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दलाश ! कोरोना महामारी से लड़ने के लिए मन्दिर कमेटियों का इस तरह से आगे आना एक बहुत बड़ी प्रेरणा है । कुई कंड़ा नाग जी जो कि माता बूढी नागिन के जेष्ठ पुत्र है जिनका वैदिक नाग भगवान अन्नत तथा नाग नसैसर है। यह मंदिर दलाश से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है । बता दें कि लोगों की कुई कांडा नाग पर बहुत आस्था है। इसके बारे में कहा गया है कि कुई कांडा नाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने फनों पर धारण कर रखा है बाह्य सिराज में केवल यही एक ऐसे देवता है जो निमंत्रण के बावजूद भी दशहरे में शामिल नहीं होते क्योंकि इन्होंने लगभग दशकों पहले दशहरे में शिरकत की थी तब इन्होंने गेट जिसे हम परौल के नाम से जानते है उसके नीचे से नहीं जाते तब उस समय ज़बरदस्ती से परौल के नीचे से गुजारने की कोशिश की गई तो इन्होंने वहाँ ऐसा तांडब मचाया कि उस वक्त के राजा को कहना पड़ा कि इन्हें दशहरे में न लाया जाए इनका नजराना इन्हें हमेशा मिलता रहेगा जो कि विधिवत रूप से आज भी आता है। जो कि भोग पूजा के रूप में देवता साहिब को दिया जाता है। इसका प्रमाण कई सालों के बाद तान्दी मंदिर में पहुचें वो लोग जिन्होंने उस वक्त ज़बरदस्ती की और देवता साहिब को अपशब्द कहे वो लोग और उनकी पीढियाँ आज भी प्रभु के कोप के भाजन बने हुए है और मनाली के साथ लगते गांव के है वो लोग प्रभु से क्षमा याचना करने इनके मंदिर में कई सालों के बाद पहुंचे । भगवान श्री अन्नत कुई कंड़ा नसैसर जी सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें। आप को बता दें कि बूढ़ी नागिन माता के सात पुत्र हैं और नागिन का अपना स्थान गेहगी मैं है और माता की स्थापना सरेलसर नामक स्थान पर भी की है जहाँ पर हर साल हजारों लोग इनके दर्शन के लिए जाते हैं । यहाँ एक प्राकृतिक झील है जिसके चारों ओर श्रद्धालु चक्र लगातें है और सुखशांति की मनोकामना करते है और कुई कांडा नाग जी श्रद्धालुओं मनोकामना पुरी करते है ।
दलाश ! कोरोना महामारी से लड़ने के लिए मन्दिर कमेटियों का इस तरह से आगे आना एक बहुत बड़ी प्रेरणा है । कुई कंड़ा नाग जी जो कि माता बूढी नागिन के जेष्ठ पुत्र है जिनका वैदिक नाग भगवान अन्नत तथा नाग नसैसर है। यह मंदिर दलाश से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है ।
बता दें कि लोगों की कुई कांडा नाग पर बहुत आस्था है। इसके बारे में कहा गया है कि कुई कांडा नाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने फनों पर धारण कर रखा है बाह्य सिराज में केवल यही एक ऐसे देवता है जो निमंत्रण के बावजूद भी दशहरे में शामिल नहीं होते क्योंकि इन्होंने लगभग दशकों पहले दशहरे में शिरकत की थी तब इन्होंने गेट जिसे हम परौल के नाम से जानते है उसके नीचे से नहीं जाते तब उस समय ज़बरदस्ती से परौल के नीचे से गुजारने की कोशिश की गई तो इन्होंने वहाँ ऐसा तांडब मचाया कि उस वक्त के राजा को कहना पड़ा कि इन्हें दशहरे में न लाया जाए इनका नजराना इन्हें हमेशा मिलता रहेगा जो कि विधिवत रूप से आज भी आता है। जो कि भोग पूजा के रूप में देवता साहिब को दिया जाता है।
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इसका प्रमाण कई सालों के बाद तान्दी मंदिर में पहुचें वो लोग जिन्होंने उस वक्त ज़बरदस्ती की और देवता साहिब को अपशब्द कहे वो लोग और उनकी पीढियाँ आज भी प्रभु के कोप के भाजन बने हुए है और मनाली के साथ लगते गांव के है वो लोग प्रभु से क्षमा याचना करने इनके मंदिर में कई सालों के बाद पहुंचे ।
भगवान श्री अन्नत कुई कंड़ा नसैसर जी सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें। आप को बता दें कि बूढ़ी नागिन माता के सात पुत्र हैं और नागिन का अपना स्थान गेहगी मैं है और माता की स्थापना सरेलसर नामक स्थान पर भी की है जहाँ पर हर साल हजारों लोग इनके दर्शन के लिए जाते हैं ।
यहाँ एक प्राकृतिक झील है जिसके चारों ओर श्रद्धालु चक्र लगातें है और सुखशांति की मनोकामना करते है और कुई कांडा नाग जी श्रद्धालुओं मनोकामना पुरी करते है ।
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