- विज्ञापन (Article Top Ad) -
चम्बा , 05 दिसंबर [ शिवानी ] ! प्लीच इंडिया फाउंडेशन और एफडीडीआई हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय सम्मेलन/गोष्ठी आयोजित की गई। जिसका शीर्षक टेल्स विलो थे हिल्स था। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय पारंपरिक देसी चप्पल *पनही* की एतिहासिक परंपरा पर शोध पत्र के माध्यम से प्रकाश डालना था, साथ ही *भारतीय पनही* पर काम करने वाले कारीगरों की तकनीक को समझना भी था। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के शोधार्थी मानव व सहायक प्रोफेसर इतिहास डॉ अंजलि वर्मा ने परम्परागत एवं देसी चम्बयाली चप्पल *मोचडू* के नाम से महत्वपूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस शोध पत्र में उन्होंने चंबा के विभिन्न कालखंड में प्रयोग किए जाने वाले चप्पलों तथा जूते का विवरण दिया। एतिहासिक्ता के आधार पर गजेटियर तथा चंबा के शासकों के द्वारा विभिन्न कालखंड में कारीगरों को जारी किए गए प्रशस्ति पत्रों को भी माध्यम बनाया। मोचडू चंबा के गीतों का एक बिंदु भी रहा है। इसे उन्होंने अपने शोध पत्र में 10वीं शताब्दी के रानी सुनयना के गाने के माध्यम से वर्णित किया। इसके साथ ही मानव ने उन कारीगरों का साक्षात्कार लिया , जिनकी 6 से भी अधिक पीढ़ियां चंबा चप्पल (मोचडू) बनाने में लगी हैं। इनमें से कुछ पीढ़ियां अपने से तीन पीढ़ी पीछे के औजारों का इस्तेमाल करते हुए दिखती हैं। यह महत्वपूर्ण शोध हैदराबाद के इस राष्ट्रीय सेमिनार में अत्यंत सराहनीय प्रयास माना गया तथा कईं शोधकर्ताओं का ध्यान खींचने में सफल रहा। वर्तमान में मानव एस.एस.आई.टी.ई. कॉलेज में बी. एड. प्रथम सत्र का छात्र है व हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इतिहास विभाग का शोधार्थी रहा है। यह शोध डॉ. अंजलि वर्मा, सहायक प्रोफेसर, इतिहास विभाग के निर्देशन एवं मार्गदर्शन में किया गया।
चम्बा , 05 दिसंबर [ शिवानी ] ! प्लीच इंडिया फाउंडेशन और एफडीडीआई हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय सम्मेलन/गोष्ठी आयोजित की गई। जिसका शीर्षक टेल्स विलो थे हिल्स था। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय पारंपरिक देसी चप्पल *पनही* की एतिहासिक परंपरा पर शोध पत्र के माध्यम से प्रकाश डालना था, साथ ही *भारतीय पनही* पर काम करने वाले कारीगरों की तकनीक को समझना भी था। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के शोधार्थी मानव व सहायक प्रोफेसर इतिहास डॉ अंजलि वर्मा ने परम्परागत एवं देसी चम्बयाली चप्पल *मोचडू* के नाम से महत्वपूर्ण शोध पत्र प्रस्तुत किया।
इस शोध पत्र में उन्होंने चंबा के विभिन्न कालखंड में प्रयोग किए जाने वाले चप्पलों तथा जूते का विवरण दिया। एतिहासिक्ता के आधार पर गजेटियर तथा चंबा के शासकों के द्वारा विभिन्न कालखंड में कारीगरों को जारी किए गए प्रशस्ति पत्रों को भी माध्यम बनाया। मोचडू चंबा के गीतों का एक बिंदु भी रहा है।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
इसे उन्होंने अपने शोध पत्र में 10वीं शताब्दी के रानी सुनयना के गाने के माध्यम से वर्णित किया। इसके साथ ही मानव ने उन कारीगरों का साक्षात्कार लिया , जिनकी 6 से भी अधिक पीढ़ियां चंबा चप्पल (मोचडू) बनाने में लगी हैं। इनमें से कुछ पीढ़ियां अपने से तीन पीढ़ी पीछे के औजारों का इस्तेमाल करते हुए दिखती हैं।
यह महत्वपूर्ण शोध हैदराबाद के इस राष्ट्रीय सेमिनार में अत्यंत सराहनीय प्रयास माना गया तथा कईं शोधकर्ताओं का ध्यान खींचने में सफल रहा। वर्तमान में मानव एस.एस.आई.टी.ई. कॉलेज में बी. एड. प्रथम सत्र का छात्र है व हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इतिहास विभाग का शोधार्थी रहा है। यह शोध डॉ. अंजलि वर्मा, सहायक प्रोफेसर, इतिहास विभाग के निर्देशन एवं मार्गदर्शन में किया गया।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -