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लाहौल ! जनजातीय लाहौल घाटी मे स्थित नीललंठ झील का नजारा इन दिनो देखते ही बनता है। गगनचुबीं पहाडों के बीच समाई भगवान शिव की तपोस्थली व झील पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है । कोरोना काल के बीच शिव भक्त झील की ओर रूख नही कर पा रहे है। कोरोना काल मे धामिॅक सभी स्थल बंद है। प्राचीन मान्याताओं के अनुसार केवल पुरूष ही नीललंठ झील का दर्शन कर सकते है। वहां पर महिलाओं के आगमन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है। इस पवित्र झील तक पहुंचने के लिए शिव भक्तों को नैनगार गांव तक वाहनो से जा कर आगे की करीब 17 किलोमीटर का सफर पैदल -पार कर ही झील तक पहुंचा जा सकता है ।रास्ते में शिव भक्त पाडंवो की ओर से अज्ञातवास के दौरान बनाई गई कूहल को भी निहार सकते है। सदियों पुरानी इस कूहल में आज भी पानी बह रहा है। जानकारा बताते है कि इस कूहल के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग दूर हो जाते हैं । यह झील सात माह बर्फ से ढकी रहने के बाबजूद अब अपने स्वरूप मे लौटने लगी है। अभी भी झील के पानी मे रात के समय बर्फ की परत जम रहती है।
लाहौल ! जनजातीय लाहौल घाटी मे स्थित नीललंठ झील का नजारा इन दिनो देखते ही बनता है। गगनचुबीं पहाडों के बीच समाई भगवान शिव की तपोस्थली व झील पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है । कोरोना काल के बीच शिव भक्त झील की ओर रूख नही कर पा रहे है। कोरोना काल मे धामिॅक सभी स्थल बंद है। प्राचीन मान्याताओं के अनुसार केवल पुरूष ही नीललंठ झील का दर्शन कर सकते है। वहां पर महिलाओं के आगमन पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है। इस पवित्र झील तक पहुंचने के लिए शिव भक्तों को नैनगार गांव तक वाहनो से जा कर आगे की करीब 17 किलोमीटर का सफर पैदल -पार कर ही झील तक पहुंचा जा सकता है ।रास्ते में शिव भक्त पाडंवो की ओर से अज्ञातवास के दौरान बनाई गई कूहल को भी निहार सकते है। सदियों पुरानी इस कूहल में आज भी पानी बह रहा है। जानकारा बताते है कि इस कूहल के पानी से स्नान करने पर चर्म रोग दूर हो जाते हैं । यह झील सात माह बर्फ से ढकी रहने के बाबजूद अब अपने स्वरूप मे लौटने लगी है। अभी भी झील के पानी मे रात के समय बर्फ की परत जम रहती है।
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