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चम्बा , 20 मई [ शिवानी ] ! आज 20 मई 2025 को सीटू से संबधित यूनियनों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनो के देशव्यापी प्रदर्शन के आह्वान पर कुठेड प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन गरोला,चमेरा चरण दो, चमेरा चरण तीन वर्कर्स यूनियन, चमेरा चरण एक, बैरा स्यूल की यूनियनों ने अपने अपने कार्य स्थलों पर के विरोध प्रदर्शन किये। इन प्रदर्शनों को सीटू जिला अध्यक्ष नरेंद्र कुमार, महासचिव सुदेश ठाकुर के अतिरिक्त यूनियन नेताओं संजय कुमार, दिलीप, विनोद कुमार , अयूब, फारूक, चमन सिंह, रजनीश, योग राज, सुनील कुमार, बालक राम, विक्की, जीवन शर्मा, मनमोहन आदि मज़दूर नेताओं ने कहा कि अच्छे दिनों का वायदा करके व मोदी की गारंटी की दुहाई देकर सत्ता में आई मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में कई मज़दूर, कर्मचारी, किसान व आम जनता विरोधी कदम उठाए हैं। किसान, मज़दूरों व मेहनतकश लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते देश में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार व खाद्य असुरक्षा पैदा हुई है। वहीं नवउदारवादी नीतियों के चलते शीर्ष 1% की आय हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई, जबकि निचले 50% की आय हिस्सेदारी में तेजी से गिरावट आई। वास्तव में, भारत के शीर्ष 10% अमीरों के भीतर भी धन का जबरदस्त संकेन्द्रण जारी है। भारत के कॉरपोरेट जगत पर राज करने वाले कुख्यात 5 बड़े समूह जिसमें रिलायंस समूह, टाटा समूह, आदित्य बिड़ला समूह, अदानी समूह और भारती टेलीकॉम। इन 5 समूहों के पास भारत की गैर-वित्तीय संपत्तियों का 20% से अधिक हिस्सा है। गरीबों के संसाधनों को छीन कर अमीरों के हवाले किया जा रहा है। आज शीर्ष 1% आबादी के पास 40.5% संपत्ति और सबसे गरीब 50% आबादी के पास सिर्फ 3% संपत्ति है। पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने पूंजीपतियों का 17 लाख करोड़ का कर्जा माफ किया और किसानों का कुल कर्जा जो 18 लाख करोड़ है उसका एक रुपया भी माफ नहीं किया। मज़दूर नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल मे 4 श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए उतारू है। आज़ादी के पहले और बाद में, मज़दूरों के संघर्षों और कुर्बानियों से बने 44 श्रम कानूनों को 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं (लेबर कोड) में बदल दिया गया है। इससे 74 प्रतिशत मजदूर सामाजिक व 70 प्रतिशत उद्योग सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। पहले श्रम कानूनों में न्यूनतम वेतन की गणना का फार्मूला था जिसके आधार पर न्यूनतम वेतन तय किया जाता था। श्रम संहिताओं मे कोई भी फार्मूला नहीं है। पहले रोजाना काम के घन्टे तय करने की शक्ति कानून मे थी, अब यह शक्ति सरकार के हाथ में है। पिछले वर्षों में कई राज्य सरकारों द्वारा काम के घण्टों को 8 से 12 करने के मजदूर विरोधी फैसलें देखे जा चुके हैं। श्रम संहिताओं में फिक्स टर्म रोजगार को कानूनी जामा पहनाया गया है। यूनियन बनाने की प्रक्रिया को जटिल कर दिया है, पहले उद्योग मे कार्यरत न्यूनतम 7 या 10% मज़दूर यूनियन बना सकते थे, अब यह 100 या 10% कर दिया गया है। यह कोड श्रम न्यायालयों को निरस्त कर देता है। श्रम संहिताए मज़दूरों के मूल अधिकार हड़ताल के अधिकार को कमजोर करती है। ये कोड ठेका प्रथा को मज़बूत करते है। ठेकेदारों को लाइसेन्स लेने के लिए मजदूरों की सीमा को 20 से 50 कर दिया गया है। आने वाली 9 जुलाई को उपरोक्त सरकार के मजदूर विरोधी निर्णयों को लेकर जबरदस्त हड़ताल की जायेगी।
