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चम्बा , 02 अक्टूबर [ शिवानी ] !डलहौज़ी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस कार्यकर्ता मनीष सरीन ने केन्द्र सरकार पर तीखा और बेबाक हमला बोलते हुए कहा कि मोदी सरकार की ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ भारत की संस्कृति, परंपरा और छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ रही हैं। यह वही सरकार है जो मंचों पर आत्मनिर्भर भारत का नारा देती है, पर जमीन पर हमारे कारीगरों, मंडियों और छोटे दुकानदारों को दर-ब-दर खड़ा कर रही है। सरीन ने ज़ोर देकर कहा, “दशहरा हो, दिवाली हो, रक्षाबंधन हो या होली — ये त्योहार सिर्फ़ पूजा-पाठ और रस्में नहीं हैं। ये हमारे स्थानीय बाज़ारों की रौनक हैं, कारीगरों की पहचान हैं और छोटे दुकानदारों की साल भर की कमाई का आधार हैं। पर आज वही त्योहार विदेशी ई-कॉमर्स की लॉजिस्टिक्स और विदेशी माल के बाज़ार बनते जा रहे हैं। दिवाली के दीये विदेशों से आ रहे हैं, होली के रंग ऐप्स पर बिक रहे हैं और रक्षाबंधन की राखियाँ वेबसाइटों पर आर्डर हो रही हैं। इस तरह की नीतियाँ आत्मनिर्भरता नहीं, यह कंपनी-निर्भरता हैं — और यह देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर हमला है।” उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नीतियों ने त्योहारों की खुशियों को भी बाज़ार की लूट में बदल दिया है। “जब मंडियाँ और लोकल बाजार सजने चाहिए थे, वहाँ सन्नाटा छाया दिखता है। छोटे दुकानदारों की दुकानें ढह रही हैं, कारीगरों की गुजर-बसर मुश्किल हो रही है और युवाओं की रोज़गार संभावनाएँ सिकुड़ रही हैं। ‘वोकल फॉर लोकल’ सिर्फ़ शोर और जुमला बन कर रह गया है — असलियत में केन्द्र की नीति ‘टोटल फॉर ग्लोबल’ बन चुकी है।” सरीन की सख्त मांगेंत्योहारों से पहले छोटे व्यापारियों के लिए विशेष सुरक्षा-पैकेज: तात्कालिक क्रेडिट सुविधा, सब्सिडी और कर राहत; त्योहारी स्टॉक के लिए अनुदान।विदेशी ई-कॉमर्स की मनोपाली और प्रीडेटरी प्रैक्टिस पर कड़ी कार्रवाई: स्थानीय बाजारों पर कब्ज़ा करने वाली प्रथाओं पर रोक।लोकल मंडियों और कारीगरों को प्राथमिकता देने वाली नीतियाँ: हर जिला/तहसील में त्योहारी प्रमोशन फंड और लोकल प्रदर्शनी। सरकारी खरीद-बोली में स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता और कारीगरों को प्रमोट करना। आत्मनिर्भरता का असली मतलब लागू करना: ‘वोकल फॉर लोकल’ को नारे से आगे बढ़ाकर कानूनी और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना। विदेशी निर्भरता घटाने के लिए मेक-इन-इंडिया सपोर्ट, कच्चे माल पर सब्सिडी और लॉजिस्टिक्स-इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश। शिकायत निवारण व जवाबदेही तंत्र: मंडियों/दुकानदारों की शिकायतों के लिए शीघ्र प्रतिक्रिया टीम और 15-दिन में समाधान गारंटी। ई-कॉमर्स के कारण हुए नुकसान का आकलन व मुआवज़ा तंत्र बनाना सरीन ने चेतावनी दी, “यदि केन्द्र सरकार ने इन उपायों को लागू नहीं किया तो जनता की नाराज़गी बढ़ेगी। छोटे दुकानदारों, कारीगरों और युवाओं के हितों के खिलाफ नीतियाँ बरकरार रहीं तो इसका राजनीतिक और सामाजिक परिणाम भुगतना होगा। जनता अपने त्यौहार और रोज़गार की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएगी।” बयान जारी करते समय मनीष सरीन के साथ राजेश चोभियाल, इच्छा राम टंडन, योगराज महाजन, रजत शर्मा, विशाल सिंह, विकास सिंह व विकास धीमान मौजूद रहे।
