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हिमाचल की समृद्ध सांस्कृतिक परंमपरा में ‘सायर संक्रांति’ का बहुत बड़ा महत्व है। संक्रांति पर्व सारे हिमाचल में बड़ी धार्मिक आस्था व सम्मान से मनाया जाता है। यह सब ठीक पंजाब के वैशाखी जैसे पर्व से मिलता जुलता है। जिससे हिमाचल के जनमानस भावनाएं जुड़ीं हुई है। यह संक्रांति पर्व हिमाचल के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। वह इसकी मानता भी अलग-अलग रूपों व अलग अलग संदर्भों में है। कहीं से फसल कटाई कि खुशी के रूप में, कहीं काला महीना खत्म होने के बाद बेटियों के घर आने के लिए तो कहीं अखरोट बांटकर व अपने ईष्ट को खुश करने अवसर होता है।इसे घर में अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर मनाया जाता है। इस अवसर पर सरकार भी स्थानीय अवकाश घोषित कर देती है साथ ही कई जगह मेलों का भी आयोजन किया जाता है। खगोल शास्त्रियों व पंडितों का मानना है कि आश्विन संक्रांति पर्व सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के साथ आरंभ होगा जो 16 सितंबर 2020 को सांय 7:00 बज कर 19 मिनट पर सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश होते ही आरंभ हो जाएगा। आश्विन संक्रांति का यह पर्व कांगड़ा, मंडी, चंबा, बिलासपुर, शिमला, सोलन मे धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार का संबंध वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद शरद् को निमंत्रित देन के साथ ही फसल की देवी ‘सैरी माता’ को नयी फसल अर्पित करने के साथ, बहनों जो अपनी राखियां भाईयों को बांधतीं है उन्हें खोलने का अवसर माना जाता है। यही वह अवसर है जब ‘काला महीना’ खत्म हो जाता है और महिलाएं अपने मायके की ओर रुख कर सकतीं हैं। अलग-अलग जिलों में यह उत्सव अलग-अलग रूप से मनाने की प्रथा रही है। जिस तरह दिवाली पर आपस में मिठाई बांटी जाती है उसी तरह इस अवसर पर पतरोड़े, पकौड़ी, बबरू भटूरे, लुचके, पटाडे ,खीर, हलवा आदि बनाकर, उनकी पूजा करके आस पड़ोस में बांटे जाते हैं व कामना की जाती है कि अगले वर्ष अच्छी फसल आए। ऐसी मान्यता है कि अखरोट और कुशा(दूब) बांटकर इस अवसर पर एक दूसरे को बधाई दी जाती है। इस उत्सव का संबंध अपने कुलदेवता की अर्चना आराधना से भी है। शिमला जिला में, इस उत्सव को मेले के रूप में भी मनाया जाता है। घरों में भी पूजा अर्चना की जाती है। होती जा रही हैं। सायर उत्सव को लेकर जिला शिमला के सुन्नी, भज्जी व अर्की क्षेत्र में एक मान्यता यह भी है कि माता सीता अयोध्या लाने के बाद जब कुछ विरोधियों ने लांछन लगाए तो भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण उन्हें सुबह-सुबह आश्रम छोड़ने चले गए।माता सीता के सम्मान में सुबह उठ के महिलाएं एकत्र होकर बावड़ी की तरफ जाती हैं व ‘मुडी’ बांटते हुऐ स्थानीय भाषाएं में ऐसे गाती हैं “उजुए-उजुए सिया देईये राणीये लोकू डे पणिहारा के पाणी भरणे” शिमला के मशोबरा पास तलाई तथा अर्की में मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों को झोटे के मेला के नाम से जाना जाता रहा है। अभी हाल ही तक ये मेले झोटों की लड़ाई के लिए मशहूर थे और इस अवसर पर झोटों की लड़ाई कराई जाती थी। न्यायालयों के आदेशों के बाद पशु क्रूरता को देखते हुए यह बैलों का दंगल अब बंद कर दिया गया है। शिमला क्षेत्र के आसपास, महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने इष्ट को याद करती हैं। सुबह-सुबह सामूहिक रूप में मिलकर आपस में अखरोट आदि बांटतीं है। फिर महिलाएं समाज सामूहिक रूप में स्थानीय भजन करते हुए किसी पानी के स्त्रोत पर जाती हैं, वहां से पानी भर के अपने-अपने घरों को चली जाती है। इस उत्सव के दूसरे दौर में खान पकवान बनाने का समय रहता है और शाम तक पूजा-अर्चना के बाद उन्हें बांट दिया जाता है। समय के साथ यह मान्यताएं, परंपराएं यांत्रिक जीवन में लुप्त होती जा रही हैं। सायर उत्सव को लेकर जिला शिमला के सुन्नी, भज्जी वह अर्की क्षेत्र में एक मान्यता यह भी है कि माता सीता अयोध्या लाने के बाद जब कुछ विरोधियों ने लांछन लगाए तो भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण उन्हें सुबह-सुबह आश्रम छोड़ने चले गए माता सीता के सम्मान में सुबह उठ के महिलाएं एकत्र होकर बावड़ी की तरफ जाती हैं व मुडी बांटते हुऐ स्थानीय भाषाएं में ऐसे ते है। शिमला के मशोबरा के पास तलाई तथा अर्की में मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों को झोटे के मेला के नाम से जाना जाता रहा है।अभी हाल ही में यह मेरे झोटों की लड़ाई के लिए मशहूर थे और इस अवसर पर झोटों की लड़ाई कराई जाती थी। न्यायालयों के आदेशों के बाद पशु क्रूरता को देखते हुए यह बैलों का दंगल अब बंद कर दिया गया है। इस पावन पुनीत अवसर पर प्रदेश वासियों को सफलता और आगामी वर्ष में जोरदार फसल होने के लिए शुभकामनाएं।
हिमाचल की समृद्ध सांस्कृतिक परंमपरा में ‘सायर संक्रांति’ का बहुत बड़ा महत्व है। संक्रांति पर्व सारे हिमाचल में बड़ी धार्मिक आस्था व सम्मान से मनाया जाता है। यह सब ठीक पंजाब के वैशाखी जैसे पर्व से मिलता जुलता है। जिससे हिमाचल के जनमानस भावनाएं जुड़ीं हुई है। यह संक्रांति पर्व हिमाचल के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। वह इसकी मानता भी अलग-अलग रूपों व अलग अलग संदर्भों में है। कहीं से फसल कटाई कि खुशी के रूप में, कहीं काला महीना खत्म होने के बाद बेटियों के घर आने के लिए तो कहीं अखरोट बांटकर व अपने ईष्ट को खुश करने अवसर होता है।इसे घर में अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर मनाया जाता है। इस अवसर पर सरकार भी स्थानीय अवकाश घोषित कर देती है साथ ही कई जगह मेलों का भी आयोजन किया जाता है।
खगोल शास्त्रियों व पंडितों का मानना है कि आश्विन संक्रांति पर्व सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के साथ आरंभ होगा जो 16 सितंबर 2020 को सांय 7:00 बज कर 19 मिनट पर सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश होते ही आरंभ हो जाएगा।
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आश्विन संक्रांति का यह पर्व कांगड़ा, मंडी, चंबा, बिलासपुर, शिमला, सोलन मे धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार का संबंध वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद शरद् को निमंत्रित देन के साथ ही फसल की देवी ‘सैरी माता’ को नयी फसल अर्पित करने के साथ, बहनों जो अपनी राखियां भाईयों को बांधतीं है उन्हें खोलने का अवसर माना जाता है। यही