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चम्बा , 16 जुलाई [ शिवानी ] ! जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पंचायतों के चुनाव जनवरी माह मे करवाए जाते है। यह समय जनजातीय क्षेत्र में चुनाव करवाने के लिए उपयुक्त नहीं है। कठिन भगौलिक क्षेत्र और, कड़ाके की ठण्ड, क्षेत्र के लोगों का काँगड़ा चले जाना आदि कारण इसमें शामिल है। इस बारे में हिमाचल प्रदेश आदिवासी कांग्रेस कमेटी ने उपमंडल दंडाधिकारी भरमौर अभिषेक मित्तल को एक ज्ञापन भी सौंपा है। उन्होंने कहा कि 2016 में पंचायतों के चुनाव दो चरणों में हुए थे प्रथम चरण 10 जनवरी 2016 को और दूसरा चरण 12 जनवरी को हुआ। मतगणना के दिन समूचे जनजातीय क्षेत्र में भारी बर्फबारी हुई थी। सारा दिन बर्फ पड़ती रही। बुजुर्ग मतदाता मतदान क्षेत्र तक नहीं पहुंच सके। मतगणना के समय पोलिंग पार्टियाँ पैदल लगभग डेढ़ फुट वर्फ मे चल कर मतगणना केन्द्र पर पहुंची। दूर दराज क्षेत्र की पार्टियों मतगणना क्षेत्र मे बड़ी मुश्किल से 2:30 से तीन घन्टे के बाद पहुंची। मतगणना क्षेत्र पर बिजली गुल थी मत गणना के लिए स्थानीय लोगों द्वारा टॉर्च लैंप आदि लाए गये थे। कुछ लोगों ने मोबइल की रोशनी से मतगणना केंन्द्र में कर्मचारियों का सहयोग किया इस के उपरान्त मतगणना का कार्य बहुत देरी से शुरू किया गया जिस से चुनाब के रिजल्ट बहुत देरी में घोषित किए गए समय 12 बजे से लेकर देर रात 2:30 बजे तक घोषित हुए। जो कर्मचारी चुनाव करवाने आये थे बर्फवारी के कारण उनके रहने और खाने के लिए भी उचित व्यवस्था नहीं थी जिस कारण कर्मचारियों को भी मुश्किल में रात गुजारनी पड़ी। जो गाड़ियां कांगड़ा से मत डालने के लिए लोगों को ले कर आई थी यह गाड़िया भी बर्फ के कारण बापिस कांगड़ा नहीं जा सकी मार्च तक भरमौर में ही रही। वर्ष 2021 जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में करवाए गए 17 जनवरी 2021, 19 और अन्तिम 21 जनवरी 2021 को था इन दिनों में समूचे क्षेत्र में वर्फ और रास्तों पर बर्फ शीशे जैसे जम जाती है लोगों को व चुनाव डियूटी करने वालों को भी आने जाने में मुश्किल होती है। जनजातीय क्षेत्र भरमौर में जनवरी माह में तापमान लगभग 5 और 7 डिग्री के आस पास दिन को और रात को इससे भी कम होता है। जिस से अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कई स्थानों में पैदल जाकर अपनी डयूटी देनी पड़ती है। जिन्हें अपनी जान को जोखिम में डाल कर जाना पड़ता है। स्थानीय लोगों में भी मतदान के दिन उत्तराई और चढाई बाले मतदान केन्द्रों में मतदान करने की पूर्ण रूचि नहीं होती है। बजुर्ग लोग ठंड के कारण मतदान करने नहीं जाते है। पंचायतों के चुनावों में इन दिनों में कुल मत प्रतिशत 50% के दो चार प्रतिशत उपर नीचे रहता है। उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्र भरमौर के लोग 15 अक्टूबर के बाद जिला कांगड़ा के लिए चल पड़ते है और जनवरी माह में होने वाले पंचायतों के चुनाव के समय तक भरमौर के लगभग 70% लोग कांगड़ा चले जाते है जो कि कांगड़ा में भिन-भिन्न विधानसभा क्षेत्रो में रहते हैं। चुनाव नामांकन के बाद जो उम्मीदवार है वो चुनाव प्रचार भरमौर में कम और जिला कांगड़ा में ज्यादा करते है और गाडियों में भर भर कर लोगी को कांगड़ा से भरमौर के लिए ले जाते है। जिस से उमीदवारों के लाखो रु खर्च होते हैं। और यह चुनाव हर वर्ष बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए होता जा रहा है अर्थात जो उमीदवार जितना पैसा खर्च करेगा वह उतने अधिक वोटर कांगडा से ला कर चुनाव जीतने में सफल हो जाएगा। आम ओर साधारण उम्मीदवार जिस के पास पूंजी नहीं वह चुनाव जीतना तो छोड़ो चुनाव लड़ने की सोच भी नही सकता है।
