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सुंदरनगर के ताम्रकूट पर्वत के नीचे स्थित गुफा के रूप में है। पर्वत गुफा के ऊपर भीम के पंजे का निशान और पर्वत गुफा के नीचे दो जल स्त्रोत हैं, जिनमें एक को गंगा और दूसरी को यमुना कहा जाता हैं। मान्यता के अनुसार शुकदेव ऋषि इसी स्थान पर तपस्या करते थे और गुफाओं से शुुुकदेव ऋषि स्नान करने के लिए हरिद्वार आया-जाया करते थे। तपस्या में समय की कमी के कारण शुकदेव ऋषि ने दो जल स्त्रोत गुफा के समीप उत्पन्न किए। इसमें से एक गंगा और दूसरी यमुना कहा जाता है। इसी जल से शुकदेव ऋषि स्नान कर इस गुफा में वेदों का अध्यन किया करते थे। इसके उपरांत रियासकाल में इसका नाम सुंदरनगर के नाम से जाना जाता है। प्राचीनकाल से ही इस प्रांत का नाम शुकक्षेत्र चला आया है। शुकदेव ऋषि से अनेक ऋषि मुनि वेद पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त करने उनके आश्रम में आते थे। उन्होंने अपना स्थान शुकदेव आश्रम से आग्नेय दिशा की ओर बना लिया। इसे पौराणिक नगर से जाना जाता था। आज उसे पुराना बाजार कहते हैं। उनके एक प्रिय शिष्य हुए जिनका नाम भोज था और शुकदेव ऋषि के आश्रम से दक्षिण दिशा में उन्हें स्थान दिया। इसका नाम सुंदरनगर के प्रमुख बाजार भोजपुर प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में भी यहां का नाम भोजपुर ही है। कहते हैं कि शुकदेव अनेक ऋषि-मुनियों के साथ नक्षत्रों व अनेक पुराणों के ऊपर ऋषि मुनियों के सम्मेलन किया करते थे। जिस स्थान पर यह चर्चा होती थी, उसका नाम ओड़की पड़ा।
सुंदरनगर के ताम्रकूट पर्वत के नीचे स्थित गुफा के रूप में है। पर्वत गुफा के ऊपर भीम के पंजे का निशान और पर्वत गुफा के नीचे दो जल स्त्रोत हैं, जिनमें एक को गंगा और दूसरी को यमुना कहा जाता हैं। मान्यता के अनुसार शुकदेव ऋषि इसी स्थान पर तपस्या करते थे और गुफाओं से शुुुकदेव ऋषि स्नान करने के लिए हरिद्वार आया-जाया करते थे।
तपस्या में समय की कमी के कारण शुकदेव ऋषि ने दो जल स्त्रोत गुफा के समीप उत्पन्न किए। इसमें से एक गंगा और दूसरी यमुना कहा जाता है। इसी जल से शुकदेव ऋषि स्नान कर इस गुफा में वेदों का अध्यन किया करते थे। इसके उपरांत रियासकाल में इसका नाम सुंदरनगर के नाम से जाना जाता है।
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प्राचीनकाल से ही इस प्रांत का नाम शुकक्षेत्र चला आया है। शुकदेव ऋषि से अनेक ऋषि मुनि वेद पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त करने उनके आश्रम में आते थे। उन्होंने अपना स्थान शुकदेव आश्रम से आग्नेय दिशा की ओर बना लिया। इसे पौराणिक नगर से जाना जाता था। आज उसे पुराना बाजार कहते हैं। उनके एक प्रिय शिष्य हुए जिनका नाम भोज था और शुकदेव ऋषि के आश्रम से दक्षिण दिशा में उन्हें स्थान दिया।
इसका नाम सुंदरनगर के प्रमुख बाजार भोजपुर प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में भी यहां का नाम भोजपुर ही है। कहते हैं कि शुकदेव अनेक ऋषि-मुनियों के साथ नक्षत्रों व अनेक पुराणों के ऊपर ऋषि मुनियों के सम्मेलन किया करते थे। जिस स्थान पर यह चर्चा होती थी, उसका नाम ओड़की पड़ा।
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