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चम्बा , 16 दिसंबर [ शिवानी ] ! पिछले कुछ वर्षों से मौसम की लगातार बेरुखी ने जहां किसानों की खेती पर गहरा असर डाला है, वहीं बागवानी भी गंभीर संकट से जूझ रही है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम का मिजाज खेती-बाड़ी के अनुकूल नहीं रह गया है, जिसका सीधा असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ रहा है। चम्बा जिला के बागवान विशेष रूप से सेब की घटती पैदावार को लेकर बेहद चिंतित हैं। बागवानों का कहना है कि सेब के पौधों को हर साल निर्धारित चीलिंग आवर की आवश्यकता होती है, जो समय पर बारिश और बर्फबारी से पूरी होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से कई इलाकों में न तो समय पर बारिश हो रही है और न ही पर्याप्त बर्फबारी, जिसके चलते सेब की फसल प्रभावित हो रही है। परिणामस्वरूप बागवानों को हर साल आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। समय पर कीटनाशक छिड़काव और प्रूनिंग जैसी सभी आवश्यक कृषि क्रियाएं करने के बावजूद मौसम उनका साथ नहीं दे रहा। वहीं, यदि कहीं सही समय पर फूल आते भी हैं तो ओलावृष्टि फसल को भारी नुकसान पहुंचा देती है। इन्हीं समस्याओं से परेशान होकर अब कई बागवान पारंपरिक सेब के बगीचों को छोड़कर आधुनिक तकनीक की ओर रुख कर रहे हैं। साहू क्षेत्र में करीब 50 से अधिक किसानों ने अपने पुराने सेब के बगीचों को पूरी तरह काट दिया है और उनकी जगह नई तकनीक से हाई डेंसिटी सेब के पौधे लगाने की तैयारी की जा रही है। इस बदलाव में बागवानों को उद्यान विभाग का भी सहयोग मिल रहा है। स्थानीय बागवानों का कहना है कि पुराने सेब के पौधों को अब पर्याप्त चीलिंग आवर नहीं मिल पा रहा है और पुरानी किस्मों की बाजार में मांग भी लगातार घट रही है। वहीं हाई डेंसिटी सेब के पौधों को अपेक्षाकृत कम चीलिंग आवर की जरूरत होती है और इनकी पैदावार जल्दी तथा अधिक होती है, जिससे बाजार में बेहतर दाम मिलने की संभावना रहती है। बागवानों के अनुसार जहां पहले एक बीघा भूमि में केवल 33 पारंपरिक सेब के पौधे लगाए जाते थे, वहीं अब हाई डेंसिटी तकनीक से एक बीघा में करीब 300 पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ आमदनी में भी इजाफा होने की उम्मीद है। बागवानों को उम्मीद है कि आधुनिक तकनीक अपनाकर वे मौसम की मार से कुछ हद तक राहत पा सकेंगे और सेब उत्पादन को फिर से लाभकारी बना सकेंगे।
चम्बा , 16 दिसंबर [ शिवानी ] ! पिछले कुछ वर्षों से मौसम की लगातार बेरुखी ने जहां किसानों की खेती पर गहरा असर डाला है, वहीं बागवानी भी गंभीर संकट से जूझ रही है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम का मिजाज खेती-बाड़ी के अनुकूल नहीं रह गया है, जिसका सीधा असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ रहा है। चम्बा जिला के बागवान विशेष रूप से सेब की घटती पैदावार को लेकर बेहद चिंतित हैं।
बागवानों का कहना है कि सेब के पौधों को हर साल निर्धारित चीलिंग आवर की आवश्यकता होती है, जो समय पर बारिश और बर्फबारी से पूरी होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से कई इलाकों में न तो समय पर बारिश हो रही है और न ही पर्याप्त बर्फबारी, जिसके चलते सेब की फसल प्रभावित हो रही है। परिणामस्वरूप बागवानों को हर साल आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। समय पर कीटनाशक छिड़काव और प्रूनिंग जैसी सभी आवश्यक कृषि क्रियाएं करने के बावजूद मौसम उनका साथ नहीं दे रहा। वहीं, यदि कहीं सही समय पर फूल आते भी हैं तो ओलावृष्टि फसल को भारी नुकसान पहुंचा देती है।
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इन्हीं समस्याओं से परेशान होकर अब कई बागवान पारंपरिक सेब के बगीचों को छोड़कर आधुनिक तकनीक की ओर रुख कर रहे हैं। साहू क्षेत्र में करीब 50 से अधिक किसानों ने अपने पुराने सेब के बगीचों को पूरी तरह काट दिया है और उनकी जगह नई तकनीक से हाई डेंसिटी सेब के पौधे लगाने की तैयारी की जा रही है। इस बदलाव में बागवानों को उद्यान विभाग का भी सहयोग मिल रहा है।
स्थानीय बागवानों का कहना है कि पुराने सेब के पौधों को अब पर्याप्त चीलिंग आवर नहीं मिल पा रहा है और पुरानी किस्मों की बाजार में मांग भी लगातार घट रही है। वहीं हाई डेंसिटी सेब के पौधों को अपेक्षाकृत कम चीलिंग आवर की जरूरत होती है और इनकी पैदावार जल्दी तथा अधिक होती है, जिससे बाजार में बेहतर दाम मिलने की संभावना रहती है। बागवानों के अनुसार जहां पहले एक बीघा भूमि में केवल 33 पारंपरिक सेब के पौधे लगाए जाते थे, वहीं अब हाई डेंसिटी तकनीक से एक बीघा में करीब 300 पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ आमदनी में भी इजाफा होने की उम्मीद है।
बागवानों को उम्मीद है कि आधुनिक तकनीक अपनाकर वे मौसम की मार से कुछ हद तक राहत पा सकेंगे और सेब उत्पादन को फिर से लाभकारी बना सकेंगे।
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