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चम्बा , 6 जुलाई [ शिवानी ] ! मिट्टी पृथ्वी पर जीवन की आधारशिला है जोकि पौधों की वृद्धि के लिए आधार प्रदान करने के अलावा जलवायु को नियंत्रित करने में सहायता करती है तथा जैव विविधता को संबल प्रदान करती है। पृथ्वी पर मिट्टी की परत का निर्माण एक अत्यंत धीमी प्रक्रिया है एक अनुमान के अनुसार भूमि पर एक इंच मिट्टी की परत बनने में लगभग 1000 वर्ष लगते हैं। पृथ्वी पर हजारों वर्षों की प्राकृतिक प्रक्रिया से तैयार मिट्टी की परत पिछले कुछ वर्षों से भारी वर्षा के कारण बहुत अधिक प्रभावित हो रही है जिस कारण वन संपदा के साथ-साथ जान माल का भारी नुकसान हो रहा है। पृथ्वी पर मिट्टी की परत को बनाए रखने, बढ़ते भूस्खलन की रोकथाम सहित पर्यावरण संरक्षण के लिए वन विभाग द्वारा अनेक सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप भूमि कटाव की रोकथाम में इजाफा हो रहा है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष वन विभाग द्वारा वर्षा ऋतु के दौरान भूमि कटाव से प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय वन प्रजातियाँ रोपी जाती हैं तथा मृदा संरक्षण हेतु चैक डेम, रिटेनिंग वॉल व ब्रेस्ट वॉल जैसे संरचनात्मक कार्य किए जाते हैं। लेकिन मृदा संरक्षण के दृष्टिगत वन मंडल डलहौजी द्वारा वर्ष 2023 से एक विशेष पहल की गई है इस पहल के अंतर्गत “सालिक्स फॉर सॉयल अभियान आरंभ किया गया है। इस अभियान के तहत प्रत्येक वर्ष बरसात तथा सर्दियों के मौसम के दौरान अधिक नमी वाले क्षेत्रों में विशेष विधि द्वारा सालिक्स के डंडों का रोपण किया जा रहा है। इस वर्ष वन मंडल डलहौजी में यह अभियान 24 जून से 15 अगस्त तक चलाया गया है जिसके तहत 3 जून तक 72 स्थायी नालों में 13,545 सालिक्स पोल/डंडों का रोपण किया गया, जिसमें स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी रही। इसी प्रकार वर्ष 2023 में 12,500 एवं 2024 में 1,000 सालिक्स के पोल लगाए गए। वर्ष 2025 में इसे मानसून गतिविधियों का नियमित हिस्सा बनाते हुए “सालिक्स फॉर सॉयल अभियान” की शुरुआत की गई। डीएफओ डलहौजी रजनीश महाजन के मुताबिक इस अभियान का मुख्य उद्देश्य भारी वर्षा के दौरान भूमि कटाव को रोकना तथा मृदा संरक्षण करना है। उन्होंने बताया कि सालिक्स नाम का पौधा जिसे स्थानीय भाषा में बदाह या ब्यूइन्स के नाम से जाना जाता है। यह एक नमी अवशोषित करने वाला, मिट्टी को बाँधने वाला बहुपयोगी वृक्ष है। इसे बरसात के मौसम में नालों के किनारे लगाया जाता है क्योंकि यह भूमि कटाव को प्रभावी रूप से रोकता है। सालिक्स वृक्ष की लगभग 4 फीट लंबी टहनी को बहते पानी में तीन दिन तक रखा जाता है, जिससे उसमें जड़ निकलने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।इसके बाद उसे 6 से 8 इंच गहरे गड्ढे में लगाया जाता है। रोपण के पश्चात चारों ओर की मिट्टी को दबा दिया जाता है ताकि हवा की परत न बने और जड़ें मजबूती से विकसित हों। इस प्रकार वर्षा ऋतु में भूमि में पर्याप्त नमी वाले क्षेत्रों में यह आसानी से जड़ें बना लेता है। इस अभियान की सबसे अहम विशेषता यह है कि इसके लिए कोई भी आर्थिक व्यय नहीं हुआ और सभी रोपण सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से किए गए। “सालिक्स फॉर सॉयल अभियान” वन मंडल डलहौजी के अतुलनीय व उत्कृष्ट प्रयास का एक सफल उदाहरण है कि किस प्रकार बिना किसी लागत के सामुदायिक सहयोग से पर्यावरणीय संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है। यह अभियान न केवल मिट्टी के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि जलवायु अनुकूलन और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण पहल है।
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