित नहीं होता है। यह भी देखने में आया है कि काफी हद तक लोगों की भेड़ चाल खत्म हुई है। आज का मतदाता बहुत जागरूक है। आज चुनावों में देवी-देवताओं को बीच में लाना जिसको हिमाचल प्रदेश में 'लूण- लोटा' प्रथा के नाम से भी जाना जाता है,काफी हद तक कम हुई है। चुनावों में हैरान कर देने वाले नतीजे सामने आने लगे हैं और इसका एकमात्र कारण सिर्फ यही है कि आज का मतदाता 20 या 25 वर्ष पूर्व के मतदाता से काफी अलग सोच रखता है। आज मतदाता को तथ्यात्मक तथा सटीक तर्क देकर ही अपने पक्ष में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रत्याशी का चुनाव पूर्व घोषणा-पत्र और उसके द्वारा किए गए वायदे भी चुनाव की दशा और दिशा तय करने लगे हैं। हिमाचल जैसे शिक्षा में अग्रणी राज्य के लिए सच में यह सभी पहलू सम्माननीय और प्रशंसनीय हैं। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी स्थानीय स्तर की राजनीति में क्षेत्रवाद और जातिवाद काफी अहम भूमिका निभा रहा है। वोटों का ध्रुवीकरण उपरोक्त बातों से आज भी काफी हद तक निर्धारित होता है। इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किसी भी ग्राम पंचायत या स्थान विशेष का विकास उसके शिक्षित एवं जागरूक मतदाता पर ही निर्भर करता है। एक विशेष बात जो इस बार के स्थानीय चुनाव में देखने में आई , वह है सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार। जहां आज से 20-25 वर्ष पूर्व केवल मात्र प्रत्याशी द्वारा घर-घर जाकर के प्रचार सामग्री वितरित की जाती थी, आज देखने में आया है कि सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्याशी को हर मतदाता के समक्ष अपनी राय और एजेंडे का प्रचार-प्रसार करने का अवसर प्राप्त हुआ है। चुने हुए जनप्रतिनिधियों से लोगों की यही अपेक्षा है कि आगामी 5 वर्षों में अपने -अपने क्षेत्र का सर्वांगीण और समुचित विकास करेंगे और इस उम्मीद पर खरा उतरना प्रत्येक प्रत्याशी का नैतिक दायित्व है।
शिमला ! भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसकी व्यापकता को यदि सही मायने में परखना या देखना है तो स्थानीय स्तर की राजनीति का साक्षात्कार करना अति आवश्यक है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश में पंचायत स्तर के चुनाव संपन्न हुए हैं। मुझे भी लगभग 20 वर्षों के पश्चात किसी चुनाव को इतने नजदीक से देखने और महसूस करने का अवसर प्राप्त हुआ। अनायास ही प्रोफेसर लास्की के यह शब्द याद आ गए..... Whether you are interested or not in politics but politics is interested in you.
पंचायत स्तर की यह राजनीति और चुनाव वास्तव में ही कौतूहल उत्पन्न करने वाले हैं। लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार एक आवश्यक अंग है और इसके तहत भारत के किसी भी नागरिक को चुनाव लड़ने या मत का प्रयोग करने का अधिकार दिया गया है। चुनाव से पूर्व इच्छुक प्रत्याशी अलग-अलग सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरते हैं। अपने पक्ष में मतदाता को मतदान के लिए प्रेरित किया जाता है।
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ग्रामीण स्तर के चुनाव की यदि बात की जाए तो आज भी मतदाता को अपने पक्ष में करने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाए जाते हैं। क्षेत्रवाद,जातिवाद या किसी अन्य आधार पर मतदाता को अपने पक्ष में रिझाने का भरसक प्रयास किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में शिक्षा का व्यापक विस्तार हुआ है। चुनाव में धन, बल या किसी अन्य वस्तु का प्रलोभन ज्यादा कामयाब या कारगर साबित नहीं होता है। यह भी देखने में आया है कि काफी हद तक लोगों की भेड़ चाल खत्म हुई है। आज का मतदाता बहुत जागरूक है। आज चुनावों में देवी-देवताओं को बीच में लाना जिसको हिमाचल प्रदेश में 'लूण- लोटा' प्रथा के नाम से भी जाना जाता है,काफी हद तक कम हुई है। चुनावों में हैरान कर देने वाले नतीजे सामने आने लगे हैं और इसका एकमात्र कारण सिर्फ यही है कि आज का मतदाता 20 या 25 वर्ष पूर्व के मतदाता से काफी अलग सोच रखता है। आज मतदाता को तथ्यात्मक तथा सटीक तर्क देकर ही अपने पक्ष में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रत्याशी का चुनाव पूर्व घोषणा-पत्र और उसके द्वारा किए गए वायदे भी चुनाव की दशा और दिशा तय करने लगे हैं। हिमाचल जैसे शिक्षा में अग्रणी राज्य के लिए सच में यह सभी पहलू सम्माननीय और प्रशंसनीय हैं। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आज भी स्थानीय स्तर की राजनीति में क्षेत्रवाद और जातिवाद काफी अहम भूमिका निभा रहा है। वोटों का ध्रुवीकरण उपरोक्त बातों से आज भी काफी हद तक निर्धारित होता है।
इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किसी भी ग्राम पंचायत या स्थान विशेष का विकास उसके शिक्षित एवं जागरूक मतदाता पर ही निर्भर करता है। एक विशेष बात जो इस बार के स्थानीय चुनाव में देखने में आई , वह है सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार। जहां आज से 20-25 वर्ष पूर्व केवल मात्र प्रत्याशी द्वारा घर-घर जाकर के प्रचार सामग्री वितरित की जाती थी, आज देखने में आया है कि सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्याशी को हर मतदाता के समक्ष अपनी राय और एजेंडे का प्रचार-प्रसार करने का अवसर प्राप्त हुआ है। चुने हुए जनप्रतिनिधियों से लोगों की यही अपेक्षा है कि आगामी 5 वर्षों में अपने -अपने क्षेत्र का सर्वांगीण और समुचित विकास करेंगे और इस उम्मीद पर खरा उतरना प्रत्येक प्रत्याशी का नैतिक दायित्व है।
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