चम्बा , 02 अक्टूबर [ शिवानी ] !डलहौज़ी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस कार्यकर्ता मनीष सरीन ने केन्द्र सरकार पर तीखा और बेबाक हमला बोलते हुए कहा कि मोदी सरकार की ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ भारत की संस्कृति, परंपरा और छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ रही हैं। यह वही सरकार है जो मंचों पर आत्मनिर्भर भारत का नारा देती है, पर जमीन पर हमारे कारीगरों, मंडियों और छोटे दुकानदारों को दर-ब-दर खड़ा कर रही है।
सरीन ने ज़ोर देकर कहा, “दशहरा हो, दिवाली हो, रक्षाबंधन हो या होली — ये त्योहार सिर्फ़ पूजा-पाठ और रस्में नहीं हैं। ये हमारे स्थानीय बाज़ारों की रौनक हैं, कारीगरों की पहचान हैं और छोटे दुकानदारों की साल भर की कमाई का आधार हैं। पर आज वही त्योहार विदेशी ई-कॉमर्स की लॉजिस्टिक्स और विदेशी माल के बाज़ार बनते जा रहे हैं। दिवाली के दीये विदेशों से आ रहे हैं, होली के रंग ऐप्स पर बिक रहे हैं और रक्षाबंधन की राखियाँ वेबसाइटों पर आर्डर हो रही हैं। इस तरह की नीतियाँ आत्मनिर्भरता नहीं, यह कंपनी-निर्भरता हैं — और यह देश के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर हमला है।”
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उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नीतियों ने त्योहारों की खुशियों को भी बाज़ार की लूट में बदल दिया है। “जब मंडियाँ और लोकल बाजार सजने चाहिए थे, वहाँ सन्नाटा छाया दिखता है। छोटे दुकानदारों की दुकानें ढह रही हैं, कारीगरों की गुजर-बसर मुश्किल हो रही है और युवाओं की रोज़गार संभावनाएँ सिकुड़ रही हैं। ‘वोकल फॉर लोकल’ सिर्फ़ शोर और जुमला बन कर रह गया है — असलियत में केन्द्र की नीति ‘टोटल फॉर ग्लोबल’ बन चुकी है।”
सरीन की सख्त मांगें
त्योहारों से पहले छोटे व्यापारियों के लिए विशेष सुरक्षा-पैकेज: तात्कालिक क्रेडिट सुविधा, सब्सिडी और कर राहत; त्योहारी स्टॉक के लिए अनुदान।
विदेशी ई-कॉमर्स की मनोपाली और प्रीडेटरी प्रैक्टिस पर कड़ी कार्रवाई: स्थानीय बाजारों पर कब्ज़ा करने वाली प्रथाओं पर रोक।लोकल मंडियों और कारीगरों को प्राथमिकता देने वाली नीतियाँ: हर जिला/तहसील में त्योहारी प्रमोशन फंड और लोकल प्रदर्शनी।
सरकारी खरीद-बोली में स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता और कारीगरों को प्रमोट करना। आत्मनिर्भरता का असली मतलब लागू करना: ‘वोकल फॉर लोकल’ को नारे से आगे बढ़ाकर कानूनी और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना।
विदेशी निर्भरता घटाने के लिए मेक-इन-इंडिया सपोर्ट, कच्चे माल पर सब्सिडी और लॉजिस्टिक्स-इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश। शिकायत निवारण व जवाबदेही तंत्र: मंडियों/दुकानदारों की शिकायतों के लिए शीघ्र प्रतिक्रिया टीम और 15-दिन में समाधान गारंटी।
ई-कॉमर्स के कारण हुए नुकसान का आकलन व मुआवज़ा तंत्र बनाना सरीन ने चेतावनी दी, “यदि केन्द्र सरकार ने इन उपायों को लागू नहीं किया तो जनता की नाराज़गी बढ़ेगी। छोटे दुकानदारों, कारीगरों और युवाओं के हितों के खिलाफ नीतियाँ बरकरार रहीं तो इसका राजनीतिक और सामाजिक परिणाम भुगतना होगा। जनता अपने त्यौहार और रोज़गार की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएगी।”
बयान जारी करते समय मनीष सरीन के साथ राजेश चोभियाल, इच्छा राम टंडन, योगराज महाजन, रजत शर्मा, विशाल सिंह, विकास सिंह व विकास धीमान मौजूद रहे।
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