चम्बा , 16 जुलाई [ शिवानी ] ! जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पंचायतों के चुनाव जनवरी माह मे करवाए जाते है। यह समय जनजातीय क्षेत्र में चुनाव करवाने के लिए उपयुक्त नहीं है। कठिन भगौलिक क्षेत्र और, कड़ाके की ठण्ड, क्षेत्र के लोगों का काँगड़ा चले जाना आदि कारण इसमें शामिल है। इस बारे में हिमाचल प्रदेश आदिवासी कांग्रेस कमेटी ने उपमंडल दंडाधिकारी भरमौर अभिषेक मित्तल को एक ज्ञापन भी सौंपा है।
उन्होंने कहा कि 2016 में पंचायतों के चुनाव दो चरणों में हुए थे प्रथम चरण 10 जनवरी 2016 को और दूसरा चरण 12 जनवरी को हुआ। मतगणना के दिन समूचे जनजातीय क्षेत्र में भारी बर्फबारी हुई थी। सारा दिन बर्फ पड़ती रही। बुजुर्ग मतदाता मतदान क्षेत्र तक नहीं पहुंच सके। मतगणना के समय पोलिंग पार्टियाँ पैदल लगभग डेढ़ फुट वर्फ मे चल कर मतगणना केन्द्र पर पहुंची। दूर दराज क्षेत्र की पार्टियों मतगणना क्षेत्र मे बड़ी मुश्किल से 2:30 से तीन घन्टे के बाद पहुंची। मतगणना क्षेत्र पर बिजली गुल थी मत गणना के लिए स्थानीय लोगों द्वारा टॉर्च लैंप आदि लाए गये थे। कुछ लोगों ने मोबइल की रोशनी से मतगणना केंन्द्र में कर्मचारियों का सहयोग किया इस के उपरान्त मतगणना का कार्य बहुत देरी से शुरू किया गया जिस से चुनाब के रिजल्ट बहुत देरी में घोषित किए गए समय 12 बजे से लेकर देर रात 2:30 बजे तक घोषित हुए। जो कर्मचारी चुनाव करवाने आये थे बर्फवारी के कारण उनके रहने और खाने के लिए भी उचित व्यवस्था नहीं थी जिस कारण कर्मचारियों को भी मुश्किल में रात गुजारनी पड़ी। जो गाड़ियां कांगड़ा से मत डालने के लिए लोगों को ले कर आई थी यह गाड़िया भी बर्फ के कारण बापिस कांगड़ा नहीं जा सकी मार्च तक भरमौर में ही रही।
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वर्ष 2021 जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में करवाए गए 17 जनवरी 2021, 19 और अन्तिम 21 जनवरी 2021 को था इन दिनों में समूचे क्षेत्र में वर्फ और रास्तों पर बर्फ शीशे जैसे जम जाती है लोगों को व चुनाव डियूटी करने वालों को भी आने जाने में मुश्किल होती है। जनजातीय क्षेत्र भरमौर में जनवरी माह में तापमान लगभग 5 और 7 डिग्री के आस पास दिन को और रात को इससे भी कम होता है।
जिस से अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कई स्थानों में पैदल जाकर अपनी डयूटी देनी पड़ती है। जिन्हें अपनी जान को जोखिम में डाल कर जाना पड़ता है। स्थानीय लोगों में भी मतदान के दिन उत्तराई और चढाई बाले मतदान केन्द्रों में मतदान करने की पूर्ण रूचि नहीं होती है। बजुर्ग लोग ठंड के कारण मतदान करने नहीं जाते है। पंचायतों के चुनावों में इन दिनों में कुल मत प्रतिशत 50% के दो चार प्रतिशत उपर नीचे रहता है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय क्षेत्र भरमौर के लोग 15 अक्टूबर के बाद जिला कांगड़ा के लिए चल पड़ते है और जनवरी माह में होने वाले पंचायतों के चुनाव के समय तक भरमौर के लगभग 70% लोग कांगड़ा चले जाते है जो कि कांगड़ा में भिन-भिन्न विधानसभा क्षेत्रो में रहते हैं। चुनाव नामांकन के बाद जो उम्मीदवार है वो चुनाव प्रचार भरमौर में कम और जिला कांगड़ा में ज्यादा करते है और गाडियों में भर भर कर लोगी को कांगड़ा से भरमौर के लिए ले जाते है। जिस से उमीदवारों के लाखो रु खर्च होते हैं। और यह चुनाव हर वर्ष बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए होता जा रहा है अर्थात जो उमीदवार जितना पैसा खर्च करेगा वह उतने अधिक वोटर कांगडा से ला कर चुनाव जीतने में सफल हो जाएगा।
आम ओर साधारण उम्मीदवार जिस के पास पूंजी नहीं वह चुनाव जीतना तो छोड़ो चुनाव लड़ने की सोच भी नही सकता है।
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