- विज्ञापन (Article Top Ad) -
सुंदरनगर ! ओड़की स्थान पर शुकदेव मुनि अनेक ऋषि-मुनियों सहित उडुगण सम्मेलन किया करते थे। इसके उपरांत यहां पर वर्तमान की तरह प्रतिवर्ष मेला भी आयोजित किया जाता है। प्राचीनकाल के अनुसार गरीब परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ और जन्म के 1 वर्ष उपरांत ही उस बच्चे ने देवताओं के प्रति अपनी आस्था दिखानी शुरू कर दी। जब वह लगभग 5 साल का हुआ तो बच्चा एक विशाल पेड़ के नीचे मिट्टी के देवरथ व सर्प की आकृति बनाने लगा। बच्चा अन्य खेलों में रूचि न रखते हुए अधिकतर समय इस कार्य में लगाता था। एक दिन उसकी माता उसके इस प्रकार के खेल को देखकर सोचने लगी कि मिट्टी से यह अपने हाथ कपड़े आदि हर रोज गंदा करता है। इस पर उसकी मां पशुओं के लिए घास लाने जंगल गई तो साथ ही मिट्टी के बनाए हुए देवरथ और सर्प को अपने साथ ले जाकर रास्ते में एक झाड़ी के नीचे रख दिए। जैसे ही वह घास लेकर जंगल से वापस हुई तो जिस स्थान पर उसने देवरथ को छुपा रखा था वहां पर एक विकराल सर्प उत्पन्न हुआ। जैसे-जैसे कदम घर की ओर उठाने लगी वह सर्प उसका रास्ता रोकने लगा। इस पर महिला ने भयभीत होकर देव मांहूनाग का ध्यान किया और ध्यान करते ही सांप अदृश्य हो गया। इसके उपरांत जब वह घर पहुंची और डर के साए में होने के कारण बिना भोजन किए ही सो गई। उसी रात महिला को स्वपन में वही सर्प दिखाई दिया और उसने कहा कि मैं कोई सामान्य सांप नहीं हूं और मैं साक्षात माहूंनाग हूं। मेरी स्थापना उसी पेड़ के पास की जाए जहां से मिट्टी का रथ जंगल में रख छोड़ा है। उस परिवार ने मांहूनाग की स्थापना उसी स्थान पर की और आज यह स्थान ओड़की मांहूनाग से प्रसिद्ध है।
सुंदरनगर ! ओड़की स्थान पर शुकदेव मुनि अनेक ऋषि-मुनियों सहित उडुगण सम्मेलन किया करते थे। इसके उपरांत यहां पर वर्तमान की तरह प्रतिवर्ष मेला भी आयोजित किया जाता है। प्राचीनकाल के अनुसार गरीब परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ और जन्म के 1 वर्ष उपरांत ही उस बच्चे ने देवताओं के प्रति अपनी आस्था दिखानी शुरू कर दी। जब वह लगभग 5 साल का हुआ तो बच्चा एक विशाल पेड़ के नीचे मिट्टी के देवरथ व सर्प की आकृति बनाने लगा। बच्चा अन्य खेलों में रूचि न रखते हुए अधिकतर समय इस कार्य में लगाता था।
एक दिन उसकी माता उसके इस प्रकार के खेल को देखकर सोचने लगी कि मिट्टी से यह अपने हाथ कपड़े आदि हर रोज गंदा करता है। इस पर उसकी मां पशुओं के लिए घास लाने जंगल गई तो साथ ही मिट्टी के बनाए हुए देवरथ और सर्प को अपने साथ ले जाकर रास्ते में एक झाड़ी के नीचे रख दिए। जैसे ही वह घास लेकर जंगल से वापस हुई तो जिस स्थान पर उसने देवरथ को छुपा रखा था वहां पर एक विकराल सर्प उत्पन्न हुआ। जैसे-जैसे कदम घर की ओर उठाने लगी वह सर्प उसका रास्ता रोकने लगा।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
इस पर महिला ने भयभीत होकर देव मांहूनाग का ध्यान किया और ध्यान करते ही सांप अदृश्य हो गया। इसके उपरांत जब वह घर पहुंची और डर के साए में होने के कारण बिना भोजन किए ही सो गई। उसी रात महिला को स्वपन में वही सर्प दिखाई दिया और उसने कहा कि मैं कोई सामान्य सांप नहीं हूं और मैं साक्षात माहूंनाग हूं। मेरी स्थापना उसी पेड़ के पास की जाए जहां से मिट्टी का रथ जंगल में रख छोड़ा है। उस परिवार ने मांहूनाग की स्थापना उसी स्थान पर की और आज यह स्थान ओड़की मांहूनाग से प्रसिद्ध है।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -