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होम Khabar Himachal Seपांगी ! जुकारू उत्सव का हुआ आगाज ,पूर्व वनमंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने दी सभी पांगी वासियों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं !
  • खबर हिमाचल से

पांगी ! जुकारू उत्सव का हुआ आगाज ,पूर्व वनमंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने दी सभी पांगी वासियों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं !

द्वारा
शिवानी जरयाल -
चंबा ( चंबा ) - February 21, 2023 @ 04:03 pm
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पांगी , 21 फरवरी [ शिवानी ] ! हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास है। यहां पर मेले व त्योहारों का अलग ही महत्व है। यहाँ के लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ तीज त्योहार व मेले मनाते हैं। जिला चम्बा का जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी एक ऐसा ही क्षेत्र है जो सर्दियों के मौसम में प्रदेश के अन्य हिस्सों से पूरा अलग-थलग हो जाता है। यहां खूब बर्फबारी होती है जिसके कारण यहां के रास्तों पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ 2 महीने तक रहती है। लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं। इस इलाके में स्थानीय लोग जुकारू उत्सव मनाते हैं जो पूरे 12 दिनों तक चलता है। इस उत्सव के दौरान राजा बलि की पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस उत्सव के माध्यम से लोग आपस में गले मिलते हैं। "तगड़ा थीयां ना" कह कर मंगल कामना करते हैं। इस पूरे इलाके में सबसे ज्यादा पंगवाल समूदाय के लोग रहते है। और क्षेत्र में इस उत्सव को बड़े धुमधाम से मनाते है। जुकारु उत्सव मनाने के पीछे एक पौराणिक परंपरा प्रचलित है जिसके अनुसार राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को तीनों लोक दान में दे दिया। इसी की याद में चम्बा की पांगी घाटी के लोग यह उत्सव मनाते हैं। 12 दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है और इस दौरान घरों को खूब सजाया जाता है। और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। इस उत्सव के दौरान सबसे पहले सिल्ह होता है. घरों को खास तरह की लिखावट की जाती है। बलिराज के चित्र बनाए जाते हैं और आटे की बकरे बनते हैं। रात को बलिराज की पूजा होती है। जुकारु का अर्थ होता है बड़ों का सम्मान करना। इस उत्सव में पड़ीद के दिन राजा बलि के लिए प्राकृतिक जल स्रोत से पानी पिलाया जाता है और पड़ीद की सुबह होते ही जुकारू आरंभ हो जाता है। खुशियों के साथ उत्सव आगे बढ़ता है लोग बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। इस उत्सव के दौरान स्वांग नृत्य भी होता है। इस दिन नाग देवता की कारदार को स्वांग बनाया जाता है। वह लंबी दाढ़ी और मूंछ वाले मुकुट पहन के स्वांग मेले में जाते हैं। पंगवाल लोगों की संस्कृति की झलक भी यहां पर नजर आती है। हिमाचल प्रदेश का यह मेला पंगवाल समूदायके बीच काफी महत्व रखता है। चम्बा  जिले के जनजातीय क्षेत्र पांगी में हर साल मनाये जाने वाले जुकारू उत्सव इस वर्ष भी 21 फरवरी से समूचे पांगी घाटी में मनाया जा रहा है। इस त्यौहार को घाटी की सांस्कृतिक पहचान और शान कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस त्यौहार पर घाटी की परंपरा कायम है जिसको तीन चरण में मनाया जाता है। सिलह, पड़ीद, मांगल यह त्यौहार फागुन मास की अमावस को मनाया जाता है। इस त्यौहार के कई दिनों पहले ही लोग इसकी तैयारियां करना शुरू कर देते हैं, घरों को सजाया जाता है। घर के अंदर लिखावट के माध्यम से लोक शैली को रेखांकित किया जाता है। विशेष पकवान मंण्डे के अतिरिक्त सामान्य पकवान के बनाए जाते हैं। त्योहार के दिन घरों में लिखावट की जाती है बलिराज के चित्र बनाए जाते हैं दिन में मंण्डे आदि बनाए जाते हैं। रात