वह अवसर है जब ‘काला महीना’ खत्म हो जाता है और महिलाएं अपने मायके की ओर रुख कर सकतीं हैं। अलग-अलग जिलों में यह उत्सव अलग-अलग रूप से मनाने की प्रथा रही है। जिस तरह दिवाली पर आपस में मिठाई बांटी जाती है उसी तरह इस अवसर पर पतरोड़े, पकौड़ी, बबरू भटूरे, लुचके, पटाडे ,खीर, हलवा आदि बनाकर, उनकी पूजा करके आस पड़ोस में बांटे जाते हैं व कामना की जाती है कि अगले वर्ष अच्छी फसल आए। ऐसी मान्यता है कि अखरोट और कुशा(दूब) बांटकर इस अवसर पर एक दूसरे को बधाई दी जाती है। इस उत्सव का संबंध अपने कुलदेवता की अर्चना आराधना से भी है।
शिमला जिला में, इस उत्सव को मेले के रूप में भी मनाया जाता है। घरों में भी पूजा अर्चना की जाती है। होती जा रही हैं। सायर उत्सव को लेकर जिला शिमला के सुन्नी, भज्जी व अर्की क्षेत्र में एक मान्यता यह भी है कि माता सीता अयोध्या लाने के बाद जब कुछ विरोधियों ने लांछन लगाए तो भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण उन्हें सुबह-सुबह आश्रम छोड़ने चले गए।माता सीता के सम्मान में सुबह उठ के महिलाएं एकत्र होकर बावड़ी की तरफ जाती हैं व ‘मुडी’ बांटते हुऐ स्थानीय भाषाएं में ऐसे गाती हैं “उजुए-उजुए सिया देईये राणीये लोकू डे पणिहारा के पाणी भरणे”
शिमला के मशोबरा पास तलाई तथा अर्की में मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों को झोटे के मेला के नाम से जाना जाता रहा है। अभी हाल ही तक ये मेले झोटों की लड़ाई के लिए मशहूर थे और इस अवसर पर झोटों की लड़ाई कराई जाती थी। न्यायालयों के आदेशों के बाद पशु क्रूरता को देखते हुए यह बैलों का दंगल अब बंद कर दिया गया है।
शिमला क्षेत्र के आसपास, महिलाएं सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने इष्ट को याद करती हैं। सुबह-सुबह सामूहिक रूप में मिलकर आपस में अखरोट आदि बांटतीं है। फिर महिलाएं समाज सामूहिक रूप में स्थानीय भजन करते हुए किसी पानी के स्त्रोत पर जाती हैं, वहां से पानी भर के अपने-अपने घरों को चली जाती है। इस उत्सव के दूसरे दौर में खान पकवान बनाने का समय रहता है और शाम तक पूजा-अर्चना के बाद उन्हें बांट दिया जाता है। समय के साथ यह मान्यताएं, परंपराएं यांत्रिक जीवन में लुप्त होती जा रही हैं। सायर उत्सव को लेकर जिला शिमला के सुन्नी, भज्जी वह अर्की क्षेत्र में एक मान्यता यह भी है कि माता सीता अयोध्या लाने के बाद जब कुछ विरोधियों ने लांछन लगाए तो भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण उन्हें सुबह-सुबह आश्रम छोड़ने चले गए माता सीता के सम्मान में सुबह उठ के महिलाएं एकत्र होकर बावड़ी की तरफ जाती हैं व मुडी बांटते हुऐ स्थानीय भाषाएं में ऐसे ते है।
शिमला के मशोबरा के पास तलाई तथा अर्की में मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों को झोटे के मेला के नाम से जाना जाता रहा है।अभी हाल ही में यह मेरे झोटों की लड़ाई के लिए मशहूर थे और इस अवसर पर झोटों की लड़ाई कराई जाती थी। न्यायालयों के आदेशों के बाद पशु क्रूरता को देखते हुए यह बैलों का दंगल अब बंद कर दिया गया है।
इस पावन पुनीत अवसर पर प्रदेश वासियों को सफलता और आगामी वर्ष में जोरदार फसल होने के लिए शुभकामनाएं।
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