चम्बा , 20 मई [ शिवानी ] ! आज 20 मई 2025 को सीटू से संबधित यूनियनों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनो के देशव्यापी प्रदर्शन के आह्वान पर कुठेड प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन गरोला,चमेरा चरण दो, चमेरा चरण तीन वर्कर्स यूनियन, चमेरा चरण एक, बैरा स्यूल की यूनियनों ने अपने अपने कार्य स्थलों पर के विरोध प्रदर्शन किये।
इन प्रदर्शनों को सीटू जिला अध्यक्ष नरेंद्र कुमार, महासचिव सुदेश ठाकुर के अतिरिक्त यूनियन नेताओं संजय कुमार, दिलीप, विनोद कुमार , अयूब, फारूक, चमन सिंह, रजनीश, योग राज, सुनील कुमार, बालक राम, विक्की, जीवन शर्मा, मनमोहन आदि मज़दूर नेताओं ने कहा कि अच्छे दिनों का वायदा करके व मोदी की गारंटी की दुहाई देकर सत्ता में आई मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में कई मज़दूर, कर्मचारी, किसान व आम जनता विरोधी कदम उठाए हैं।
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किसान, मज़दूरों व मेहनतकश लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। केंद्र सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते देश में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार व खाद्य असुरक्षा पैदा हुई है। वहीं नवउदारवादी नीतियों के चलते शीर्ष 1% की आय हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई, जबकि निचले 50% की आय हिस्सेदारी में तेजी से गिरावट आई।
वास्तव में, भारत के शीर्ष 10% अमीरों के भीतर भी धन का जबरदस्त संकेन्द्रण जारी है। भारत के कॉरपोरेट जगत पर राज करने वाले कुख्यात 5 बड़े समूह जिसमें रिलायंस समूह, टाटा समूह, आदित्य बिड़ला समूह, अदानी समूह और भारती टेलीकॉम। इन 5 समूहों के पास भारत की गैर-वित्तीय संपत्तियों का 20% से अधिक हिस्सा है।
गरीबों के संसाधनों को छीन कर अमीरों के हवाले किया जा रहा है। आज शीर्ष 1% आबादी के पास 40.5% संपत्ति और सबसे गरीब 50% आबादी के पास सिर्फ 3% संपत्ति है। पिछले 10 सालों में मोदी सरकार ने पूंजीपतियों का 17 लाख करोड़ का कर्जा माफ किया और किसानों का कुल कर्जा जो 18 लाख करोड़ है उसका एक रुपया भी माफ नहीं किया।
मज़दूर नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल मे 4 श्रम संहिताओं को लागू करने के लिए उतारू है। आज़ादी के पहले और बाद में, मज़दूरों के संघर्षों और कुर्बानियों से बने 44 श्रम कानूनों को 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं (लेबर कोड) में बदल दिया गया है। इससे 74 प्रतिशत मजदूर सामाजिक व 70 प्रतिशत उद्योग सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
पहले श्रम कानूनों में न्यूनतम वेतन की गणना का फार्मूला था जिसके आधार पर न्यूनतम वेतन तय किया जाता था। श्रम संहिताओं मे कोई भी फार्मूला नहीं है। पहले रोजाना काम के घन्टे तय करने की शक्ति कानून मे थी, अब यह शक्ति सरकार के हाथ में है। पिछले वर्षों में कई राज्य सरकारों द्वारा काम के घण्टों को 8 से 12 करने के मजदूर विरोधी फैसलें देखे जा चुके हैं।
श्रम संहिताओं में फिक्स टर्म रोजगार को कानूनी जामा पहनाया गया है। यूनियन बनाने की प्रक्रिया को जटिल कर दिया है, पहले उद्योग मे कार्यरत न्यूनतम 7 या 10% मज़दूर यूनियन बना सकते थे, अब यह 100 या 10% कर दिया गया है। यह कोड श्रम न्यायालयों को निरस्त कर देता है।
श्रम संहिताए मज़दूरों के मूल अधिकार हड़ताल के अधिकार को कमजोर करती है। ये कोड ठेका प्रथा को मज़बूत करते है। ठेकेदारों को लाइसेन्स लेने के लिए मजदूरों की सीमा को 20 से 50 कर दिया गया है। आने वाली 9 जुलाई को उपरोक्त सरकार के मजदूर विरोधी निर्णयों को लेकर जबरदस्त हड़ताल की जायेगी।
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