

तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “गुरु परम्परा और भारतीय ज्ञान परम्परा” के समापन समारोह में कोश्यारी ने आधुनिक शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश का आह्वान किया*
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शिमला , 27 जून [ विशाल सूद ] ! उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला में आज “गुरु परम्परा और भारतीय ज्ञान परम्परा” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन सत्र आयोजित हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में माननीय श्री भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व राज्यपाल (महाराष्ट्र और गोवा) एवं पूर्व मुख्यमंत्री (उत्तराखंड) ने प्रेरक समापन भाषण दिया। अपने प्रमुख समापन संबोधन में श्री कोश्यारी जी ने भारत की गुरु-शिष्य परम्परा के स्थायी महत्व को रेखांकित करते हुए इसे भारतीय ज्ञान परम्पराओं की नींव और समकालीन समाज के लिए नैतिक दिशासूचक बताया। उन्होंने आधुनिक शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों के सहज समावेश की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि “शैक्षणिक संस्थानों को मानव विकास के लिए आध्यात्मिकता और विज्ञान का समन्वय करना चाहिए।” उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम्” के आदर्श को रेखांकित करते हुए विद्वानों और युवाओं से आग्रह किया कि वे संसार को एक परिवार के रूप में देखें और आज के संदर्भ में भारत की सभ्यतामूलक बुद्धिमत्ता को पुनर्जीवित करें। उनका यह भाषण गूढ़ और व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत सराहनीय रहा, जो शिक्षकों, नीति-निर्माताओं और छात्रों के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। प्रो. के. गोपीनाथन पिल्लई, फेलो, आईआईएएस एवं संगोष्ठी संयोजक ने तीन दिवसीय संगोष्ठी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें गुरु परम्परा के ऐतिहासिक विकास, सामाजिक सुधार में उसकी भूमिका और आधुनिक शैक्षिक ढांचे में पारंपरिक ज्ञान को समाहित करने की पद्धतियों पर हुई समृद्ध चर्चाओं का सार दिया गया। प्रो. शशिप्रभा कुमार, अध्यक्ष, आईआईएएस (जो वर्चुअली जुड़ीं), ने अध्यक्षीय भाषण दिया जिसमें गुरु परम्परा की दार्शनिक नींव और भारत के बहुलतावादी समाज में नैतिक, सांस्कृतिक रूप से जागरूक नागरिकों के निर्माण की उसकी क्षमता को रेखांकित किया। धन्यवाद ज्ञापन में सचिव श्री मेहर चंद नेगी ने श्री कोश्यारी जी, अध्यक्ष महोदया, विद्वान वक्ताओं, प्रतिभागियों और समर्पित आयोजन दल के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया जिनके सामूहिक प्रयासों से यह संगोष्ठी सफल रही। सत्र का संचालन श्री अखिलेश पाठक, विक्रय एवं जनसंपर्क अधिकारी, आईआईएएस ने किया, जिन्होंने अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी की अकादमिक यात्रा को संक्षेप में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। 25 से 27 जून 2025 तक आयोजित इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्राचीन ऋषियों की पद्धतियों, सांस्कृतिक रचनात्मकता, सामाजिक जागरण और पारंपरिक एवं आधुनिक शिक्षा के समन्वय की रणनीतियों जैसे विषयों पर अकादमिक सत्र और गोलमेज चर्चाएं आयोजित की गईं। इस संगोष्ठी ने आईआईएएस शिमला की भूमिका को भारत की समृद्ध सभ्यतामूलक धरोहर पर गंभीर चिंतन और उन्नत अध्ययन के एक प्रमुख राष्ट्रीय मंच के रूप में पुनः स्थापित किया।
शिमला , 27 जून [ विशाल सूद ] ! उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला में आज “गुरु परम्परा और भारतीय ज्ञान परम्परा” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन सत्र आयोजित हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में माननीय श्री भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व राज्यपाल (महाराष्ट्र और गोवा) एवं पूर्व मुख्यमंत्री (उत्तराखंड) ने प्रेरक समापन भाषण दिया।
अपने प्रमुख समापन संबोधन में श्री कोश्यारी जी ने भारत की गुरु-शिष्य परम्परा के स्थायी महत्व को रेखांकित करते हुए इसे भारतीय ज्ञान परम्पराओं की नींव और समकालीन समाज के लिए नैतिक दिशासूचक बताया। उन्होंने आधुनिक शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों के सहज समावेश की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि “शैक्षणिक संस्थानों को मानव विकास के लिए आध्यात्मिकता और विज्ञान का समन्वय करना चाहिए।”
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उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम्” के आदर्श को रेखांकित करते हुए विद्वानों और युवाओं से आग्रह किया कि वे संसार को एक परिवार के रूप में देखें और आज के संदर्भ में भारत की सभ्यतामूलक बुद्धिमत्ता को पुनर्जीवित करें। उनका यह भाषण गूढ़ और व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत सराहनीय रहा, जो शिक्षकों, नीति-निर्माताओं और छात्रों के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करता है।
प्रो. के. गोपीनाथन पिल्लई, फेलो, आईआईएएस एवं संगोष्ठी संयोजक ने तीन दिवसीय संगोष्ठी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें गुरु परम्परा के ऐतिहासिक विकास, सामाजिक सुधार में उसकी भूमिका और आधुनिक शैक्षिक ढांचे में पारंपरिक ज्ञान को समाहित करने की पद्धतियों पर हुई समृद्ध चर्चाओं का सार दिया गया।
प्रो. शशिप्रभा कुमार, अध्यक्ष, आईआईएएस (जो वर्चुअली जुड़ीं), ने अध्यक्षीय भाषण दिया जिसमें गुरु परम्परा की दार्शनिक नींव और भारत के बहुलतावादी समाज में नैतिक, सांस्कृतिक रूप से जागरूक नागरिकों के निर्माण की उसकी क्षमता को रेखांकित किया।
धन्यवाद ज्ञापन में सचिव श्री मेहर चंद नेगी ने श्री कोश्यारी जी, अध्यक्ष महोदया, विद्वान वक्ताओं, प्रतिभागियों और समर्पित आयोजन दल के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया जिनके सामूहिक प्रयासों से यह संगोष्ठी सफल रही।
सत्र का संचालन श्री अखिलेश पाठक, विक्रय एवं जनसंपर्क अधिकारी, आईआईएएस ने किया, जिन्होंने अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी की अकादमिक यात्रा को संक्षेप में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
25 से 27 जून 2025 तक आयोजित इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्राचीन ऋषियों की पद्धतियों, सांस्कृतिक रचनात्मकता, सामाजिक जागरण और पारंपरिक एवं आधुनिक शिक्षा के समन्वय की रणनीतियों जैसे विषयों पर अकादमिक सत्र और गोलमेज चर्चाएं आयोजित की गईं। इस संगोष्ठी ने आईआईएएस शिमला की भूमिका को भारत की समृद्ध सभ्यतामूलक धरोहर पर गंभीर चिंतन और उन्नत अध्ययन के एक प्रमुख राष्ट्रीय मंच के रूप में पुनः स्थापित किया।
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