को बलिराजा के चित्र की पूजा की जाती है तथा दिन में पकाया सारा पकवान तथा एक दीपक राजा बलि के चित्र के सामने रखा जाता है। रात को चरखा कातना भी बंद कर दिया जाता है सब लोग जल्दी सो जाते हैं। एक दंतकथा कथा के अनुसार भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पोते राजा बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोगों को जीत लिया तो भगवान विष्णु को वामन अवतार धारण करना पड़ा। राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को तीनो लोक दान में दे दिए। इससे प्रसन्न होकर विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि भूलोक में वर्ष में एक दिन उसकी पूजा होगी इसी परंपरा को घाटी के लोग राजा बलिदानों की पूजा करते आ रहे हैं। दूसरा दिन पडीद का होता है प्रात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर लोग स्नानादि करके राजा बलि के समक्ष नतमस्तक होते हैं। इसके पश्चात घर के छोटे सदस्य बड़े सदस्यों के चरण वंदना करते हैं। बड़े उन्हें आशीर्वाद देते हैं राजा बलि के लिए पनघट से जल लाया जाता है लोग जल देवता की पूजा भी करते हैं। इस दिन घर का मुखिया 'चूर' की पूजा भी करता है क्योंकि वह खेत में हल जोतने के काम आता है। सुबह होते ही 'जुकारू' आरंभ होता है जुकारू का अर्थ बड़ों के आदर से है। लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं इस त्यौहार का एक अन्य अर्थ यह है कि सर्दी तथा बर्फ के कारण लोग अपने घरों में बंद थे इसके बाद सर्दी काम होने लग जाती है लोग इस दिन एक दूसरे के गले मिलते हैं तथा कहते हैं तकडा' 'थिया' न और जाने के समय कहते हैं मठे' 'मठे' विश। लोग सबसे पहले अपने बड़े भाई के पास जाते हैं उसके बाद अन्य संबंधियों के पास जाते है। तीसरा दिन मांगल के रूप में मनाया जाता है 'पन्हेई' किलाड़ परगने में मनाई जाती है जबकि साच परगना में 'मांगल' मनाई जाती है। 'मांगल' तथा 'पन्हेई' में कोई विशेष अंतर नहीं होता मात्र नाम की ही भिन्नता है। मनाने का उद्देश्य एवं विधि एक जैसी ही है फर्क सिर्फ इतना है कि साच परगने मे मांगल जुकारू के तीसरे दिन मनाई जाती है तथा पन्हेई किलाड़ परगने में पांचवें दिन मनाई जाती है। मांगल तथा पन्हेई के दिन लोग भूमि पूजन के लिए निर्धारित स्थान पर इकट्ठा होते हैं इस दिन प्रत्येक घर से सत्तू घी शहद ह्यमंण्डेह्ण आटे के बकरे तथा जौ, गेहूं आदि का बीज लाया जाता है। कहीं-कहीं शराब भी लाई जाती है अपने अपने घरों से लाई गई इस पूजन सामग्री को आपस में बांटा जाता है भूमि पूजन किया जाता है कहीं-कहीं नाच गान भी किया जाता है इस त्यौहार के बाद पंगवाल लोग अपने खेतों में काम करना शुरू कर देते हैं। इस मेले को 'उवान' 'ईवान' आदि नामों से भी जाना जाता है यह मेला कि किलाड़ तथा धरवास पंचायत में तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन मेला राजा के निमित दूसरे दिन प्रजा के लिए मनाया जाता है और तीसरा दिन नाग देवता के लिए मनाया जाता है, यह मेला माघ और फागुन मास में मनाया जाता है। उवान के दौरान स्वांग नृत्य भी होता है इस दिन नाग देवता के कारदार को स्वांग बनाया जाता है लंबी लंबी दाढ़ी मूछ पर मुकुट पहने सिर पर लंबी-लंबी जटाएं हाथ में कटार लिए स्वांग को मेले में लाया जाता है दिन भर नृत्य के बाद स्वांग को उसके घर पहुंचाया जाता है इसी के साथ मेला समाप्त हो जाता है। इस सुअवसर पर पूर्व वनमंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने सभी पांगी घाटी वासियों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि मिलने मिलाने का नाम है मेला, और जुकारू उत्सव में तो पुराने गिले शिकवे भुला के सभी गले मिलते हैं एक दूसरे के घर पकवान ले के जाते हैं और बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं। भरमौरी ने कहा कि इस जुकारू उत्सव का पूरे प्रदेश में अलग ही विशेष महत्व है। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs

पांगी , 21 फरवरी [ शिवानी ] ! हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास है। यहां पर मेले व त्योहारों का अलग ही महत्व है। यहाँ के लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ तीज त्योहार व मेले मनाते हैं। जिला चम्बा का जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी एक ऐसा ही क्षेत्र है जो सर्दियों के मौसम में प्रदेश के अन्य हिस्सों से पूरा अलग-थलग हो जाता है। यहां खूब बर्फबारी होती है जिसके कारण यहां के रास्तों पर चारों तरफ बर्फ ही बर्फ 2 महीने तक रहती है। लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं। इस इलाके में स्थानीय लोग जुकारू उत्सव मनाते हैं जो पूरे 12 दिनों तक चलता है। इस उत्सव के दौरान राजा बलि की पूजा की जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस उत्सव के माध्यम से लोग आपस में गले मिलते हैं। "तगड़ा थीयां ना" कह कर मंगल कामना करते हैं। इस पूरे इलाके में सबसे ज्यादा पंगवाल समूदाय के लोग रहते है। और क्षेत्र में इस उत्सव को बड़े धुमधाम से मनाते है।

जुकारु उत्सव मनाने के पीछे एक पौराणिक परंपरा प्रचलित है जिसके अनुसार राजा बलि ने वामन अवतार भगवान विष्णु को तीनों लोक दान में दे दिया। इसी की याद में चम्बा की पांगी घाटी के लोग यह उत्सव मनाते हैं। 12 दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है और इस दौरान घरों को खूब सजाया जाता है। और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। इस उत्सव के दौरान सबसे पहले सिल्ह होता है. घरों को खास तरह की लिखावट की जाती है। बलिराज के चित्र बनाए जाते हैं और आटे की बकरे बनते हैं। रात को बलिराज की पूजा होती है।

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जुकारु का अर्थ होता है बड़ों का सम्मान करना। इस उत्सव में पड़ीद के दिन राजा बलि के लिए प्राकृतिक जल स्रोत से पानी पिलाया जाता है और पड़ीद की सुबह होते ही जुकारू आरंभ हो जाता है। खुशियों के साथ उत्सव आगे बढ़ता है लोग बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। इस उत्सव के दौरान स्वांग नृत्य भी होता है। इस दिन नाग देवता की कारदार को स्वांग बनाया जाता है। वह लंबी दाढ़ी और मूंछ वाले मुकुट पहन के स्वांग मेले में जाते हैं। पंगवाल लोगों की संस्कृति की झलक भी यहां पर नजर आती है। हिमाचल प्रदेश का यह मेला पंगवाल समूदायके बीच काफी महत्व रखता है।

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कहीं-कहीं शराब भी लाई जाती है अपने अपने घरों से लाई गई इस पूजन सामग्री को आपस में बांटा जाता है भूमि पूजन किया जाता है कहीं-कहीं नाच गान भी किया जाता है इस त्यौहार के बाद पंगवाल लोग अपने खेतों में काम करना शुरू कर देते हैं। इस मेले को 'उवान' 'ईवान' आदि नामों से भी जाना जाता है यह मेला कि किलाड़ तथा धरवास पंचायत में तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन मेला राजा के निमित दूसरे दिन प्रजा के लिए मनाया जाता है और तीसरा दिन नाग देवता के लिए मनाया जाता है, यह मेला माघ और फागुन मास में मनाया जाता है। उवान के दौरान स्वांग नृत्य भी होता है इस दिन नाग देवता के कारदार को स्वांग बनाया जाता है लंबी लंबी दाढ़ी मूछ पर मुकुट पहने सिर पर लंबी-लंबी जटाएं हाथ में कटार लिए स्वांग को मेले में लाया जाता है दिन भर नृत्य के बाद स्वांग को उसके घर पहुंचाया जाता है इसी के साथ मेला समाप्त हो जाता है।

इस सुअवसर पर पूर्व वनमंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने सभी पांगी घाटी वासियों को ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि मिलने मिलाने का नाम है मेला, और जुकारू उत्सव में तो पुराने गिले शिकवे भुला के सभी गले मिलते हैं एक दूसरे के घर पकवान ले के जाते हैं और बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं। भरमौरी ने कहा कि इस जुकारू उत्सव का पूरे प्रदेश में अलग ही विशेष महत्व है।


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लाहौल ! भुंतर भवन स्ट्रांग रूम में शिफ्ट की गई ईवीएम मशीनें !

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मंडी की मुरारी धार को पर्यटन की दृष्टि से देश के मानचित्र पर लाने की जरूरत !

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ननखड़ी ! सरकार के दो साल का कार्यकाल पुरा होने पर हिम आधार लोक कला मंच ने चलाया जागरूकता अभियान।

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मंडी ! राम मंदिर निर्माण को लेकर विश्व हिंदू परिषद पीएम मोदी का आभार व्यक्त करता है- लेखराज राणा !

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रोजगार/Employment

  • चम्बा ! जिला रोजगार कार्यालय चम्बा द्वारा 16 व 17 अप्रैल को होगा कैंपस इंटरव्यू का आयोजन !

    April 7, 2025 @ 09:33 pm
  • शिमला ! राजीव गांधी राजकीय महाविद्यालय, शिमला में रोज़गार मेले का किया आयोजन  ! 

    August 7, 2024 @ 09:27 pm
  • शिमला ! विदेश में नौकरी करने के लिए होने जा रहे हैं साक्षात्कार !   

    May 6, 2024 @ 06:24 pm

नतीजे/Results

  • हिमाचल ! बिजली बोर्ड को मिले 154 कनिष्ठ अभियंता, स्टाफ नर्स भर्ती का परिणाम घोषित !

    March 30, 2022 @ 12:23 pm
  • हमीरपुर ! इलेक्ट्रीशियन और रिस्टोरर के पदों के लिए ली गई परीक्षा का अंतिम परिणाम घोषित !

    January 4, 2022 @ 06:04 pm
  • हमीरपुर ! स्टोर कीपर पोस्ट कोड 878 की परीक्षा का अंतिम परिणाम घोषित !

    January 4, 2022 @ 11:29 am

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